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कंडोम आपूर्ति मुद्दे पर निजी कंपनी ने केंद्र को हाईकोर्ट में घसीटा

नयी दिल्ली : एक कंडोम निर्माता कंपनी ने केंद्र को दिल्ली उच्च न्यायालय में घसीटते हुए यह शंका जाहिर की है कि निविदा की प्रक्रिया में बाकियों को पछाडने के बावजूद उसे 10 करोड़ से ज्यादा कंडोम की आपूर्ति के अनुबंध से वंचित किया जा सकता है. इस मामले में निजी कंपनी ने सरकार के […]

नयी दिल्ली : एक कंडोम निर्माता कंपनी ने केंद्र को दिल्ली उच्च न्यायालय में घसीटते हुए यह शंका जाहिर की है कि निविदा की प्रक्रिया में बाकियों को पछाडने के बावजूद उसे 10 करोड़ से ज्यादा कंडोम की आपूर्ति के अनुबंध से वंचित किया जा सकता है.

इस मामले में निजी कंपनी ने सरकार के पिछले साल के उस फैसले का हवाला दिया, जिसमें उसने निजी कंपनी की सफल बोली को नजरअंदाज करते हुए एक सार्वजनिक क्षेत्र निगम (पीएसयू) को कंडोम की आपूर्ति में शामिल करने का फैसला किया था. उच्च न्यायालय ने अपने अंतरिम आदेश में केंद्र को निर्देश दिए कि वह राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के तहत मान्यता प्राप्त समाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा वितरित किए जाने वाले पुरुष गर्भनिरोधकों की आपूर्ति की निविदा प्रक्रिया रद्द न करे. उसने कहा कि अंतरिम आदेश निविदा के आडे नहीं आएगा.

अदालत एमएचएल हेल्थकेयर लिमिटेड नामक निजी कंपनी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में कंपनी ने शंका जाहिर की थी कि पिछले साल की तरह केंद्र इस बार भी पूरी प्रक्रिया रद्द कर सकता है. न्यायमूर्ति बदर दुरेज अहमद और न्यायमूर्ति संजीव सचदेवा की पीठ ने कहा, यह याचिका याचिकाकर्ता ने इस शंका के आधार पर दायर की है कि हर बार, जब निविदा निकाली जाती है, तब वह एल 1 (सबसे कम कीमत पर आपूर्ति का प्रस्ताव देने वाला) होता है…और फिर निविदा खारिज कर दी जाती है. इस बार भी निविदा के खारिज कर दिए जाने के संशय के साथ वह अदालत के समक्ष आया है. इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख तक निविदा रद्द करने संबंधी कोई आदेश पारित नहीं किए जाने चाहिए.

अदालत ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय से भी कहा कि वह दो सप्ताह के भीतर इस याचिका पर अपना एक जवाबी हलफनामा दे. इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई को 14 जुलाई के लिए स्थगित कर दिया. पीठ ने उस एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड (भारत सरकार का उपक्रम) को नोटिस जारी किया, जिसे पिछले साल निविदा रद्द होने के बाद कंडोम आपूर्ति का ऑर्डर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने दिया था.

एमएचएल का पक्ष अदालत में रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता डी. कृष्णन ने कहा कि पिछली बार भी सरकार ने आपूर्ति की निविदा एक सरकारी एजेंसी को निजी कंपनी द्वारा प्रस्तावित कीमत की तुलना में कहीं उंचे दाम पर दे दी थी. एमएचएल ने कहा कि पिछली बार भी वह गर्भनिरोधकों की आपूर्ति के लिए शीर्ष बोलीकर्ता थी. मंत्रालय ने निविदा रद्द कर दी थी और ऑर्डर एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड को दे दिया गया था. एचएलएल लाइफकेयर लिमिटेड को यह ऑर्डर प्रति 100 पीस के लिए 180.77 रु की कीमत पर 20 करोड़ कंडोम की आपूर्ति के लिए दिया गया था.

पीठ ने कहा कि वह सभी प्रतिवादियों द्वारा इस याचिका पर जवाबी हलफनामे दायर किए जाने के बाद मामले के गुण-दोष के आधार पर इसकी सुनवाई करेगी. पिछले साल सात नवंबर को केंद्र ने अदालत को बताया था कि उसने पुरुष गर्भ निरोधकों की आपूर्ति की निविदा रद्द कर दी है और नई प्रक्रिया शुरु की जा चुकी है.

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