खाद्य सुरक्षा कानून से सार्वजनिक वित्त पर असर पड़ेगा

नयी दिल्ली : उद्योग मंडल फिक्की ने कहा है कि खाद्य सुरक्षा कानून से सार्वजनिक वित्त पर दबाव बनेगा तथा राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा. फिक्की ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘इससे राजकोषीय स्थिति पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और इसकी मजबूती का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा. इसके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2013 12:41 PM

नयी दिल्ली : उद्योग मंडल फिक्की ने कहा है कि खाद्य सुरक्षा कानून से सार्वजनिक वित्त पर दबाव बनेगा तथा राजकोषीय घाटा बढ़कर सकल घरेलू उत्पाद का 5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा. फिक्की ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘इससे राजकोषीय स्थिति पर अतिरिक्त दबाव पड़ेगा और इसकी मजबूती का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा. इसके चलते राजकोषीय घाटा 2013-14 में बढ़कर जीडीपी के 5 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा, जो बजटीय अनुमान 4.8 प्रतिशत से थोड़ा अधिक है.’’

रिपोर्ट के मुताबिक सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिये खाद्यान आवंटन के मामले में कई समस्याएं हैं और आपूर्ति प्रणाली में दक्षता सुनिश्चित करना जरुरी है. उल्लेखनीय है कि 3 जुलाई को सरकार ने देश की दो तिहाई आबादी को हर महीने सस्ती दर एक से तीन रुपये किलो की दर से अनाज उपलब्ध कराने के लिये अध्यादेश लाने का निर्णय किया. क्रियान्वयन के बाद अपनी तरह का यह दुनिया का सबसे बड़ा कार्यक्रम होगा. इसमें सरकार को देश की 67 प्रतिशत आबादी को 6.2 करोड़ टन चावल, गेहूं तथा मोटा अनाज उपलब्ध कराने के लिये सालाना अनुमानत: 1,25,000 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे. सर्वे में यह भी कहा गया है कि अगर सहयोगात्मक कदम नहीं उठाये गये तो औद्योगिक उत्पादन में गिरावट, चालू खाते के बढ़ते घाटे तथा रुपये की विनिमय दर में गिरावट से देश की वृद्धि की संभावना प्रभावित हो सकती है.

सर्वे में भाग लेने वाले अर्थशास्त्रियों ने देश की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 6 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है. उनके अनुसार, ‘‘कुछ गंभीर चिंताएं बनी हुई हैं और अर्थव्यवस्था को फिर से तीव्र आर्थिक वृद्धि के रास्ते पर लाने के लिये इनसे बेहतर तरीके से निपटना होगा.’’फिक्की के आर्थिक परिदृश्य सर्वे में यह भी कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि 5 प्रतिशत रहेगी. सर्वे में प्रतिभागियों ने औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर वित्त वर्ष 2013-14 में 3.3 प्रतिशत रहेगी जो पिछले वित्त वर्ष में 1.1 प्रतिशत थी.

उद्योग संगठन ने रिजर्व बैंक से आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये नीतिगत ब्याज दरों में कटौती करने को कहा है. सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर अर्थशास्त्रियों ने उम्मीद जताई कि इस वित्त वर्ष के अंत तक रेपो दर में 0.5 से 0.75 प्रतिशत की कटौती होगी. चालू खाते के घाटे के बारे में इसमें कहा गया है कि रुपये की विनिमय दर में गिरावट से यह बढ़ेगा. वित्त वर्ष 2013-14 की पहली तिमाही में चालू खाते का घाटा 5 प्रतिशत रहने का अनुमान है और चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में इसमें गिरावट की उम्मीद है.

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