जानिए, कैसे हुई ग्रीस संकट की शुरुआत, अब क्या करने होंगे उपाय?

डिजीटल रिसर्च डेस्क ग्रीस का आर्थिक संकट काफी गहरा हो चुका है. यह देश अपनी आर्थिक हैसियत से अधिक खर्च करने के लिए दुनिया भर में बदनाम हो चुका है. उस पर, वहां की वामपंथी सीरिजा पार्टी की सरकार ने इस देश के आर्थिक संकट को गहराया ही है. उसके उलटे दावों और फैैसलों ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 29, 2015 11:45 AM

डिजीटल रिसर्च डेस्क

ग्रीस का आर्थिक संकट काफी गहरा हो चुका है. यह देश अपनी आर्थिक हैसियत से अधिक खर्च करने के लिए दुनिया भर में बदनाम हो चुका है. उस पर, वहां की वामपंथी सीरिजा पार्टी की सरकार ने इस देश के आर्थिक संकट को गहराया ही है. उसके उलटे दावों और फैैसलों ने यहां के लोगों के जीवन यापन की संभावनाओं को जटिल बना दिया है. यहां के आर्थिक संकट के कारण भारत, जापान , हांगाकांग जैसी प्रमुख बाजारों में आज भारी गिरावट आयी है. ग्रीस के प्रधानमंत्री एलिक्सिस त्सिप्रास ने सोमवार को देश के सभी बैंकों को बंद रखने का निर्देश दिया है. एटीएम मशीनों से लोग 60 यूरो से अधिक नहीं निकाल सकते हैं और इस कारण वहां एटीएम पर भारी भीड भी है. घाटे में चल रहे बैंकों पर ताले लटका दिये गये हैं. हालांकि फिलहाल इंटरनेर ट्रांजेक्शन जारी है.
सरकार ने हफ्ते भर के लिए बैंकों का कामकाज रोक दिया है. लोग अनुमति बिना देश से बाहर पैसे नहीं भेज सकते हैं. वहीं, यूरोपीय सेंट्रल बैंक ने ग्रीस की बैंकिंग प्रणाली के लिए अब और आपातकालीन सहायता नहीं देने का निर्णय ले लिया है. विपक्ष वहां, मौजूदा सरकार की विदाई पर तुला है, जबकि सत्तापक्ष भावी फैसलों के लिए जनमत संग्रह की ओर रुख कर रहा है.
ग्रीस के आर्थिक संकट की शुरुआत कैसे हुई?
अब जब कई सालों से चल रहा ग्रीस संकट अपने चरम पर पहुंच गया है, तो शायद दुनिया भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ रघुराम राजन की बातों को अधिक वास्तविक ढंग से समझ सकती है, जो हमेशा दुनिया के देशों को अपने खर्चों पर लगाम लगाने की सलाह देते हैं. ग्रीस अपने बेतहाशा खर्च के कारण आज डिफॉल्ट होने के मुहाने पर खडा है. अबतक कंपनियां व व्यक्ति डिफॉल्ट होते थे. लेकिन, अगर ग्रीस डिफॉल्ट होता है, तो दुनिया के आर्थिक इतिहास में ग्रीस ऐसा पहला देश होगा, जो डिफॉल्टर घोषित किया जायेगा. उसे डिफाल्ट घोषित करने के लिए 20 जुलाई की तारीख निर्णायक हो सकती है.
ग्रीस के इस आर्थिक महामंदी तक पहुंचने की शुरुआत आज से डेढ दशक पहले ही हो गयी थी, जब भीषण भूकंप से पीिउत इस देश को अपने यहां ध्वस्त आधारभूत संरचना को पुन: खडा करने के लिए भारी राशि खर्च की. 1999 में इस देश को 50 हजार इमारतों का निर्माण करना पडा था. इस परिस्थिति के बाद 2001 में ग्रीस इस प्रलोभन से कि उसे आसानी से कर्ज मिलेगा, वह यूरो जोन में शामिल हो गया. अगर कर्ज लेने की हैसियत वह अपनी शाख पर पाता तो शायद अधिक बेहतर होता, पर वह छद्म में उलझा रहा और अदूरदर्शी सरकारों ने संकट को लगातार गहराया.
