रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) बिल, 2013
थोड़ा है, थोड़े की जरूरत है
प्रियंका जालान
रियल एस्टेट उद्योग किसी देश के विकास का एक प्रमुख सूचक होता है. भारत में रियल एस्टेट क्षेत्र बड़े बदलाव से गुजर रहा है. यह नियामक गतिविधियों और नये रुझानों की वजह से हो रहा है , जिससे इसमें दक्षता और पारदर्शिता बढ़ रही है. देश की बढ़ती जनसंख्या, प्रति व्यक्ति आय में होती वृद्धि, तेजी से होते शहरीकरण, बढ़ता मध्यम वर्ग और 12वीं पंचवर्षीय योजना में नियोजित बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए 55 लाख करोड़ का प्रावधान- ये सभी रियल एस्टेट क्षेत्र में दीर्घकालिक तेज वृद्धि को इंगित करते हैं. ऐसे में इस उद्योग के लिए नियमन की जरूरत महसूस करना स्वाभाविक है. इसी दिशा में पहला कदम है, रियल एस्टेट रेगुलेटरी बिल. इस बिल से रियल एस्टेट कारोबार में अधिक से अधिक पारदर्शिता आयेगी और ग्राहकों के प्रति बिल्डरों और डेवलपरों की जवाबदेही भी तय होगी.
फिलहाल भारत में ज्यादातर रियल एस्टेट का कारोबार असंगठित है और लंबे समय से इसके लिए नियामक प्राधिकरण (रेगुलेटरी अथॉरिटी) की मांग की जा रही थी. पिछले कुछ वर्षो में इस क्षेत्र में आशातीत वृद्धि दर्ज की गयी. छोटे शहरों में भी संपत्ति के मूल्य में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गयी. भारतीय ग्राहकों की बढ़ती जरूरतों को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय कैबिनेट ने 4 जून 2013 को रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) बिल को मंजूरी दी.
बिल की खास बातें :
यह बिल रियल एस्टेट कारोबारियों को ज्यादा जिम्मेदार बनाने की पहल करता है. आइए जाने बिल में क्या है खास जो देगा आपको ज्यादा सुरक्षा, ज्यादा विश्वास:
1. कॉर्पेट एरिया की परिभाषा
बिल में अपार्टमेंट के कार्पेट एरिया को साफ- साफ परिभाषित किया गया है. निजी डेवलपर सुपर एरिया या सुपर बिल्ट अप एरिया कह कर अपार्टमेंट नहीं बेच सकेंगे और वे पूरी तरह कॉर्पेट एरिया की परिभाषा का अनुपालन करेंगे.
2.रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी
बिल में रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण के गठन का प्रस्ताव है, जिसके तहत विशेष विनियमन और रियल एस्टेट कानूनों को लागू करने की व्यवस्था की गयी है. यह बिल के प्रावधानों के अधीन संपत्तियों को अजिर्त करने, गड़बड़ी होने पर संबंधित बिल्डर पर मुकदमा करने के लिए स्वतंत्र है. इसके साथ ही इसे वो सभी अधिकार दिये गये हैं जो ग्राहकों के हितों की रक्षा के आवश्यक हैं और पहले उपभोक्ता सुरक्षा कानून में शामिल नहीं थे.
3. अनिवार्य पंजीकरण
रियल एस्टेट के सभी कारोबारियों और साथ ही उनके प्रोजेक्ट को भी प्राधिकरण के साथ पंजीकृत करना होगा, जो कि ग्राहकों के हित में उठाया गया एक बड़ा कदम है. प्राधिकरण को बिल्डरों की गतिविधियों पर नजर रखने का अधिकार होगा, ताकि इस सेक्टर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल हो रहे काले धन, ग्राहकों के साथ धोखेबाजी और दूसरे घोटाले को रोका जा सके. बिल में एक डेवलपर के लिए प्रत्येक प्रोजेक्ट के लिए एक अलग बैंक खाता रखने की भी अनिवार्यता है.
4. सहमति व मंजूरी
बिल में डेवलपरों के लिए यह अनिवार्यता है कि वे संबंधित प्राधिकरणों से सभी सांविधिक मंजूरी लेने के बाद ही प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर सकेंगे. साथ ही इसमें यह भी प्रावधान है कि रियल एस्टेट प्रोजेक्ट के लिए सभी संबंधित मंजूरी का प्रस्ताव नियामक को सौंपना होगा. निर्माण कार्य शुरू करने से पहले इसे अपनी वेबसाइट पर भी डालना होगा.
5. शिकायतों का निबटारा
बिल के प्रावधानों के मुताबिक विवादों को सुलझाने के लिए रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण और राज्य स्तर पर सुनवाई के लिए अधिकारियों की व्यवस्था और एक केंद्रीय अपीलीय ट्रिब्यूनल जैसा तंत्र बनाया जायेगा, जिसमें एक्ट के तहत आने वाले आवासीय परियोजनाओं के सभी मामलों पर सुनवाई की जायेगी.
6. कब्जे में विलंब
बिल के प्रावधानों के मुताबिक यदि बिल्डर समझौते के मुताबिक तय समय सीमा में फ्लैट हस्तांतरण नहीं करता है तो उसे पूर्व में प्राप्त जमा राशि को प्राधिकरण द्वारा तय ब्याज के साथ वापस करना होगा. बिल के ये प्रावधान प्रोजेक्ट को समय पर पूरा करने के लिए बिल्डर को बाध्य करेंगे.
7). सजा का प्रावधान
बिल में प्रोजेक्ट के बारे में भ्रामक विज्ञापन जारी करने पर डेवलपर को जेल भेजने तक का प्रावधान है. गलती या गड़बड़ी करनेवाले बिल्डर के लिए परियोजना लागत का 10 प्रतिशत तक जुर्माना से जेल की सजा तक का प्रावधान है. प्राधिकरण को ऐसे बिल्डरों के पंजीयन रद्द करने का भी अधिकार होगा.
ये है कमियां
इस बिल को अभी केवल केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी मिली है और इसे संसद की स्थायी समिति और संसद की दोनों सदनों में पास होना बाकी है. बिल के प्रारंभिक ढांचे में ही कई खामियां हैं. जैसे अगर कोई बिल्डर चार हजार वर्ग मीटर से कम के क्षेत्रफल में प्रोजेक्ट चला रहा है तो वह इस बिल के दायरे में नहीं आयेगा. इसके साथ ही राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर नियामक प्राधिकरणों के गठन और परिचालन में भी काफी वक्त लगेगा. बिल के दायरे में कॉमर्शियल प्रोजेक्ट शामिल नहीं किये गये हैं.
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