मुंबई : बिजली उत्पादन की लागत को कम करने और कार्बन फुटप्रिंट को घटाने के प्रयास के तहत महाराष्ट्र सरकार ने फैसला किया है कि वह वर्ष 2019 तक गैर-पारंपरिक स्रोतों की मदद से 14,400 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करेगी और जल्द ही इस पर एक नीति भी लेकर आएगी. राज्य के ऊर्जा विभाग के एक अधिकारी ने कहा, ‘सरकार वर्ष 2019 तक गैर-पारंपरिक तरीकों से 14,400 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करना चाहती है. इसके लिए हम निजी कंपनियों को आमंत्रित करेंगे और ये कंपनियां इस काम के लिए लगभग 70-80 हजार करोड रुपये का निवेश करेंगी.’
उन्होंने कहा, ‘इस संदर्भ में जल्द ही एक नीति लाई जाएगी. ऊर्जा का यह स्रोत पारंपरिक स्रोतों की तुलना में कहीं सस्ता और बेहतर है. गैर-पारंपरिक स्रोतों का इस्तेमाल कर हम यह भी सुनिश्चित कर सकते हैं कि हमने पर्यावरण की सुरक्षा की.’ अधिकारी ने कहा कि प्रशासनिक तौर पर नीति को अंतिम रूप दिया जा चुका है और जल्द ही इसे मुख्यमंत्री के सामने पेश किया जाएगा. इसके बाद इसे कैबिनेट के पास मंजूरी के लिए भेजा जाएगा.
बिजली उत्पादन के स्रोतों के बारे में अधिकारी ने कहा कि सौर ऊर्जा से 75 हजार मेगावॉट और पवन चक्कियों से पांच हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन होगा. अधिकारी ने कहा कि चीनी उद्योग 1,000 मेगावॉट बिजली बनाने में मदद करेगा, सहनिर्माण से 200 मेगावॉट बिजली बनेगी, बायोगैस से 300 मेगावॉट बिजली बनेगी और औद्योगिक अपशिष्ट से 400 मेगावॉट बिजली बनेगी.
उन्होंने कहा, ‘इन स्रोतों का इस्तेमाल इनकी उपलब्धता के आधार पर किया जाएगा. उदाहरण के लिए, पश्चिमी महाराष्ट्र में कई चीनी मिल हैं. इसलिए उस क्षेत्र से 1,000 मेगावॉट बिजली का निर्माण होगा.’ अधिकारी ने कहा कि निजी कंपनियों द्वारा बनायी गयी बिजली को सरकार भी खरीदेगी. उन्होंने कहा, ‘बिजली चोरी पर रोक लगाने के लिए और इसका सीधे ग्राहकों तक पहुंचना सुनिश्चित करने के लिए स्थानों विशेष पर फीडर प्रबंधक लगाये जाएंगे. एमएसइडीसीएल के पास फिलहाल 17 हजार फीडर प्रबंधक हैं. हर तय स्थान पर पांच फीडर लगाये जाएंगे.’
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