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सेंसेक्स में जबरदस्त गिरावट, जानिए क्यों गिर रहा है देश और दुनिया का शेयर बाजार !
देश और दुनिया को नए साल 2015 से काफी उम्मीदें थीं. बाजार को लेकर भी सकारात्मक रुख दिखाई दे रहा था लेकिन आज देश के शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट देखी गई है और आज बंबई शेयर बाजार यानी बीएसइ का सेंसेक्स 850 अंकों से ज्यादा की गिरावट दर्ज कर चुका है जबकि नेशनल स्टॉक […]
देश और दुनिया को नए साल 2015 से काफी उम्मीदें थीं. बाजार को लेकर भी सकारात्मक रुख दिखाई दे रहा था लेकिन आज देश के शेयर बाजार में जबरदस्त गिरावट देखी गई है और आज बंबई शेयर बाजार यानी बीएसइ का सेंसेक्स 850 अंकों से ज्यादा की गिरावट दर्ज कर चुका है जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी भी 260 अंकों यानी 3.11 फीसदी की कमी के साथ 8,127 अंकों के पास पहुंच गया.
विशेषज्ञों की माने तो दुनियाभर के शेयर बाजारों में गिरावट देखने को मिल रही है और इसका प्रमुख कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें घटना है.
दरअसल, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी है और अप्रैल 2009 के बाद इतनी बड़ी गिरावट कल सोमवार को देखने को मिली है. इस समय कच्चे तेल की कीमत अप्रत्याशित रूप से 50 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे आ गई है.
कच्चा तेल सस्ता होने का बड़ा कारण अमेरिका, रूस और इराक में कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ना माना जा रहा है. अमेरिका पेट्रोलियम संसाधनों पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश में बरसों से लगा हुआ है. इसी कोशिश के तौर पर वो पेट्रोल, डीजल जैसे पेट्रोलियम ईंधन के विकल्प के रूप में शेल तेल बना रहा है और इसी कड़ी में अमेरिका ने शेल तेल बनाने के अपने पिछले तीस सालों के रिकॉर्ड को तोड़ दिया है. जिसकी वजह से अमेरिका का कच्चे तेल आयत घट गया है.
दूसरी तरफ, आर्थिक रूप से बेहद कमजोर होने के बाद रूस ने भी अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के लिए अपने देश में उपलब्ध कच्चे तेल के अकूत भंडार की तरफ ध्यान देना शुरू किया और आज की तारीख में रूस में कच्चे तेल का उत्पादन सोवियत युग के बाद के अधिकतम स्तर पर पहुंच गया है.
इसके अलावा इराक और सऊदी अरब का पेट्रोलियम का निर्यात भी 35 साल के अधिकतम स्तर पर है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मांग घटने के इन दबावों के कारण ब्रेंट क्रूड भी 50 डॉलर प्रति बैरल के नीचे उतरने को बेताब है.
अब तो दुनियाभर के व्यापारी इस बात को लेकर चिंतित हैं कि अगर अमेरिकी आयल इन्वेंटरी की सप्लाई क्षमता और बढ़ी तो अमेरिकी क्रूड आयल की कीमत 40 डॉलर प्रति बैरल तक भी पहुंच सकती है. अगर ऐसा होता है तो इसमें कोई अचरज नहीं होगा क्योंकि रूस, इराक, पश्चिमी अफ्रीका, कनाडा और अमेरिका में सप्लाई क्षमता को बढ़ाने पर खूब जोर दिया जा रहा है. इसके अलावा सऊदी अरब भी कच्चे तेल पर सबसे अधिक छूट एशिया के ग्राहकों को दे रहा है और इस बार ये छूट पिछले 14 सालों में सबसे अधिक है.
दरअसल, इस कच्चे तेल ने अंतरराष्ट्रीय बाजार में काफी अनिश्चितताएं पैदा कर दी हैं और यही अनिश्चितता भारतीय शेयर बाजार के रुझान को भी बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है. इक्विटी में विदेशी फंड की हालिया बिकवाली और रुपये के मूल्य में गिरावट का कारण, कच्चे तेल के मूल्य में निरंतर गिरावट को बताया जा रहा है. इसलिए, कच्चे तेल के मूल्य में अनियंत्रित गिरावट बाजार के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रही है.
अर्थव्यवस्था का नियम है कि मांग बढती है तो कीमत बढ़ जाती है लेकिन दुनिया के बड़े देश एक तो अपनी अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने कि जद्दोजहद में लगे हुए हैं, दुसरे अमेरिका जैसा प्रमुख तेल उपभोक्ता देश अब आयातित तेल कि जगह खुद के बनाये तेल पर अपनी निर्भरता स्थापित करने की कोशिश में लगा है. ऐसे में दुनियाभर में कच्चे तेल की मांग में जबरदस्त कमी आई है.यही कारण है कि मांग घटने की वजह से पेट्रोलियम की कीमतें भी ऐतिहासिक रूप से नीचे गिरने को बेताब दिखाई दे रही हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक मंदी से यूरोप और अन्य देशों को होने वाला भारतीय निर्यात भी प्रभावित हो सकता है.इसके अलावा, सेंसेक्स और निफ्टी में भारी गिरावट का एक और कारण देश में ब्याज दर की कीमतों में कटौती को लेकर अनिश्चितता भी माना जा रहा है. सरकार चाहती है कि ब्याज दरों में कटौती हो लेकिन आरबीआइ अभी थोडा और इंतज़ार करना चाहती है. रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि उनकी योजना देश को लम्बी अवधि का लाभ दिलाने की है, इसलिए देश को ब्याज दरों में कटौती के लिए थोडा इंतजार करना पड़ेगा. हालांकि, बाजार को उम्मीद है कि रिजर्व बैंक फरवरी में ब्याज दरों में कटौती की घोषणा कर सकता है.
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