नयी दिल्ली : दक्षिण एशियाई क्षेत्र में संघर्ष ने गरीबी उन्मूलन और मानव विकास सुधार की गति बाधित की है. यह बात पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज कही. उत्पादक संसाधनों तक पहुंच में असमानता और राजकाज संचालन प्रणाली में व्याप्त अक्षमता तथा असमानता संभवत: महत्वपूर्ण कारक हैं जो दक्षिण एशियाई क्षेत्र में वृद्धि एवं गरीबी उन्मूलन के बीच के फर्क का वर्णन करता है. उन्होंने कहा ‘क्षेत्र में संघर्ष और सुरक्षा विकास के आम एजेंडे के लिए बडी चुनौती बन गया है. इस क्षेत्र को जकडने वाले विभिन्न आंतरिक एवं अंतरराष्ट्रीय संघर्ष के बिना संतोषजनक समाधान के समावेशी विकास का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सकता.’
पूर्व प्रधानमंत्री यहां ‘साउथ एशियन यूनिवर्सिटी’ द्वारा आयोजित सम्मेलन में बोल रहे थे. पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि विभिन्न देशों और इस क्षेत्र की सामूहिक आर्थिक वृद्धि के बावजूद दक्षिण एशिया में अभी भी गरीबों, अशिक्षितों और कम शिक्षितों की तादाद दुनिया में सबसे अधिक है. सिंह ने कहा कि इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाओं से जुडी ज्यादातर चर्चा अपर्याप्त अंतर्क्षेत्रीय व्यापार, पूरे क्षेत्र में भौतिक संपर्क का अभाव और ऊर्जा की भारी कमी समेत वृद्धि के समक्ष आने वाली बाधाओं पर केंद्रित रही है.
उन्होंने कहा ‘वृद्धि को प्रोत्साहित करने के माध्यमों पर जोर देना उचित है लेकिन हमें इससे परे भी जाने की जरुरत है और यह समझना होगा कि पिछले कुछ दिनों में दक्षिण एशियाई देशों में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद गरीबी उन्मूलन और आबादी के बडे हिस्से के मानव विकास में सुधार क्यों नहीं हुआ.’ सिंह ने नवंबर 2005 में हुए 13वें दक्षेस सम्मेलन को याद करते हुए कहा कि उन्होंने साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के निर्माण का विचार रखा था.
जाने माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने अपने मुख्य भाषण में कहा कि भारत पिछले 25 साल की वृद्धि की दौड में कई सामाजिक मानकों पर भारत बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से पिछड गया. उन्होंने कहा कि गरीबी में कमी वृद्धि की गति के अनुरुप नहीं है और इसकी वजह है सामाजिक असमानता. रांची विश्वविद्यालय के विजिटिंग प्रोफेसर और दिल्ली स्कूल ऑफ इकनामिक्स के मानद प्रोफेसर हैं.
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