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कच्‍चे तेल की कीमतों में गिरावट जारी, क्‍या घटेंगी पेट्रोल-डीजल की कीमतें?

वाशिंगटन : विश्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गिरते कच्चे तेल के दामों में गिरावट को दुनिया के विकासशील देशों के लिए फायदेमंद बताया है, लेकिन उसने पेट्रोलियम पदार्थो के निर्यातक देशों के लिए चिंता भी जाहिर की है. उसने कहा है कि आनेवाले दिनों में कच्चे तेलों के गिरते दाम निर्यातक देशों के लिए […]

वाशिंगटन : विश्व बैंक ने अंतरराष्ट्रीय बाजारों में गिरते कच्चे तेल के दामों में गिरावट को दुनिया के विकासशील देशों के लिए फायदेमंद बताया है, लेकिन उसने पेट्रोलियम पदार्थो के निर्यातक देशों के लिए चिंता भी जाहिर की है. उसने कहा है कि आनेवाले दिनों में कच्चे तेलों के गिरते दाम निर्यातक देशों के लिए चुनौती खड़ी कर सकते हैं. उसने वैश्विक आर्थिक संभावनाओं के नवीनतम अंक में कहा है कि अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कच्चे तेल के रुख से विशेष तौर पर प्रमुख तेल आयातक देशों को फायदा मिलेगा.

मुख्य रूप से इसका लाभ विकासशील देशों को मिलेगा. उसने यह आशंका भी जाहिर की है कि वर्ष 2015 में तेल मूल्यों की नरमी और अधिक गहरायेगी. चालू वर्ष के दौरान उल्लेखनीय स्तर पर वास्तविक आय तेल निर्यातक देशों से निकल कर तेल आयातक देशों की तरफ जाने लगेगी. विश्व बैंक द्वारा बुधवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि कई तेल आयातक देशों के लिए कच्चे तेल के दाम घटने का बड़ा मतलब है.

इससे उन देशों में मंहगाई पर दबाव कम होगा. बाह्य और राजकोषीय खाते का घाटा भी कम होगा, जिससे आर्थिक वृद्धि बढ़ाने में मदद मिलेगी. इसके विपरीत कच्चे तेल के दाम नीचे रहने से विकसित और इसके निर्यातक देशों की वृद्धि संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. उनकी बाह्य और राजकोषीय स्थिति पर बुरा असर होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि दाम और नीचे जाते हैं, तो इन देशों में तेल खोज और विकास गतिविधियां भी धीमी पड़ सकतीं हैं. वहीं, निम्न आयवाले देशों में निवेश जोखिम में बढ़ जायेगा. गैर-परंरपरागत क्षेत्रों जैसे शेल गैस, गहरे समुद्री क्षेत्रों व रेतीले इलाके में होनेवाले निवेश को लेकर भी जोखिम बढ़ेगा.

विश्व व्यापार की रफ्तार हुई कम : विश्व बैंक ने कहा है कि पिछले वैश्विक आर्थिक संकट के बाद खास कर धनी देशों की आयात की मांग कमजोर होने के कारण वैश्विक व्यापार में वृद्धि धीमी चल रही है. वैश्विक आर्थिक संभावनाएं रिपोर्ट में बैंक ने कहा है कि मुख्य रूप से निवेश मांग में कमजोरी के कारण व्यापार की वृद्धि दर गिरी है.

वर्ष 2012-13 में वैश्विक व्यापार की वृद्धि 3.5 प्रतिशत से कम रही, जो संकट से पहले औसतन सात प्रतिशत थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि विश्व व्यापार में कमी से विकासशील देशों की वृद्धि दर भी कम हुई है. विश्व में कुल आयात का 65 प्रतिशत हिस्सा उच्च आय वाले देश करते हैं. इन देशों में संकट के बाद कमजोरी बनी हुई है, जिससे आयात की मांग कमजोर है तथा वैश्विक व्यापार की स्थिति में सुधार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है.

राजकोषीय ढाल मजबूत रखें विकासशील देश

विश्व बैंक ने वैश्विक आर्थिक गतिविधियों की संभावित नरमी से निपटने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों को ‘राजकोषीय ढाल’ तैयार रखने का सुझाव दिया है. विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, इन देशों को निर्यात कमजोर रहने, विश्व बाजार में ब्याज दरों की मजबूती और वित्तीय बाजारों की कमजोरी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बहुत से विकासशील देशों को मध्यावधि में अपनी राजकोषीय स्थिति को मजबूत बनाने की जरूरत है. यह काम किस रफ्तार से हो, यह देश विशेष की स्थिति पर निर्भर करेगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2000 के बाद से विकासशील देशों की राजकोषीय नीति में चक्रीय आर्थिक उतार-चढ़ाव का मुकाबला करने के उपाय बढ़ रहे हैं.

उनमें आर्थिक चक्र के साथ चलने की प्रवृत्ति घट रही है. इसी कारण 2008-09 की महामंदी से पहले विकासशील देशों ने अपनी राजकोषीय स्थिति को मजबूत किया था और उसका इस्तेमाल समय आने पर प्रोत्साहन के लिए किया गया था.

पटरी पर भारतीय अर्थव्यवस्था

नयी दिल्ली : आर्थिक सुधारों में तेजी लाने के प्रयासों के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर आगे बढ़ रही है. इससे वित्त वर्ष 2015 में आर्थिक वृद्धि 5.4 प्रतिशत से बढ़ कर वित्त वर्ष 2017 में सात प्रतिशत तक पहुंच सकती है. वैश्विक वित्तीय सेवा प्रदाता मैक्वेरी की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2016 भारत के लिए महत्वपूर्ण वर्ष होगा. इस दौरान कम होते मुद्रास्फीति दबाव और वैश्विक बाजार में जिंसों के गिरते दाम तथा नीतिगत पहलों से देश की अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे सुधार आयेगा. मैक्वेरी ने कहा कि नीति निर्माता उत्पादकता सुधारने के लिए सही कदम उठा रहे हैं. कुल मिला कर अनुमान है कि जीडीपी वृद्धि वित्त वर्ष 2015 में 5.4 प्रतिशत से बढ़ कर वित्त वर्ष 2016 में 6.5 प्रतिशत और 2017 में सात प्रतिशत तक पहुंच जायेगी.

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