भ्रष्‍टाचार निरोधक कानून में संशोधन चाहती है मोदी सरकार, बड़े बाबुओं को मिलेगी राहत

नयी दिल्‍ली : नरेंद्र मोदी सरकार पिछले यूपीए सरकार द्वारा बनाये गये भ्रष्‍टाचार निरोधक (संसोधन) अधिनियम 2013 में बदलाव कर बड़े बाबुओं को राहत देने की फिश्राक में हैं. संशोधन विधेयक सदन में पेश किया जाएगा. इस विधेयक के पारित हो जाने से कंपनियों के टॉप बॉस को निचले अधिकारियों द्वारा की गयी भ्रष्‍ट हरकतों […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 12, 2015 12:53 PM

नयी दिल्‍ली : नरेंद्र मोदी सरकार पिछले यूपीए सरकार द्वारा बनाये गये भ्रष्‍टाचार निरोधक (संसोधन) अधिनियम 2013 में बदलाव कर बड़े बाबुओं को राहत देने की फिश्राक में हैं. संशोधन विधेयक सदन में पेश किया जाएगा. इस विधेयक के पारित हो जाने से कंपनियों के टॉप बॉस को निचले अधिकारियों द्वारा की गयी भ्रष्‍ट हरकतों के लिए दोषी नहीं माना जायेगा.

संशोधित कानून में है कि जबतक उच्‍च अधिकारी की संलिप्‍तता किसी मामले में पूरी तरह साबित नहीं हो जाती बड़े अधिकारी पर कानून का शिकंजा नहीं कसेगा.अंग्रेजी अखबार इकोनोमिक टाइम्‍स में छपी खबर के अनुसार 2013 वाला विधेयक 1988 के भ्रष्टाचार निरोधक कानून में संशोधन के मकसद से पेश किया गया था.

इसमें एक प्रावधान करके किसी भी व्‍यवसायिक संगठन में भ्रष्‍टाचार की जिम्मेदारी हर उस शख्स पर डाल दी गई थी, जिस पर उसमें होने वाले कामकाज पर नजर रखने की जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. 2013 वाले बिल के मुताबिक व्यावसायिक संगठन का कोई भी ऑफिसर तब करप्शन दोषी पाया जाएगा, अगर यह पता चलता है कि वह उसकी अनदेखी के चलते हुआ है और मामले में खुद को निर्दोष साबित करने की जिम्मेदारी उसी पर होगी.

इस कानून के तहत करप्शन के अपराध के दोषियों के लिए तीन से सात साल की सजा तय की गई है. कंपनियों में बॉस के खिलाफ इस कानून का दुरुपयोग होने और उनका उत्पीड़न होने का रिस्क बना हुआ है. खबर है कि एनडीए सरकार की तरफ से इस कानून में नये संशोधन से विधेयक के अहम प्रावधान बदल गये हैं.

अब किसी कंपनी में हुए भ्रष्‍टाचार में उसके डायरेक्टर, मैनेजर, सेक्रेटरी या दूसरे ऑफिसर तब दोषी माने जाएंगे जब यह साबित हो जाएगा कि भ्रष्‍टाचार वैसे ऑफिसर की इजाजत या मिलीभगत से हुआ है. भ्रष्‍टाचार में मिलीभगत होने का दोष साबित करने की जिम्मेदारी अब सरकारी एजेंसी की होगी.

जबकि 2013 के प्रोविजन में आरोपियों को शुरू में ही दोषी मान लिया जाता था. अखबार ने लिखा है कि प्रिवेंशन टु करप्शन (अमेंडमेंट) ऐक्ट 2015 पर सोमवार को राज्यसभा में पेश किया जाना तय हुआ था, लेकिन सदन के बारबार स्थगित होने के चलते उसे पेश नहीं किया जा सका.

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