नयी दिल्ली : भारतीय अर्थव्यवस्था पर वैश्विक झटकों का ज्यादा असर नहीं होगा क्योंकि यह मुख्यरूप से घरेलू खपत और सरकारी व्यय द्वारा चालित है और ‘हॉट मनी’ (प्रतिभूति बाजार पर निवेश) पर आधारित नहीं है जो प्रतिकूल स्थिति में तेजी से बाहर निकल सकती है. स्टैंडर्ड एंड पुअर्स रेटिंग सर्विसेज ने आज यह कहा.
अमेरिकी रेटिंग एजेंसी के अनुसार चालू खाते का घाटा चालू वित्त वर्ष में 1.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है और 2018 तक इसी स्तर पर बना रहेगा.
एस एंड पी रेटिंग सर्विसेज इंडिया के विश्लेषक (सोवरेन) काईरान करी ने ‘पीटीआई भाषा’ से कहा, ‘‘हमारा मानना है कि बाह्य आर्थिक एवं वित्तीय झटकों को लेकर भारत कम संवेदनशील है. इसका कारण यह है कि देश की आर्थिक वृद्धि दर मुख्यरूप से घरेलू खपत और सरकारी व्यय जैसे घरेलू कारकों पर आधारित है’ उन्होंने कहा, ‘‘साथ ही यह ऐसा देश है जिसकी निर्भरता वृद्धि के वित्त पोषण केलिए बाह्य बचत पर कम है. दूसरे शब्दों में बैंक मुख्यत: अपनी जमा के आधार पर कर्ज देते हैं और रिण में वृद्धि केलिए थोक में कर्ज देने में विश्वास नहीं रखते.’ करी ने यह भी कहा कि भारत का पूंजी बाजार विविध है और इसके जरिये कंपनियां पर्याप्त कोष जुटाने में सक्षम हैं.
उन्होंने कहा, ‘‘भारत के बारे में एक और अनुकूल बात यह है कि वह सामान्यरूप से ‘हॉट मनी’ पर आधारित नहीं है जिसमें निवेशक की धारणा में बदलाव के साथ पूंजी की निकासी होती है. इस लिहाज से भारत केलिए बाह्य जोखिम अपेक्षाकृत कम है.’ करी ने कहा कि हालांकि निर्यात वृद्धि निराशाजनक हो सकता है, पर चालू खाते का घाटा 2015 में 1.4 प्रतिशत रहने की संभावना है जो 2018 तक इसी स्तर पर बना रह सकता है.
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