फिर 2004 में ओलिंपिक खेल करवाने में वहां की सरकार ने भारी राशि खर्च की. इसके लिए उसने यूरो जोन से कर्ज लिया. उसने ओलिंपिक के लिए 12 अरब डॉलर से अधिक की राशि खर्च की, जो घर फूंक तमाशा देखने जैसा ही था. ग्रीस ने यूरोपीय जोन व दुनिया को अपने आर्थिक हालात के मद्देनजर धोखे में रखने के लिए खातों में हेर-फेर भी की. इसने उलटे उसकी विश्वसनीयता को अंतरराष्ट्रीय बाजार में खत्म कर दिया.
इसके बाद, ग्रीस ने 2010 में ग्रीस ने यूरो जोन, यूरोपियन सेंट्रल बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से 10 अरब डॉलर का राहत पैकेज लिया. दूसरा राहत पैकेज भी उसे दिया गया. पर, ग्रीस सुधारों की राह पर धीमा चलता रहा व राहत पैकेजों की शर्तों का पालन करने में विफल रहा. पर, फिर भी उसे आइएमएफ की मदद इसलिए मिली कि शायद अब वह अपनी नियति बदल ले और उसे समयबद्ध रूप से आर्थिक पैकेज देने की सहमति हो गयी. लेकिन, इसी दौरान संसदीय चुनाव में वहां वामपंथी सीरिजा पार्टी की सरकार बन गयी, जिसने चुनाव में यह वादा किया था कि वह बेलआउट की शर्तों को ठुकरा देगा. इससे लोगों की परेशानी और बढ गयी.
आबादी 1.10 करोड, कर्ज 340 अरब यूरो
ग्रीस यूरोप का एक छोटा और समृद्ध ऐतिहासिक विरासत वाला देश है, जिसकी आबादी तो मात्र 1.10 करोड है, लेकिन उस पर कर्ज 340 अरब यूरो का है. यह कर्ज उसके सकल घरेलू उत्पाद से भी बहुत अधिक है. उससे हाल पिछले पांच सालों में दो बार 110 अबर यूरो व 109 अरब यूरो का भारी कर्ज दिया गया. दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में एक ग्रीस के लोग आज आर्थिक संकट के कारण बेजार हैं. यहां पर्याप्त प्राकृतिक व खनिज संसाधन है, लेकिन उनके उपयोग के लिए यथोचीत अनुसंधान नहीं हो पाने के कारण उसका उपयोग नहीं हो सका है और न ही जल संसाधन का उपयोग हो सका है. यह दुनिया के दूसरे देशों के लिए भी इस मायने में सबक है कि अगर आप अपने प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग नहीं कर पाते हैं, तो आपकी हालत भी ग्रीस के जैसी हो सकती है.
अब तो रघुराम राजन की सलाह को गुनें दुनिया के देश
दुनिया भर में अपने ठोस आर्थिक सुझावों व सिद्धांतों के लिए पहचाने जाने वाले हमारे युवा अर्थशास्त्री व रिजर्व बैंक के गर्वनर डा रघुराम राजन जब यह कहते हैं कि दुनिया में बडी आर्थिक (संभवत: 1930 जैसी) मंदी का खतरा बना हुआ है, तो वे यह बात अनायास ही नहीं कहते हैं. इसके पीछे ठोस कारण हैं. डॉ राजन इसके पीछे कई कारणों के साथ दो प्रमुख कारण गिनाते हैं : एक दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं-देशों द्वारा अपने खर्च को अनाम-शनाप बढाना, दूसरा निर्यात बढता हुआ दिखाने के लिए मुद्रा का अवमूल्यण. याद रखें 2008-09 की आर्थिक मंदी का बहुत साल पहले दुनिया के जिन प्रमुख अर्थशास्त्रियों ने भविष्यवाणी की थी, उनमें एक डॉ रघुराम राजन भी थे.

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