नयी दिल्ली : सरकार ने मध्यस्थता (आर्बिट्रेशन) कानून में संशोधन के लिए अध्यादेश लाने का विचार त्याग दिया है. सरकार के इस कदम को एक तरह से सरकार द्वारा अध्यादेशों पर अधिक निर्भरता को टालने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी बडी संख्या में अध्यादेश जारी करने को लेकर गंभीर आपत्ति जता चुके हैं.
इस अध्यादेश के तहत वाणिज्यिक विवाद मामलों में सुनवाई की अध्यक्षता कर रहे मध्यस्थों के लिए मामलों का नौ महीने में निपटान करना अनिवार्य किये जाने का प्रावधान करने का प्रस्ताव है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इसे मंजूरी दे दी लेकिन इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास नहीं भेजा गया. सूत्रों ने कहा कि सरकार ने अब अध्यादेश लाने का फैसला छोड दिया है.
इसके बजाय वह मध्यस्थता व सुलह कानून, 1996 में संशोधन के लिए विधेयक संसद के बजट सत्र में लाएगी जो कि 23 फरवरी को शुरू होगा. तकनीकी रूप से मंत्रिमंडल को विधेयक पर विचार से पहले संबंधित अध्यादेश को औपचारिक रूप से वापस लेना होता है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने इस अध्यादेश को 29 दिसंबर को मंजूरी दी थी.
ऐसा माना जाता है कि वित्तमंत्री अरूण जेटली भी इस मुद्दे पर अध्यादेश लाने के पक्ष में नहीं थे. यह घटनाक्रम इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि मुखर्जी ने बार-बार ‘अध्यादेश का रास्ता’ अपनाने के लिए सोमवार को सरकार को आगाह किया था. सरकार बीते आठ महीने में नौ अध्यादेश ला चुकी है.
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