जानिए कैसे कॉल ड्राप से टेलिकम कंपनियां काटती हैं आपकी जेब, TRAI लगायेगा इन कंपनियों पर लगाम
।। अमलेश नंदन ।। कॉल ड्राप से परेशान ग्राहकों की परेशानी दूर करने के लिए ट्राई ने अब कमर कस ली है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने कॉल ड्रॉप की बढती समस्या से निपटने के लिए नये सेवा गुणवत्ता मानक तय किये हैं. इन मानकों पर खरे नहीं उतरने वाले दूरसंचार ऑपरेटरों के खिलाफ […]
।। अमलेश नंदन ।।
कॉल ड्राप से परेशान ग्राहकों की परेशानी दूर करने के लिए ट्राई ने अब कमर कस ली है. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने कॉल ड्रॉप की बढती समस्या से निपटने के लिए नये सेवा गुणवत्ता मानक तय किये हैं. इन मानकों पर खरे नहीं उतरने वाले दूरसंचार ऑपरेटरों के खिलाफ कडी दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. आमतौर पर सभी दूरसंचार कंपनियों ने अपने ग्राहकों के लिए कॉल दरें सेकेण्ड में चार्ज करने की सुविधा दे रखी है.
लेकिन काल दरें सस्ते करने की मुहीम में कंपनियों का मिनट वाला प्लान ज्यादा सस्ता मालूम होता है. इसी प्रकार की लालच देकर कंपनियां एक मिनट वाले दर से ग्राहकों से पैसा वसूलती है, जबकि ग्राहकों की ओर से की जाने वाली कॉल्स कुछ सेकेण्ड में ही अपने आप कट हो जाती है. इस कटने वाली काल्स पर भी कंपनियां पूरे मिनट का पैसा काटती हैं. इससे ग्राहकों को काफी चूना लगता है और कंपनियां मालामाल हो रही हैं.
इससे निपटने के लिए ही ट्राई ने कंपनियों पर लगाम लगाने की तैयारी की है. ट्राई के चेयरमैन राहुल खुल्लर ने कहा कि नये मानदंडों की घोषणा एक माह के भीतर की जाएगी. खुल्लर ने कहा कि इस पर काम जारी है. हालांकि, उन्होंने इन नये मानकों के बारे में नहीं बताया. उनसे पूछा गया था कि क्या नियामक सेवाओं की गुणवत्ता के नियमों में बदलाव की तैयारी कर रही है. कॉल ड्रॉप या कॉल बीच में कटने की समस्या हाल के समय में तेजी से बढी है.
कई सांसदों ने यह मुद्दा दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद के साथ भी उठाया है. दूरसंचार सचिव राकेश गर्ग ने सोमवार को इस मुद्दे पर आपरेटरों को आडे हाथ लेते हुए उपभोक्ताओं की शिकायतों को जल्द दूर करने व नेटवर्क में सुधार को कहा. ट्राई पहले ही सेवाओं की गुणवत्ता के कई मानकों को पारिभाषित कर चुका है. इनमें कॉल ड्रॉ, बिलिंग, शिकायत निपटान आदि से संबंधित मानक हैं.
नियामक किसी आपरेटर के प्रदर्शन का आकलन 10 मानदंडों पर करता है. इनमें से किसी भी एक मानक के बारे में नियामक को गलत रिपोर्ट देने पर 10 लाख रुपये तक जुर्माना लगाया जाता है. पहली बार अनुपालन न किये जाने पर 50,000 रुपये का जुर्माना लगता है और उसके बाद प्रत्येक गैर अनुपालन पर एक-एक लाख रुपये जुर्माना लगाया जाता है.
क्या है कॉल ड्राप?
जब आप किसी भी नेटवर्क से किसी अन्य व्यक्ति को कॉल करते हैं तो बात पूरी हुए बिना काल बीच में ही कट जाती है. कंपनी की ओर से मैसेज आता है कि नेटवर्क एरर की वजह से यह कॉल कट हो गयी. बाद में ग्राहक जब फिर से कॉल करता है तब जाकर दूसरे व्यक्ति से उसकी पूरी बात हो पाती है. ऐसी स्थिति में कॉल करने वाले व्यक्ति का कॉल अगर कुछ सेकेण्ड में भी कट जाता है तो कंपनी पूरी मिनट का पैसा लेती है.
कंपनियों का इस संबंध में सबसे तगड़ा जवाब नेटवर्क में खराबी है. अब आपको बता दें कि कई दूरसंचार कंपनियां जानबूझ कर कॉल ड्राप करवाती है, जिससे उनको महीनें में लाखों-करोड़ों का फायदा होता है. एक बड़े बिजनेश अखबार ने कॉल ड्राप की मुहिम चलायी है, जिसपर ट्राई ने सख्ती दिखाते हुए कंपनियों को आगाह किया है.
कॉल ड्राप का एक बड़ा कारण कमरे के अंदर नेटवर्क का पूरी तरह नहीं आना भी है. ऐसी स्थिति के लिए भी कंपनियां ही जिम्मेवार हैं. इसके अलावे दूरसंचार कंपनियां ग्राहकों की अनुमति के बिना कई प्रकार की सेवाएं एक्टिवेट कर पैसा वसूलने का काम करती है. कई ग्राहक परेशानी से बचने के लिए इसकी शिकयत नहीं करते और नुकसान झेलते रहते हैं.
