नयी दिल्ली : दूरसंचार नियामक ट्राइ ने अखिल भारतीय 3जी स्पेक्ट्रम के लिए आधार मूल्य प्रति मेगाहर्ट्ज 2,720 करोड़ रुपये रखने की सिफारिश की है. यह पिछली नीलामी के लिए तय न्यूनतम मूल्य के मुकाबले 22 प्रतिशत कम है. इससे मोबाइल कंपनियों को राहत मिलने की उम्मीद है. सरकार ने 2010 में जब 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी के लिए आरक्षित मूल्य 3,500 करोड रुपये रखा था.
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकार (ट्राइ) ने आज यह सिफारिश की कि दूरसंचार विभाग को नीलामी के लिए और 15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम पेश करना चाहिए जो रक्षा विभाग के साथ अदला-बदली के जरिए विभाग को मिलने वाला है. लेकिन विभाग को उम्मीद है कि रक्षा मंत्रालय से 3जी बैंड (2100 मेगाहर्ट्ज बैंड) का फिलहाल पांच मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम ही मिल सकेगा.
ट्राइ ने कहा, ‘प्राधिकार की सिफारिश है कि हर लाइसेंस सेवा क्षेत्र (सर्किल) में 2100 मेगाहर्ट्ज बैंड स्पेक्ट्रम के लिए न्यूनतम मूल्य 2,720 करोड रुपये रखा जाना चाहिए.’ ट्राइ ने कहा, ‘रक्षा मंत्रलय 1900 मेगाहर्ट्ज बैंड के स्पेक्ट्रम के बदले 2100 मेगाहर्ट्ज बैंड का 15 मेगाहर्ट्ज स्पेक्ट्रम खाली कर रहा है. रक्षा विभाग के साथ सैद्धांतिक आधार पर हुए समझौते के मद्देनजर उस (प्राप्त होने वाले) स्पेक्ट्रम को भी नीलामी पर रखा जाना चाहिए भले ही वह तत्काल उपलब्ध न हो.’
ट्राइ ने कहा कि ऐसा किया जा सकता है क्योंकि कंपनियों को स्पेक्ट्रम तत्काल उपलब्ध नहीं कराना है. नियामक ने सुझाव दिया है कि दूरसंचार विभाग को यह सुनिश्चित करने के लिए सभी कदम उठाए जाने चाहिए कि बिहार, ओडिशा और हिमाचल प्रदेश, इन तीन सर्किलों में 2100 मेगाहर्ट्ज बैंड का वह स्पेक्ट्रम भी नीलामी पर चढाया जाए तो जो पहले एस-टेल के लिए रखा गया था.
उच्चतम न्यायालय द्वारा 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन घोटाला मामले में फरवरी 2012 में जो 122 लाइसेंस रद्द किए जाने के बाद एस-टेल ने अपना परिचालन बंद कर दिया था. उल्लेखनीय है कि 3जी स्पेक्ट्रम के लिए 2010 में तय न्यूनतम मूल्य ही 2008 के 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में 1.76 लाख करोड रुपये की राजस्व हानि के कैग के अनुमान का आधार बना.
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