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वित्त मंत्री ने कहा, जीएसटी अगले साल मुमकिन

नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि महत्वकांक्षी जीएसटी का क्रियान्वयन निश्चित रुप से 2016 में मुमकिन है. इस मुद्दे पर सहयोग करने के लिये वह निरंतर कांग्रेस के संपर्क में है. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि संसद के अगले सत्र में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) विधेयक आगे बढेगा.” जेटली […]

नयी दिल्ली : वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आज कहा कि महत्वकांक्षी जीएसटी का क्रियान्वयन निश्चित रुप से 2016 में मुमकिन है. इस मुद्दे पर सहयोग करने के लिये वह निरंतर कांग्रेस के संपर्क में है. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि संसद के अगले सत्र में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) विधेयक आगे बढेगा.” जेटली ने कहा, ‘‘आखिर, यह विधेयक वह (कांग्रेस) ही लाये हैं. राजनीतिक कारणों से उन्होंने अपना रुख बदला लेकिन अनिश्चित काल तक वह ऐसा नहीं करेंगे.” उन्होंने कहा, ‘‘मैं लगातार उनके संपर्क में हूं और मेरा इरादा यह प्रयास जारी रखने का है.

उन्हें सहयोग के लिये मनाना मेरे काम का हिस्सा है.” जीएसटी से पूरे देश में अप्रत्यक्ष कर प्रणाली को सरल बनाया जा सकेगा. इसके लागू होने से पूरे देश में अप्रत्यक्ष कर की एक समान दर होगी . लेकिन राजनीतिक गतिरोध के कारण यह कई सालों से अटका पडा है. पिछली संप्रग सरकार के समय भाजपा और कुछ अन्य राजनीतिक दलों के विरोध के कारण संसद में इसे पारित नहीं किया जा सका था. अब कांग्रेस ने वर्तमान राजग सरकार द्वारा प्रस्तावित जीएसटी विधेयक को मौजूदा रुप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया है.
एक अप्रैल 2016 से जीएसटी लागू करने के सरकार के लक्ष्य के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा कि यह आयकर की तरह नहीं है. इसीलिए यह कोई जरुरी नहीं है कि इसे नये वित्त वर्ष की शुरुआत से ही अमल में लाया जाए. उन्होंने कहा, ‘‘जीएसटी कोई आयकर नहीं है और जरुरी नहीं है कि यह हर साल केवल एक अप्रैल से ही अमल में आये. यह लेन-देन कर है और इसीलिए यह साल के मध्य में भी लाया जा सकता है.”
वित्त मंत्री जेटली ने कहा कि वस्तु एवं सेवा कर की प्रक्रिया को पूरा करना नये वर्ष की उनकी शीर्ष प्राथमिकताओं में शामिल है. इसके अलावा प्रत्यक्ष करों को तर्कसंगत बनाना तथा कारोबार सुगमता भी उनकी प्राथमिकताओं में शामिल है. उन्होंने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद थी कि हम जीएसटी प्रक्रिया इस साल पूरी कर लेंगे.” सुधार की इस प्रक्रिया में देरी के लिये उन्होंने कांग्रेस को दोषी ठहराते हुये कहा कि उसने सीधे-सीधे अवरोध की नीति अपनाई है. उन्होंने कहा, ‘‘वास्तव में, एक राष्ट्रीय पार्टी अवरोध की नीति अपनाकर एक ऐसे सुधार को रोककर जो कि देश की जीडीपी वृद्धि में योगदान कर सकता है, परपीडा का सुख ले रही है, यह निराशाजनक है.” इस खास सवाल पर कि क्या जीएसटी 2016 में संभव है, उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित रुप से है.” जीएसटी से कर आधार का दायरा बढेगा और मजबूत आईटी ढांचे के साथ बेहतर कर अनुपालन हो पाएगा.
सरकार को यह भी उम्मीद है कि इससे एक राज्य से दूसरे राज्य में ‘इनपुट टैक्स क्रेडिट’ का आसानी से अंतरण हो सकेगा. इसके साथ ही इस व्यवस्था में व्यापारियों द्वारा कर अनुपालन को प्रोत्साहित करने पर भी जोर दिया गया है. वित्त मंत्री ने कहा कि कांग्रेस पार्टी के पास बाधा खडी करने के लिये ‘संख्या बल’ नहीं है इसीलिए वह हंगामा कर बाधा उत्पन्न कर रही है. मेरा मानना है कि यह भारत के संसदीय लोकतंत्र के लिये बहुत खराब परिपाटी होगी. यदि राज्य विधानसभाओं में भी ऐसा होने लगे, यदि भविष्य की विपक्षी पार्टियों भी ऐसा करने लगें, मुझे लगता है यह गलत परंपरा डाली जा रही है.”
