नयी दिल्ली: सरकार की इस सप्ताह संसद में जीएसटी विधेयक आगे बढाने की प्रतिबद्धता के बीच नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढिया ने आज कहा कि उन्हें विधेयक पारित हो जाने की उम्मीद है.उन्होंने कहा कि भारत बड़े सुधारों के मामले में सही दिशा में आगे बढ रहा है.पनगढिया ने सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उपक्रमों पर सीआईआई के सम्मेलन में कहा ‘‘हम इस (जीएसटी) पर सही दिशा में आगे बढ रहे हैं. मुझे आशा है कि हम इस पूरे मुद्दे को सुलझा लेंगे’.
जीएसटी के इस प्रमुख कर सुधार के तहत इसमें कई तरह के केंद्रीय एवं राज्य कर समाहित हो जाएंगे जिससे विभिन्न किस्म के करों संख्या कम होगी. इस तरह अनुपालन लागत कम होगी. जीएसटी के साथ ही केंद्रीय बिक्री कर (सीएसटी) को बोझ भी खत्म हो जाएगा.
संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के मुताबिक वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और रीयल एस्टेट विधेयक को इस सप्ताह राज्य सभा में चर्चा के लिए सूचीबद्ध रखा गया है.जीएसटी विधेयक पर हालांकि, गतिरोध बरकरार है. राज्य सभा की कामकाज परामर्श समिति ने जीएसटी विधेयक पर विचार और पारित करने के लिए चार घंटे का समय रखा है.
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मद्देनजर राजकोषीय घाटे का लक्ष्य प्राप्त करने से जुडे सवाल पर पनगढिया ने कहा ‘‘सरकार प्रतिबद्ध है. वेतन आयोग की रपट चालू वित्त वर्ष में ज्यादा समय अपना असर नहीं डालेगी.’ उन्हेंने कहा ‘‘बहुत से बदलाव होंग. उम्मीद है जीएसटी लागू होगा. नया बजट आएगा. वित्त मंत्रालय राजकोषीय पुनर्गठन के खाके के लिए प्रतिबद्ध है. फिलहाल यही विचार है और आप हमसे उम्मीद करते हैं हम इस पर कायम रहें.’
सीआईआई के लघु एवं मध्यम उपक्रम सम्मेलन 2015 को संबोधित करते हुए उन्होंने अपील की कि उद्योगों को मुनाफा बढाने के लिए कर राहत मांगने के बजाय अपनी क्षमता में सुधार करना चाहिए.उन्होंने कहा कि परिवर्तनकारी आर्थिक वृद्धि प्राप्त करने के लिए उद्योग को उत्पादन, स्तर और क्षमता के लिहाज से कुछ बडा सोचना होगा ताकि घरेलू स्तर पर और विदेश में बडे बाजारों पर कब्जा किया जा सके.
उन्होंने कहा ‘‘हम बडे परिवर्तनकारी वृद्धि के दौर में तब तक नहीं पहुंच सकते हैं … जब तक चीन की तरह बडा नहीं सोचते हैं … कर नियमों में यहां-वहां बदलाव करने से कुछ नहीं होगा .. परिवर्तनकारी वृद्धि के लिये उद्योग से बेहद अलग किस्म की मांगें आने की जरूरत है.’ पनगढिया ने श्रम सुधारों की जरूरत पर भी बल दिया क्योंकि यह उन कंपनियों के लिए बाधा है जो न बहुत छोटे हैं न ही बहुत बडे.उन्होंने कहा कि बडी संख्या में ऐसे श्रम कानून हैं जो छोटी कंपनियों पर लागू नहीं होते और हजारों की संख्या में कामगारों वाली बडी कंपनियों के लिए इनका अनुपालन आसान है.खुदरा और थोक मुद्रास्फीति के बीच सात प्रतिशत से अधिक के फर्क से जुडी चिंता के बीच उन्होंने कहा, ‘‘वे अलग-अलग चीजों को मापते हैं.
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