बैंक कर्मिकों पर उत्पाद बेचने का भारी दबाव, प्रोत्साहन राशि देना न्यायोचित नहीं : सर्वे

जयपुर : उपभोक्ता हितों के क्षेत्र में काम कर रहीं कट्स, कंज्यूमर इंटरनेशनल (सी.आई.) व विच यूके के सर्वेक्षण में सामने आया है कि 60 फीसद वित्तीय सेवाओं के उपभोक्ता यह महसूस करते हैं कि बैंकों द्वारा अपने कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि दिये जाने की परंपरा ही गलत है एवं यह भ्रामक तरीके से वित्तीय […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 22, 2015 5:18 PM

जयपुर : उपभोक्ता हितों के क्षेत्र में काम कर रहीं कट्स, कंज्यूमर इंटरनेशनल (सी.आई.) व विच यूके के सर्वेक्षण में सामने आया है कि 60 फीसद वित्तीय सेवाओं के उपभोक्ता यह महसूस करते हैं कि बैंकों द्वारा अपने कर्मचारियों को प्रोत्साहन राशि दिये जाने की परंपरा ही गलत है एवं यह भ्रामक तरीके से वित्तीय उत्पादों की बिक्री का कारण बनते हैं. कट्स के निदेशक जॉर्ज चेरियन ने बताया कि सर्वे में वित्तीय उत्पादों की गलत व अपूर्ण जानकारी भी एक बडी समस्या के रूप में निकल कर आई है.

सर्वे में 56 प्रतिशत उपभोक्ताओं को इन समस्याओं से पीडित होने के बाद किसी भी शिकायत निवारण व्यवस्था की जानकारी नहीं है. उन्होंने बताया कि सर्वें के अंतर्गत बैंक कर्मिकों से भी कुछ उत्तर प्राप्त हुए जिस के आकलन के पश्चात 81 प्रतिशत बैंककर्मिकों ने यह माना कि प्रोत्साहन राषि भी अधिक मिलती है तो उत्पादों की बिक्री पर और अधिक जोर लगाते हैं. सर्वे में 76 प्रतिशत बैंकर्स ने यह माना कि इन उत्पादों को किसी भी तरह से बेचने के लिए उन पर अधिक दबाव रहता है.

वहीं 26 प्रतिशत बैंककर्मिकों का मानना है कि इस तरह का दबाव कभी-कभी असहनीय हो जाता है. चेरियन ने कहा कि यह सर्वे देश के पांच प्रमुख शहरों – दिल्ली, कोलकता, मुम्बई, चेन्नई व जयपुर में उपभोक्ता व बैंककर्मिकों पर किया गया है. उन्‍होंने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक के उपभोक्ता चार्टर में यह साफ लिखा है कि बैंकों द्वारा वित्तीय सेवाओं को उपभोक्ताओं तक उचित रूप में पहुंचाना है जिसमें सभी प्रकार के वित्तीय उत्पाद शामिल हों.

उन्‍होंने कहा कि अगर ये प्रावधान सही ढंग से लागू किए जाएं तो गलत प्रचार व प्रसार के माध्यम से बेचे गये वित्तीय उत्पादों पर काफी हद तक रोकथाम हो सकेगी. भारतीय रिजर्व बैंक के बैंकिग सुपरविजन विभाग के अतिरिक्त महाप्रबंधक धर्मेन्द्र आजाद ने यह माना कि गलत ढंग से उत्पादों की बिक्री एक गंभीर समस्या बनती जा रही है और बैंकों को इसके लिए पारदर्शिता बनाये रखनी चाहिए.

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