नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली जल्द ही सरकारी बैंकों के साथ बैठक कर उनमें हिस्सेदारी की बिक्री और बढते एनपीए (गैर निष्पादक आस्तियां) की समस्या पर चर्चा करेंगे. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का एनपीए बढकर 2.5 लाख करोड रुपये तक पहुंच गया है. उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा ‘बैंक मुझसे मिलने आ रहे हैं. कुछ बैंक तात्कालिक मुद्दों के संबंध में मुझसे मुलाकात करने आ रहे हैं.’ वह इस प्रश्न का जवाब दे रहे थे कि बैंकिंग क्षेत्र में बढते एनपीए से सरकार किस प्रकार निपटने की योजना बना रही है.
उन्होंने कहा ‘एनपीए चिंता वाला क्षेत्र है. निजी क्षेत्र का निवेश और निजी क्षेत्र के प्रदर्शन में सुधार लाना होगा (जिससे एनपीए का दबाव कम होगा)’ आरबीआइ के आंकडों के मुताबिक सरकारी बैंकों का सकल एनपीए दिसंबर 2014 में बढकर 2,60,531 करोड रुपये तक पहुंच गया. कर्ज लेकर समय पर नहीं लौटाने वाले 30 डिफाल्टर पर 95,122 करोड रुपये बकाया है जो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के कुल एनपीए का एक तिहाई 36.50 प्रतिशत है.
उन्होंने कहा कि सरकार ने बैंकों को पहले ही उनमें सरकारी हिस्सेदारी घटाकर 52 प्रतिशत तक लाने की मंजूरी दी है ताकि वे बाजार से पूंजी जुटा सकें. उम्मीद की जा रही है कि भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआइ) और कुछ अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बाजार से 16,000 करोड रुपये से अधिक पूंजी जुटाएंगे ताकि वे अपनी पूंजी जरुरत को पूरी कर सकें. सरकार ने एसबीआइ को बाजार से 15,000 करोड रुपये और ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स को 1,000 करोड रुपये जुटाने की मंजूरी दी है.
इधर, केनरा बैंक चार करोड शेयर बेचकर धन जुटाना चाहता है. बैंक मौजूदा बाजार मूल्य पर करीब 1,500 करोड रुपये जुटा सकेगा. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी को कम करके 52 प्रतिशत तक लाने से कुल 1.60 लाख करोड रुपये तक जुटाये जा सकेंगे. सार्वजनिक क्षेत्र के कुल 27 बैंकों में से बहुलांश हिस्सेदारी के जरिए भारत सरकार का 22 बैंकों पर नियंत्रण है. शेष पांच बैंकों में सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय स्टेट बैंक की बहुलांश हिस्सेदारी है.