नयी दिल्ली: संसाधनों की कमी का सामना कर रहा रेलवे अपने आगामी बजट में यात्री किरायों में पांच से 10 फीसदी तक इजाफा करने की संभावनाओं पर विचार कर रहा है.रेल मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि यात्री किरायों और मालभाडों से होने वाली आमदनी में कमी और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने पर पडने वाले 32,000 करोड रुपये के अतिरिक्त बोझ को देखते हुए यात्री किरायों में इजाफे के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है.
इसके अलावा, रेलवे की ओर से कम धनराशि खर्च करने के कारण केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 2015-16 के लिए इसके सकल बजटीय समर्थन में भी 8,000 करोड रुपए की कटौती कर दी थी. सूत्रों ने बताया कि यात्री किरायों में बढोत्तरी सहित कई संभावनाओं पर विचार किया जा रहा है, लेकिन अब तक इस पर कोई अंतिम निर्णय नहीं किया गया है.
उन्होंने बताया कि किरायों में इजाफे पर फैसला होना है और यह भी तय किया जाना है कि यदि इजाफा किया जाता है तो इसे कब से लागू किया जाएगा. लेकिन यह जरुरी नहीं है कि यह बजट में ही किया जा सकता है. रेल भवन के अधिकारियों का ऐसा मानना है कि 25 फरवरी को पेश किए जाने वाले बजट में यात्री किरायों में इजाफे की घोषणा करना ज्यादा फायदेमंद हो सकता है क्योंकि ऐसी स्थिति में रेलवे मार्च से शुरू होने वाले ‘व्यस्ततम अवधि’ का इस्तेमाल कर सकती है.
अभी वातानुकूलित (एसी) श्रेणी के किराए पहले से ही ज्यादा हैं. यदि एसी किरायों में और इजाफा होता है तो इससे कम किराया ऐसी विमान सेवाओं का हो सकता है जो किफायती दरों पर सेवाएं मुहैया कराती हैं. इसी तरह, मालभाडा भी उंचे स्तर पर है जबकि इस्पात, सीमेंट, कोयला, लौह अयस्क और उर्वरक की लदाई में गिरावट दर्ज की गई है जिससे इस क्षेत्र में बढोत्तरी की संभावना कम है. केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने 2014 में सभी श्रेणियों के रेल यात्री किरायों में 14 फीसदी बढोत्तरी की थी.
रेलवे ने पिछले साल भी किरायों में 10 फीसदी वृद्धि की थी. इस साल जनवरी तक मालभाडों और यात्री किरायों से रेलवे की कुल आय 1,36,079.26 करोड रुपए थी जबकि रेलवे का लक्ष्य 141,416.05 करोड रुपए का था. यानी रेलवे आमदनी के मामले में अपने लक्ष्य से करीब 3.77 फीसदी पीछे रही. आमदनी के स्रोतों में गिरावट स्वीकार करते हुए सूत्रों ने बताया कि राजस्व संग्रह को बढाने के लिए विभिन्न विकल्पों पर विचार किया जा रहा है. एक विकल्प चुनिंदा मार्गों में किराए बढाना है जबकि दूसरा विकल्प मुहैया कराई जा रही सेवाओं की कीमत बढाना है.
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