RBI गवर्नर का ”वीटो पावर” खत्म करने के पक्ष में दिखे रघुराम राजन

मुंबई : नीतिगत ब्याज दर निर्धारण व्यवस्था में बदलाव के सुझावों को लेकर सरकार के साथ समझौते का संकेत देते हुए आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन इस मामले में गवर्नर का ‘वीटो पावर’ निषेधात्मक धिकार समाप्त करने के पक्ष में दिखे. उन्होंने कहा कि अच्छा होगा कि नीतिगत दर पर फैसला एक व्यक्ति के बजाय कोई […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 4, 2015 4:32 PM

मुंबई : नीतिगत ब्याज दर निर्धारण व्यवस्था में बदलाव के सुझावों को लेकर सरकार के साथ समझौते का संकेत देते हुए आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन इस मामले में गवर्नर का ‘वीटो पावर’ निषेधात्मक धिकार समाप्त करने के पक्ष में दिखे. उन्होंने कहा कि अच्छा होगा कि नीतिगत दर पर फैसला एक व्यक्ति के बजाय कोई समिति करे. उन्होंने कहा कि प्रस्तावित मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) का ब्यौरा अभी ठीक किया जाना है पर ‘इस मामले पर आरबीआइ और सरकार के बीच कोई मतभेद नहीं है.’

राजन ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘फिलहाल गवर्नर के पास वीटो पावर है जिसका अर्थ है कि सारे परामर्श केवल परामर्श मात्र हैं. अंतत: निर्णय गवर्नर का ही होता है. इसलिए यदि हम वीटो अधिकार की व्यवस्था बरकरार रखते हैं तो वर्तमान स्थिति नहीं बदलेगी. इसमें यथास्थिति बरकार रहेगी. यह ऐसी बात है जिसको ध्यान में रखना होगा.’ वित्त मंत्रालय द्वारा पिछले महीने जारी संशोधित भारतीय वित्त संहिता (आइएफसी) में नीतिगत ब्याज दर निर्धारण में आरबीआइ के प्रमुख के वीटो पावर को खत्म करने की सिफारिश की गई है.

वित्त मंत्रालय चाहता है कि सात सदस्यों वाली एमपीसी बहुमत से इसका फैसला करे. सात सदस्यों में से चार सरकार द्वारा नामित होंगे और शेष आरबीआई द्वारा. मौद्रिक नीति निर्धारण का अधिकार गवर्नर से लेकर एक समिति को देने के ‘तीन लाभ’ गिनाते हुए राजन ने कहा कि इससे व्यक्ति पर दबाव कम होता है और समिति के किसी सदस्य के बदलने पर भी नीतिगत निरंतरता बनी रहती है. ‘समिति में विभिन्न दृष्टिकोण वाले लोग हो सकते हैं अध्ययनों से यह बात सामने आयी है कि समितियों के निर्णय किसी व्यक्ति के निर्णय से विशिष्ट रूप से अधिक अच्छे होते हैं.’

दूसरी बात है, निर्णय का दायित्व अधिक लोगों में बंटने से किसी व्यक्ति पर आंतरिक एवं वाह्य दबाव कम हो जाता है. तीसरी वजह है कि समिति की व्यवस्था से यह सुनिश्चित हो सकेगा कि गवर्नर समेत इसके किसी सदस्य के बदलने पर भी मौद्रिक नीति में निरंतरता बरकरार रहेगी. मौजूदा व्यवस्था के तहत रिजर्व बैंक के गवर्नर की नियुक्ति सरकार करती है लेकिन उसका मौद्रिक नीति पर नियंत्रण रहता है और उसके पास नीतिगत दर निर्धारण करने वाले आरबीआई के सदस्यों की मौजूदा परामर्श समिति और बाहर के नामित सदस्यों के फैसलों पर वीटो का अधिकार है.

वित्त सचिव राजीव महर्षि ने कल कहा था कि आरबीआइ और सरकार के बीच एमपीसी के स्वरुप पर सहमति हो गई है और इसका खुलासा संसद में होगा. महर्षि ने कहा था ‘हम आरबीआइ गवर्नर और आरबीआइ के साथ एमपीसी के स्वरुप के बारे में चर्चा कर रहे हैं और हम दरअसल सहमति की स्थिति में हैं लेकिन इसके बारे में बात नहीं करुंगा. इसकी जानकारी संसद में दी जाएगी.’ राजन ने साफ किया कि आरबीआइ ने 2015-16 के बजट में मौद्रिक नीति समिति की घोषणा के बाद से उसका उत्साहपूर्वक समर्थन किया था.

राजन ने कहा ‘हम सरकार के साथ वार्ता में शामिल रहे. आरबीआइ की ओर से हम चाहते हैं कि यह सुनिश्चित हो कि नीति में निरंतरता बनी रहे क्योंकि बाजार समिति के नये सदस्यों के मतदान के तौर तरीके को समझने का प्रयास करता है.’ उन्होंने महर्षि की टिप्पणी को दोहराया कि सरकार और आरबीआइ के बीच इस संबंध में व्यापक सहमति बन गई है कि समिति का स्वरुप कैसा हो और गवर्नर के पास क्या शक्तियां होनी चाहिए. राजन ने कहा ‘आरबीआइ का मानना है कि सरकार द्वारा आरबीआइ के लिए मुद्रास्फीति का स्पष्ट उद्देश्य तय कर दिये जाने के बाद मौद्रिक नीति निर्धारण प्रक्रिया को संस्थागत स्वरुप दिया जाना महत्वपूर्ण है.’

उन्होंने हालांकि समिति के ढांचे का खुलासा नहीं किया और कहा कि इसके लिए संसद की मंजूरी के अलावा आरबीआइ अधिनियम में बदलाव की जरुरत होगी. आइएफसी के पहले मसौदे में वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी) की सिफारिश की तरह मार्च 2013 में सुझाव दिया गया था कि नीतिगत दरों पर फैसला एमपीसी करेगी लेकिन केंद्रीय बैंक के प्रमुख के पास बहुमत के फैसले को खारिज करने का अधिकार होगा. वित्त मंत्रालय ने 23 जुलाई को एक संशोधित मसौदा रखा जिसमें आरबीआइ प्रमुख के वीटो के अधिकार को खत्म करने तथा समिति का निर्णय बहुमत से लागू करने का प्रस्ताव है.

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