सरकार पर बरसे सुब्बाराव,रुपये की गिरावट को लेकर सुनायी खरी-खरी

मुंबई:रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने सेवानिवृत्ति से पहले अपने आखिरी सार्वजनिक संबोधन में गुरुवार को मौजूदा आर्थिक हालात के लिए सीधे सरकार की ढुलमुल वित्तीय नीतियों को जिम्मेदार ठहराया और चेतावनी देते हुए कहा कि रुपये के अवमूल्यन के पीछे घरेलू संरचनात्मक कारक ही मूल वजह हैं. सुब्बाराव ने कहा, हालांकि, रुपये में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 29, 2013 11:59 PM

मुंबई:रिजर्व बैंक के गवर्नर डी सुब्बाराव ने सेवानिवृत्ति से पहले अपने आखिरी सार्वजनिक संबोधन में गुरुवार को मौजूदा आर्थिक हालात के लिए सीधे सरकार की ढुलमुल वित्तीय नीतियों को जिम्मेदार ठहराया और चेतावनी देते हुए कहा कि रुपये के अवमूल्यन के पीछे घरेलू संरचनात्मक कारक ही मूल वजह हैं.

सुब्बाराव ने कहा, हालांकि, रुपये में गिरावट का समय और उसकी रफ्तार के पीछे अमेरिका के फेडरल रिजर्व की घोषणा पर बाजार की त्वरित प्रतिक्रिया ही रही है, लेकिन हम यदि यह नहीं मानेंगे कि समस्या की असली वजह घरेलू कारक हैं तो हम इसके निदान और इलाज दोनों ही मामले में रास्ते से भटक जायेंगे.

करें सच का सामना

उन्होंने कहा कि यह कहना भ्रामक होगा कि रुपये में गिरावट हाल में अमेरिका की फेडरल रिजर्व द्वारा की गयी घोषणा की वजह से आयी है, इसकी वजह से डॉलर के मुकाबले रुपये हाल ही में 23 प्रतिशत तक गिर गया. रिजर्व बैंक गवर्नर के तौर पर सुब्बाराव का कार्यकाल अगले सप्ताह समाप्त हो रहा है. उन्होंने कहा कि रुपये के अवमूल्यन के बारे में ऐसी धारणा बढ़ती जा रही है कि यह सब अमेरिका के फेडरल रिजर्व द्वारा नकदी विस्तार की अपनी मौद्रिक नीति में धीरे धीरे सख्ती लाने की घोषणा से हुआ है. मेरा मानना है कि इस तरह का निष्कर्ष भ्रामक है.

आरबीआइ भी है जिम्मेदार

सुब्बाराव ने माना कि देश की आर्थिक वृद्धि में सुस्ती की कुछ वजह रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीति भी रही है लेकिन उन्होंने कहा कि भारत की आर्थिक गतिविधियों में धीमापन आने की काफी कुछ वजह आपूर्ति पक्ष की अड़चनों और प्रशासन से जुड़े मुद्दे रहे हैं जो कि पूरी तरह से रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं.


वित्तीय नीतियों की जिम्मेदारी

सुब्बाराव ने वर्ष 2009 से लेकर 2012 तक सरकार की कमजोर वित्तीय नीतियों को कमजोर आर्थिक वृद्धि और ऊंची मुद्रास्फीति के लिए दोषी ठहराया. उन्होंने कहा कि यदि वित्तीय मजबूती तेजी से होती तो संभव था कि मौद्रिक नीति में इतनी सख्ती नहीं होती. गवर्नर ने कहा कि समस्या की असली वजह चालू खाते का ऊंचा घाटा (कैड) है जो कि पिछले तीन साल से लगातार ऊंचा बना हुआ है. इस तरह के संरचनात्मक निदान के लिए रिजर्व बैंक के पास नीतिगत मामले में बहुत कम गुंजाइश बची है. ये उपाय सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. सुब्बाराव ने कहा कि हालांकि अंतरिम समय के दौरान हम रुपये में स्थिरता लाना चाहते हैं, इसमें भारी उतार चढाव को कम करना चाहते हैं जो कि रिजर्व बैंक के दायरे में आता है.

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