अरुण जेटली ने कहा, ‘‘मैं उम्मीद करता हूं कि कांग्रेस पार्टी इस बात का आत्ममंथन करेगी क्या संसदीय लोकतंत्र में इस प्रकार की रणनीति अनिश्चित काल के लिये अपनायी जा सकती है.” वित्त मंत्री ने कहा कि यदि कांग्रेस पार्टी ने अपनी चाल नहीं बदली तो संसद को विधेयकों को पारित करने के लिये स्वयं कोई वैकल्पिक तरीका ढूंढना होगा. ऐसे विकल्पों के बारे में पूछे जाने पर जेटली ने कहा, ‘‘मुझे उम्मीद है कि ऐसी स्थिति नहीं आयेगी जब सभी विधेयक हंगामे के बीच पारित होंगे या आपको धन विधेयकों पर निर्भर रहना होगा या फिर आपको कार्यकारी निर्णयों से ही काम करना होगा.” उन्होंने कहा, ‘‘बुनियादी सवाल यह है कि भारत कैसे कानून बनाता है?
सौभाग्य से हम ज्यादातर विधेयक पारित कराने में सफल रहे, उनमें से कुछ बिना चर्चा के भी पारित हुए. लेकिन विधेयक पारित करने का यह कोई उपयुक्त तरीका नहीं है…..” राज्यसभा की भूमिका के बारे में अपनी टिप्पणी में जेटली ने कहा, ‘‘स्पष्ट रुप से मैं राज्यसभा को लेकर नये सिरे से विचार करने की बात नहीं कर रहा हूं. राज्यसभा जरुरी है और भारत के बुनियादी ढांचे का हिस्सा है. राज्यसभा के ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता.” वित्त मंत्री ने जोर देकर कहा कि उन्होंने कभी भी इस ढांचे में बदलाव का कोई सुझाव नहीं दिया. उन्होंने कहा, ‘‘मैं सिर्फ संसदीय लोकतंत्र पर पडने वाले प्रभाव के बारे में बात कर रहा हूं कि अगर अप्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित सदन प्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित सदन पर लगातार वीटो लगाये तो उसका क्या असर होगा.”
जेटली ने विस्तार से बताते हुये कहा, ‘‘संसद के दोनों सदनों की स्थायी समितियां, संयुक्त स्थायी समिति आम सहमति से एक विधेयक को मंजूरी देती हैं. ऐसे विधेयक को राज्यसभा रोक देती है और इस पर अपनी प्रवर समिति को नियुक्त करती है, इसका मतलब यह हुआ कि वे स्थायी समिति प्रणाली की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहे हैं जो कि पिछले दो दशक से भी अधिक समय से बेहतर काम कर रही है.” ‘‘इसलिये हमें इस तरह की स्थिति से बचने के लिये इस बार स्थायी समिति के बजाय संयुक्त समिति का रास्ता अपनाना पडा.” जेटली ने कहा, ‘‘….राज्यसभा ऐसा सदन है जिससे जांच-परख और संतुलन की अपेक्षा की जाती है, ऐसा कभी-कभार होता है कि वह लोकसभा द्वारा पारित विधेयक से असहमत हो.
उसे संयुक्त सत्र को भेजा जा सकता है लेकिन हरेक विधेयक से वह असहमत नहीं हो सकती. ऐसा बार-बार नहीं हो सकता.”’ उन्होंने कहा, ‘‘और अगर अप्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित सदन राजनीतिक एवं ‘अन्य’ कारणों से प्रत्यक्ष रुप से निर्वासित सदन के काम को वीटो करता है, इसे अच्छा नहीं कहा जा सकता.” अन्य देशों की प्रणाली के बारे में बात करते हुए जेटली ने कहा, ‘‘ब्रिटेन में एक व्यवस्था है कि अगर उच्च सदन निचले सदन को पुनर्विचार के लिये कोई विधेयक वापस भेजता है और अगर निचला सदन जो जनादेश के आधार पर काम करता है और घोषणापत्र के आधार पर निर्वाचित होता है, दोबारा से उसी विधेयक को मंजूर कर भेजता है तो उच्च सदन उसे स्वीकार करता है.” यह पूछे जाने पर कि क्या इसका भारत में भी अनुकरण किया जा सकता है, उन्होंने कहा, ‘‘एक संभावित मिसाल के रुप में इसे स्वीकार किया जा सकता है.”

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