दीवाली के पहले महंगाई बम फोड़ने की तैयारी, 250 रुपये तक बढ़ सकते हैं रसोई गैस के दाम

नयी दिल्ली: किरिट पारेख समिति नेकलसरकार को सलाह दी कि डीजल के दाम 5 रुपये व केरोसीन के दाम 4 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस के दाम 250 रुपये प्रति सिलेंडर तत्काल बढाए जाएं ताकि ईंधन सब्सिडी खर्च में 72000 करोड़ रुपये की कटौती की जा सके. योजना आयोग के पूर्व सदस्य पारेख की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 30, 2013 4:22 PM

नयी दिल्ली: किरिट पारेख समिति नेकलसरकार को सलाह दी कि डीजल के दाम 5 रुपये व केरोसीन के दाम 4 रुपये प्रति लीटर और रसोई गैस के दाम 250 रुपये प्रति सिलेंडर तत्काल बढाए जाएं ताकि ईंधन सब्सिडी खर्च में 72000 करोड़ रुपये की कटौती की जा सके.

योजना आयोग के पूर्व सदस्य पारेख की अध्यक्षता वाली इस समिति ने अपनी रपटकलपेट्रोलियम मंत्री एम वीरप्पा मोइली को सौंपी.

समिति ने सुझाव दिया गया है कि कीमतों में बढोतरी के बाद तेल कंपनियों को डीजल पर केवल 6 र प्रति लीटर की स्थिर सब्सिडी दी जाए और उत्पादन लागत व खुदरा कीमत में बाकी किसी भी तरह के अंतर का बोझ ग्राहकों पर डाला जाए.

इसके साथ ही समिति ने सुझाव दिया है कि सब्सिडीशुदा रसोई गैस सिलेंडरों के कोटे को मौजूदा 9 से घटाकर 6 सिलेंडर प्रति परिवार किया जाए. सरकार के लिए इस समिति की रपट को पूर्णत: स्वीकार करना मुश्किल होगा क्योंकि दिल्ली, राजस्थान व मध्यप्रदेश में चुनाव होने हैं. पेट्रोलियम मंत्री मोइली ने इसका संकेत देते हुए कहा कि कार्यान्वयन से पहले इन सुझावों की पूरी तरह समीक्षा करने की जरुरत है.

मोइली ने संवाददाताओं से कहा, मैं इन सिफारिशों पर कोई फैसला नहीं देना चाहता. रपट मुझेङो अभी मिली है. इस तरह की रपटों को स्वीकार करने तथा उन पर कार्यान्वयन की एक प्रक्रिया है. हम वित्त मंत्रालय से परामर्श के बाद इस पर फैसला करेंगे. पारेख ने कहा कि डीजल पर 6 रुपये प्रति लीटर की सब्सिडी भी साल खत्म कर दी जाए ताकि इस ईंधन को पूरी तरह नियंत्रणमुक्त किया जा सके.अगर इन सिफारिशों पर कार्यान्वयन किया गया तो मौजूदा वित्त वर्ष की बाकी अवधि में ईंधन सब्सिडी में 30,250 करोड़ रुपये की कमी आएगी. बजट में यह सब्सिडी 1,38,435 करोड़ रुपये रहने का अनुमान लगाया गया था.

सरकारी तेल विपणन कंपनियां इस समय डीजल 10.52 र प्रति लीटर, केरोसीन 38.22 र प्रति लीटर तथा रसोई गैस 532.86रुप्रति लीटर की छूट के साथ बेच रही हैं. इससे कुल चालू वित्त वर्ष में इन विपणन कंपनियों को चालू वित्त वर्ष में 1,38,435 करोड़ रुपये की कमाई का नुकसान होने का अनुमान है. इसकी भरपाई सरकारी की ओर से नकद सब्सिडी तथा ओएनजीसी जैसी पेट्रोलियम उत्खनन कंपनियों के योगदान से की जाती है.

विशेषज्ञ समिति ने नियंत्रित पेट्रोलिय उत्पादों के लिए मौजूदा कीमत नियंत्रण सिद्धांत को बरकार रखने का समर्थन किया है हालांकि समिति में वित्त मंत्रालय के प्रतिनिधि ने इस पर असहमति का नोट लगाया है. वित्त मंत्रालय ने जोर दिया है कि रिफाइनर कंपनियों को ईधन का उन्हीं दरों के बराबर भुगतान होना चाहिए जो उन्हें डीजल, केरोसीन व रसोई गैस के निर्यात पर मिल सकता है. समिति का मानना है कि निर्यात सम मूल्य सिद्धांत से सब्सिडी खर्च में 13000 करोड़ रुपये की कमी आएगी.

पारेख ने कहा, कोई भी देश ऐसे मामले में निर्यात सम मूल्य का इस्तेमाल नहीं करता है.. और निर्यात सम मूल्य तथा व्यापार सम मूल्य में बहुत थोड़ा सा अंतर है. उन्होंने कहा कि यदि वित्त मंत्रालय की बात मान भी ली जाए तो ईंधन पर प्रति किलो लीटर 108 रुपए यानी 1.5 प्रतिशत का फर्क आएगा. उल्लेखनीय है कि इस समय डीजल की कीमत का निर्धारण व्यापार सम मूल्य के आधार पर किया जाता है जिसमें 80 प्रतिशत भारांश आयात मूल्य तथा 20 प्रतिशत निर्यात मूल्य को दिया जाता है. सब्सिडी की गणना के लिए केरोसीन तथा एलपीजी की कीमतें आयात सम मूल्य पर आधारित की जाती हैं.

वित्त मंत्रालय डीजल तथा रसोई गैस के दाम तय करने की प्रणाली बदलना चाहता था ताकि सब्सिडी बोझ घटाया जा सके इसलिए यह समिति गठित की गई.

वित्त मंत्रालय 2012-13 से डीजल व केरोसीन के लिए निर्यात समय मूल्य चाहता है और चाहता है कि एलपीजी के दाम 60-40 के निर्यात एवं आयात समतूल्य मूल्य अनुपात पर आधारित व्यापार सम मूल्य से तय हों. निर्यात सम मूल्य छोड़ने पर 2012-13 में डीजल सब्सिडी 14,372 करोड़ र घटकर 77,689 करोड़ रुपये रह जाती. इसी तरह आलोच्य अवधि में एलपीजी के मद में 2245 करोड़ र तथा केरोसीन मद में 1001 करोड़ रुपये की बचत होती.

वित्त मंत्रालय का मानना है कि यह बचत आयात शुल्क तथा देश में माल की ढुलाई पर खर्च की लागत केरुप में आएगी. ये लागते आयात सम मूल्य में शामिल हो जाती है.

इसके जवाब में पारेख ने कहा कि घरेलू रिफाइनरी कंपनियों की सुरक्षा के लिए केवल 2.5 प्रतिशत का शुल्क है जो काफी हल्का है. अगर इसे हटा दिया जाए तो निजी रिफाइनरी कंपनियों को घरेलू बाजार में अपने उत्पाद बेचने के लिए कोई प्रोत्साहन नहीं मिलेगा. इससे निजी कंपनियां अपने ईंधन का निर्यात करने लगेंगी जबकि सार्वजनिक कंपनियों को उंची लागत पर डीजल का आयात करना होगा.

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