जानिये, आरबीआइ की रेपो रेट में कटौती के बाद क्या पड़ेगा आपके लोन पर असर
पारंपरिक तौर पर भारत में लोग Floating Home Loan को ही पसंद करते हैं. किंतु बदलते परिवेश में कुछ बैंकों के द्वारा फिक्स्ड रेट पर होम लोन की पेशकश की जा रही है. हालांकि यह पेशकश एक फिक्स्ड टीम के लिए ही की जा रही है. अल आरबीआइ द्वारा रेट कट की घोषणा किये जाने […]
पारंपरिक तौर पर भारत में लोग Floating Home Loan को ही पसंद करते हैं. किंतु बदलते परिवेश में कुछ बैंकों के द्वारा फिक्स्ड रेट पर होम लोन की पेशकश की जा रही है. हालांकि यह पेशकश एक फिक्स्ड टीम के लिए ही की जा रही है. अल आरबीआइ द्वारा रेट कट की घोषणा किये जाने के पश्चात निश्चित तौर पर लोगों को इएमआइ के लिए कम जेब ढीली करनी पड़ेगी. पर इन सब के बीच सवाल यह है कि आपके होम लोन के लिए कौन सा बेहतर विकल्प है.
1.पारंपरिक FloaterRateHome Loan
2.Fixed Rate Home Loan
जानिए अभी भी Floating Loan क्यों है बेहतरीन विकल्प
आम तौर पर आपकी इएमआइ की दर भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआइ (रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया) समय-समय पर किये जाने वाले रेट कट से जुड़ी हुई है. ध्यान देने योग्य तथ्य यह है कि पिछले बहुत दिनों से रेट कट की घोषणा नहीं की गयी थी. आरबीआइ की नयी घोषणा के पश्चात नयी रेपो दर 7.75 है. एक नजर 2001 से 2015 तक के रेपो दर पर.
जानकारों की मानें तो पिछले 15 सालों में अर्थव्यवस्था ने बहुत ज्यादा उतार-चढ़ाव देखें हैं. वैश्विक आर्थिक संकट के दौर और बढ़ती महंगाई के दिनों में भी उच्चतम रेपो दर 9 प्रतिशत के आसपास रही. जबकि इसी दौरान औसत रेपो दर 7.18 प्रतिशत रही. रेपो रेट रिजर्व की ओर से सभी बैंकों को दिये गये ऋण पर लिया जाने वाला ब्याज है. अगर रेपो रेट ज्यादा होगा तो बैंक भी अपने ग्राहकों को दिये गये ऋण पर ज्यादा ब्याज वसूलेंगे और अगर रेपो रेट कम होगी तो ग्राहकों को मिलने वाला ऋण सस्ता पड़ेगा.
पिछले 15 वर्षों के दौरान साल 2009 एवं 2010 में यह दर 5 प्रतिशत के आसपास बनी रही, वहीं पर साल 2004, 2005 एवं 2006 के दौरान 6 प्रतिशत रिकार्ड की गयी. 8 प्रतिशत या उसके आसपास की महंगी दर साल 2001, 2008, 2012 और 2014 में रही.
नीचे दिए गए टेबल में दिखाई गयी दरें, सम्बंधित वर्षकीऔसत दरें हैं.
वर्ष | 2015 | 2014 | 2013 | 2012 | 2011 | 2010 | 2009 | 2008 | 2007 | 2006 | 2005 | 2004 | 2003 | 2002 | 2001 |
दर | 7.75 | 8.0 | 7.55 | 8.0 | 7.53 | 5.62 | 5.08 | 7.92 | 7.62 | 6.87 | 6.25 | 6.00 | 7.05 | 7.75 | 8.75 |
स्पष्ट तौर पर आज की दर से अगर हम पिछले 15 वर्षों की दरों का तुलनात्मक अध्ययन करें तो पाते हैं कि वर्ष 2001, 2008, 2012 एवं 2014 में इएमआइ के लिए हमें ज्यादा पॉकेट ढीली करनी पड़ी, वहीं पर वर्ष 2003 से 2011 के बीच सिर्फ एक बार इएमआइ की रेट ज्यादा रही, जबकि अन्य वर्षों में फ्लोटिंग विकल्प की वजह से रेट की दरें कम हुईं, जिसके कारण इएमआइ में भी कमी आयी.
आने वाले हैं अच्छे दिन !
जानकारों एवं विशेषज्ञों की मानें तो आने वाला समय भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ‘अच्छे दिनों’ से भरा पड़ा है. ऐसी हालत में दर की कटौती में निरंतरता बने रहने की उम्मीद है. ऐसी हालत में किसी के लिए भी आने वाले वर्षों को ध्यान में रखते हुए होम लोन के लिए फ्लोटिंग ब्याज दर का विकल्प फिक्स्ड ब्याज दर के विकल्प से बेहतर दिखायी देता है.
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