मुंबई : वर्ष 2015 में लगातार पांचवें साल अमेरिकी डाॅलर के मुकाबले रुपया गिरावट की राह पर है. वर्ष के दौरान दुनिया में कभी सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली तो कभी सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्रा केरूप में रुपये की पहचान बनी. इस दौरान ऐसा लगा कि उसने नये निम्न स्तर कोप्राप्तकर लिया है. लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि डालर के मुकाबले 65-70 उसका नया सामान्य स्तर बन गया है.
सरकार ने कई पहलों की घोषणा की है और रिजर्व बैंक ने भी विदेशी मुद्रा बाजार को समर्थन प्रदान करने के लिए कुछ मौकों पर हस्तक्षेप किया. जबकि 2015 के दौरान वैश्विक उथल-पुथल के दौरान विनिमय दर में भारी उतार-चढ़ाव रहा. इस दौरान भारतीय मुद्रा डाॅलर के मुकाबले दो साल के न्यूनतम स्तर 67 रुपये पर पहुंच गयी. यह साल 66-67 के स्तर पर खत्म होगा और 2014 के 63.03 के बंद के स्तर के मुकाबले पांच प्रतिशत अधिक होगा. रुपया पिछले कारोबारी सत्र में 66.21 रुपये पर बंद हुआ. जबकि 2015 में चार कारोबारी दिन बचे हैं.
प्रमुख कारण
रुपये में गिरावट के लिए जो प्रमुख कारक जिम्मेदार हैं उनमें सबसे अहम रही अमेरिका में बहु-प्रीतिक्षित ब्याज दर में बढ़ोतरी पर लगभग पूरे साल अनिश्चितता बनी रहना. इसकी वजह से विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में उल्लेखनीय गिरावट और चीन की अर्थव्यवस्था में नरमी शामिल है. चीन बेहतर आर्थिक वृद्धि के चलते पिछले कुछ साल से वैश्विक आर्थिक वृद्धि को गति में समर्थन मिलता रहा है. रुपया वैश्विक स्तर पर लगभग पूरे साल सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रहा लेकिन कई अन्य मुद्राओं में इससे भी भारी गिरावट से, दरअसल भारतीय मुद्रा को मदद मिली है और साल की समाप्ति में यह अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में शामिल रहा.
विशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों ने कहा कि रुपया, दरअसल, अमेरिकी डाॅलर के मुकाबले सालाना स्तर पर भारी गिरावट के मद्देनजर प्रमुख मुद्राओं के बीच सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाली मुद्रा साबित हो सकता है. यूरो करीब 16 प्रतिशत नीचे है जबकि इंडोनेशिया रुप्पइया को सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा करार दिया जा रहा है. चीन के युआन की भी स्थिति अच्छी नहीं रही.
कारोबारियो को उम्मीद
कारोबारियों को उम्मीद है कि रुपया अगले साल डाॅलर के मुकाबले 65.50-70 रुपये के दायरे में रहेगा. विदेशी मुद्रा और जोखिम प्रबंधन से जुड़ी आईएफए ग्लोबल के मुख्य कार्यकारी अभिषेक गोयंका ने कहा कि रुपये का प्रदर्शन आमतौर पर वैश्विक जोखिम के रुझान और घरेलू सुधार को आगे बढ़ाने की पहलों पर निर्भर करेगा.
उन्होंने कहा कि वैश्विक जोखिम रझान फेडरल रिजर्व की नीति, चीन तथा यूरोक्षेत्र अर्थव्यवस्था में सुधार पर निर्भर करेगा. इस साल विदेशी मुद्रा बाजार पर आम तौर पर अमेरिकी फेडरल रिजर्व समेत केंद्रीय बैंकों की पहलों का दबदबा रहा. फेडरल रिजर्व ने ब्याज दर में इस साल के अंत में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जबकि अगली पहल के संबंध में अटकलें बरकरार हैं. इस साल एक और घटनाक्रम का वैश्विक बाजार पर असर रहा और वह था चीन के इक्विटी बाजार और इसकी अर्थव्यवस्था में नरमी. शांघाई कंपोजिट में कुछ हफ्तों के दौरान करीब 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई.
शुरुआती महीनों में रुपया
भारतीय रुपया वर्ष के शुरुआती महीनों में 63 से 65 के बीच स्थिर होता लगा. लेकिन चीन की मुद्रा युआन में करीब 4 प्रतिशत के अवमूल्यन से जल्दी ही यह आगे और गिरावट की राह पर चल पड़ा. रिजर्व बैंक ने हालांकि, घरेलू मोर्चे पर भारतीय मुद्रा को समर्थन देने के लिये कई कदम उठाये. रिजर्व बैंक ने स्थिर आय बाजार में एफपीआई निवेश सीमा बढ़ा दी. आयातकों को विदेशों में भारतीय रुपये में व्यापार के लिये ऋण लेने की अनुमति दी. कंपनियों को भी विदेशों से रुपया अंकित मूल्य लेने की अनुमति दी. केंद्रीय बैंक ने एक्सचेंज ट्रेडिड करेंसी डेरिवेटिव्ज :ईटीसीडी: में हस्तक्षेप की भी मंशा जताई.
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