कॉल ड्रॉप होने का तकनीकी कारण भी है
कॉल ड्रॉप होने में तकनीकी कारण भी प्रमुख होता है. असल में आप अपने आस-पास जो मोबाइल टावर देखते हैं, वो बीटीएस यानी बेस ट्रांसिवर स्टेशन कहलाता है. हर बीटीएस टावर की एक सीमित क्षमता होती है जिसके हिसाब से उसके दायरे में आने वाले मोबाइल फोन इस्तेमाल किये जा सकते हैं. मान लीजिये आपके इलाके में बीटीएस टावर की बैंडविड्थ क्षमता के हिसाब से 800 लोग मोबाइल हैंडसेट से बिना परेशानी के फोन कॉल कर सकते हैं.
लेकिन अगर आपके इलाके में 800 की जगह 1500 लोग मोबाइल फोन इस्तेमाल करते हैं तो निश्चित है कि उस इलाके में बैंडविड्थ की कमी होगी और नेटवर्क में कंजेशन होगा. ऐसी हालत में जब आप किसी को फोन लगायेंगे तो जल्दी फोन नहीं लगेगा, नेटवर्क बिजी आएगा और अगर फोन लग गया तो आपके क्षेत्र में मोबाइल फोन इस्तेमाल करने वाले लोगों की संख्या ज्यादा होने से आपकी कॉल बार-बार डिस्कनेक्ट होती रहेगी.
लेकिन ऐसा होने के पीछे भी मोबाइल कंपनियों की तरफ से अपने नेटवर्क पर उचित ध्यान नहीं देना असली वजह है. देश में आज से दस साल पहले जितने मोबाइल फोन ग्राहक थे उसके अनुपात में समय के साथ इनकी संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है जिसकी वजह से देश में मौजूद मोबाइल टावरों की संख्या कम है.
चूंकि, नए मोबाईल टावर लगाने को लेकर कोर्ट और सरकारों की तरफ से रेडियो विकिरण को लेकर नियम सख्त किये गए हैं और स्थानीय नगर निकायों ने भी सही तरीके से निबंधन के बाद ही अपने इलाकों में मोबाइल बीटीएस लगाने की अनुमति देने का नियम बनाया है, ऐसे में मोबाइल सेवा देने वाली कम्पनियां इन तमाम कारणों से नए बीटीएस लगाने से कतराती हैं और सिर्फ उन्हीं इलाकों में नेटवर्क सुविधा पर ज्यादा ध्यान देती हैं, जहां से उन्हें ज्यादा आय होती है या फिर जो इलाके महत्वपूर्ण हैं.
मोबाइल कंपनियों की तरफ से देश के सभी इलाकों को एक समान सेवा नहीं देना एक तरह से ग्राहकों के साथ दोहरे व्यवहार करने जैसा है. इसके अलावा एक बीटीएस टावर लगाने और रख रखाव में कंपनी को लाखों का खर्च आता है. इसलिए भी कंपनियां बीटीएस टावरों की संख्या बढ़ाने से कतराती हैं.इस बात को लेकर काफी अरसे से लोग तमाम तरीके से शिकायत करते रहे हैं.
हाल ही में देश के विभिन्न हिस्सों के सांसदों ने भी दूरसंचार मंत्री रवि शंकर प्रसाद से मिलकर इस परेशानी की शिकायत की थी. इस पर मंत्री ने मोबाइल कंपनियों को इसमें सुधार लाने की बात कही थी. अब ट्राई ने भी लम्बे समय से लोगों को हो रही इस परेशानी का संज्ञान लिया है. ऐसे में ये उम्मीद बढ़ चली है कि आने वाले समय में जल्द ही लोगों को नेटवर्क की वयस्तता और कॉल ड्रॉप की परेशानी से मुक्ति मिल सकेगी.
डेटा शुरु करने से पहले ग्राहकों की स्पष्ट सहमति आवश्यक
दूरसंचार नियामक ट्राई ने प्रस्ताव किया कि दूरसंचार कंपनियों को डेटा सेवा शुरू करने के लिए अपने ग्राहकों की स्पष्ट सहमति लेनी चाहिए और इसके लिए वे ‘टोलफ्री शार्ट कोड’ 1925 का इस्तेमाल कर सकती हैं. ट्राई का यह कदम डेटा इस्तेमाल के बारे में ग्राहकों की शिकायतों को दूर करने की दिशा में एक कदम है.
ट्राई ने कहा है, ‘यह प्रस्तावित किया जाता है कि डेटा सेवाओं को शुरू या बंद फ्री शार्ट कोड 1925 के जरिए ग्राहक की स्पष्ट सहमति से ही किया जाए.’ ट्राई ने दूरसंचार उपभोक्ता संरक्षण (अठारहवां संशोधन) नियमन, 2015 का मसौदा जारी किया है. इस पर भागीदारों की राय 12 मई तक मांगी गई है.
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