नयी दिल्ली : ओएनजीसी और अन्य सरकारी उत्खनन कंपनियों को ईंधन सब्सिडी के तौर पर करीब 10,900 करोड रुपये का भुगतान करना पड सकता है क्योंकि वित्त मंत्रालय ने दिसंबर की तिमाही में बतौर नकदी सब्सिडी सिर्फ 5,085 करोड रुपये का भुगतान करने पर सहमति जतायी है.
सूत्रों ने बताया कि अक्तूबर की दिसंबर की तिमाही में सरकार द्वारा नियंत्रित दरों पर एलपीजी और केरोसिन बेचने पर ईंधन के खुदरा विक्रेताओं को 15,891 करोड रुपये का नुकसान हुआ और वित्त मंत्रालय ने नकदी सब्सिडी के तौर पर सिर्फ एक तिहाई या 5,085 करोड रुपये के भुगतान पर सहमति जताई है.
शेष 10,896 करोड रुपये का बोझ तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) और आयल इंडिया लिमिटेड को उठाना पडेगा. ओएनजीसी को इस राशि का करीब 80 प्रतिशत हिस्से (8,716 करोड रुपये) का भुगतान करना पडेगा. सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्रालय को यह समझाने की कोशिश की जा रही है कि कच्चे तेल की कीमत आधे से कम 50 डालर प्रति बैरल रह जाने के मद्देनजर ओएनजीसी और ओआईएल के लिए और अधिक सब्सिडी का भुगतान करना मुश्किल होगा.
चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही में ईंधन विक्रेता ओआईसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को लागत से कम कीमत पर ईंधन बेचने के संबंध में 51,110 करोड रुपये का नुकसान हुआ. इनमें से ज्यादातर राशि, 31,926 करोड रुपये उत्खनन कंपनियों से आए जबकि 17,000 करोड रुपये नकदी सब्सिडी के तौर पर बजट से आए.
सूत्रों ने कहा कि पेट्रोलियम मंत्रालय के पास दूसरी छमाही में एलपीजी और केरोसिन बिक्री पर होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए सब्सिडी के तौर पर 22,101 करोड रुपये थे ताकि ओएनजीसी और ओआईएल को किसी भुगतान से छूट प्रदान की जा सके.
ऐसा इसलिए हुआ कि ओएनजीसी और ओआईएल को 50 डालर प्रति बैरल की मौजूदा अंतरराष्ट्रीय कीमत पर शायद की कोई फायदा हुआ हो. सूत्रों के मुताबिक अक्तूबर से दिसंबर की तिमाही में ओएनजीसी को 75-76 डालर प्रति बैरल की कीमत मिली और सब्सिडी भुगतान जो उसे आईओसी, बीपीसीएल और एचपीसीएल को कच्चे तेल की कीमत में रियायत के तौर पर देना होता है, के बाद उसे वास्तविक मूल्य 35-36 डालर प्रति बैरल मिला.
ओएनजीसी की उत्पादन लागत करीब 40 डालर प्रति बैरल रही. अनुमान है कि पूरे वित्त वर्ष 2014-15 में खुदरा कंपनियों को लागत से कम ईंधन बिक्री पर 74,773 करोड रुपये का नुकसान होगा.
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