2 जून से पहले ब्याज दरों में कटौती कर सकता है RBI : SBI

नयी दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक दो जून को पेश होने वाली अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा से पहले भी नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है. एसबीआई के एक अनुसंधान पत्र में कहा गया है कि ऐसा मुद्रास्फीति घटने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा साल के अंत में ब्याज दरों में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 7, 2015 5:32 PM

नयी दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक दो जून को पेश होने वाली अपनी मौद्रिक नीति समीक्षा से पहले भी नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है. एसबीआई के एक अनुसंधान पत्र में कहा गया है कि ऐसा मुद्रास्फीति घटने और अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा साल के अंत में ब्याज दरों में बढोतरी की संभावना के मद्देनजर हो सकता है.

रपट के मुताबिक ब्याज दर में यह कटौती 12 मई के बाद होने की संभावना है जबकि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आंकडे जारी किए जाने हैं.
इसके अनुसार, मुद्रास्फीति में नरमी और साल के अंत में अमेरिकी फेडरल रिवर्ज द्वारा ब्याज दरों में बढोतरी की संभावना के बीच भारतीय रिजर्व बैंक दो जून से पहले नीतिगत ब्याज दर में 0.25 प्रतिशत की कटौती कर सकता है. रपट में कहा गया कि अप्रैल की मुद्रास्फीति पांच प्रतिशत से कम रहन सकती है और बडी संभावना है कि यह करीब 4.75 प्रतिशत रहेगी. थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति घटकर शून्य से 2.7 प्रतिशत या इससे भी कम के स्तर पर आ जाने की संभावना है.
अप्रैल की द्वैमासिक तिमाही मौद्रिक नीति में मुख्य दरों को स्थिर रखने से पहले आरबीआई ने रेपो दर दो बार 0.25-0.25 प्रतिशत की कटौती कर 7.50 प्रतिशत कर दिया. रेपो दरों में कटौती मुख्य तौर पर सब्जियों और फलों की कीमत में गिरावट, अनाज की गिरती कीमत और अंतरराष्ट्रीय जिंसों तथा कच्चे तेल की कीमत घटने से प्रेरित थी.
आरबीआई की अगली मौद्रिक नीति समीक्षा दो जून को होनी है. फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में बढोतरी के संबंध में रपट में कहा गया कि संभव है वह गैर-वृह्त कारणों से 2015 में ब्याज दरें बढाए. एसबीआई की रपट में कहा गया कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दर अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव से काफी हद तक जुडी है. बडी संभावना है कि अमेरिका इस साल सितंबर-दिसंबर के बीच ब्याज दरें बढाए.
रपट में कहा गया, पिछले सालों के रुझान के आकलन से स्पष्ट है कि कम से कम 37 प्रतिशत संभावना रहती है कि चुनावी वर्ष में ब्याज दरों में बढोतरी सत्ताधारी दल की स्थिति पर असर हो.

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