बजट 2016 : प्रधानमंत्री क्यों गये गांव की ओर?

राहुल सिंह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर तैयार आम बजट 2016 की तुलना 1991 के डॉ मनमोहन सिंह के बजट से हो रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े रिफार्म लाने वाले 1991 के आम बजट के बाद इसे अबतक का सबसे अहम बजट बताया जा रहा है. ‘प्रधानसेवक’ नरेंद्र मोदीअब ‘ग्रामसेवक’ नरेंद्र मोदी के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 1, 2016 12:14 PM


राहुल सिंह

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर तैयार आम बजट 2016 की तुलना 1991 के डॉ मनमोहन सिंह के बजट से हो रही है. भारतीय अर्थव्यवस्था में बड़े रिफार्म लाने वाले 1991 के आम बजट के बाद इसे अबतक का सबसे अहम बजट बताया जा रहा है. ‘प्रधानसेवक’ नरेंद्र मोदीअब ‘ग्रामसेवक’ नरेंद्र मोदी के रूप में नजर आरहेहैं.उनकेविशिष्ट सहयोगी वित्तमंत्रीअरुण जेटली ने जो बजट पेश किया, उसकी आहट तो पूर्व में थी, लेकिन वह इतनेविस्तृत स्वरूप वालाहोगा, इसका अंदाजा तो किसी ने नहीं लगाया था.

इस बजट को पेश किये जाने के बाद वित्तमंत्री अरुण जेटली, वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतारमण ने स्पष्ट किया कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में स्ट्रेस (तनाव) दिख रहा है, जिसे दूर करने के लिए सरकार ने ये कदम उठाये हैं, इससे ग्रामीण इकोनॉमी में गति आयेगी, रूरल डिमांड बढ़ेगा और इससे कुल मिला कर देश की अर्थव्यवस्था को लाभ होगा. दरअसल, विभिन्न कंपनियों के नतीजे पहले ही यह संकेत दे चुके थे कि अगर औद्योगिक अर्थव्यवस्था को गति देनी है, तो रूरल ग्रोथ को दुरुस्त करना होगा.

मीडिया में इस आशय के लेख और स्तंभ लिखे जा रहे थे कि गांव, खेत और किसान को संकट से उबारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अभूतपूर्व पहल करनी होगी, नहीं तो पूरी अर्थव्यस्था बेपटरी हो सकती है.
अब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन उम्मीदों को कार्यरूप देनेका एलान कर दिया है, तो अचानक लोग भले हतप्रभ हुए हों, लेकिन बाद में आर्थिक जानकारों, मीडिया से लेकर उद्योग जगत ने इस बजट की तारीफ की. दरअसल, उद्योग जगत को मोदी ने प्रत्यक्षत: बड़ी राहत नहीं दी है, लेकिन रूरल डिमांड बढ़ने का लाभ उन्हें ही सबसे ज्यादा होगा. देखिए, तीन प्रमुख उद्याेग संघों के प्रमुखों ने क्या कहा :


सरकार का यह मानना सही है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था का संकट दूर किए बिना टिकाउ और समान विकास का मॉडल हासिल नहीं किया जा सकता.


– सुनील कोनेरिया, अध्यक्ष, एसोचैम.

बजट प्रस्ताव कुल मिलाकर राष्ट्र की विकास प्राथमिकताओं के अनुकूल है.

– हर्षवर्धन नेवटिया, अध्यक्ष, फिक्की

यह एक बहुत ही व्यापक बजट है, जिसमें समाज के सभी वर्गों के हितों को ध्यान में रखा गया है. यह विकासोन्मुखी बजट है. यह सरकार द्वारा किये जाने रहे कार्यों का विस्तार है, जो प्रधानमंत्री के नेतृत्व में वित्तमंत्री ने बनाया है और इसके लिए मैं प्रधानमंत्री को बधाई देता हूं.


– सुमित मजुमदार, अध्यक्ष, भारतीय उद्योग परिसंघ.


ग्रामीण अर्थव्यवस्था के स्ट्रेसकाउद्योग जगत पर असर देखिए आंकड़ों में :


ट्रैक्टर बिक्री

2014-15 : 3, 12, 116
2015-16 : 2, 48, 991

एक वर्ष मेंं गिरावट : 20 प्रतिशत


मोटरसाइकिल बिक्री

2015 के अप्रैल से दिसंबर में गिरावट 2.46 प्रतिशत

मोपैड बिक्री

2015 के अप्रैल से दिसंबर में गिरावट 5.39 प्रतिशत

तिपहिया वाहनों की ब्रिकी में गिरावट

2015 के अप्रैल से दिसंबर में 4.30 प्रतिशत.


(आंकड़ें सोसाइटी आॅफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चुरर्स के हैं,जो इंडिया टूडे के 17 फरवरी 2016 के अंक में प्रकाशित हुए थे.)

एनएसएसओ के 70वें राउंड के आंकड़े बताते हैं कि देश के नौ करोड़ किसान परिवार में से 52 प्रतिशत पर कर्ज है. देश के हर किसान पर औसत 47 हजार रुपये का कर्ज है. साल दर साल ग्रामीण मजदूरी की वृद्धि दर व कृषि विकास दर सिकुड़ी है.

जैसे 2012-13 में 1.2 प्रतिशत कृषि विकास दर थी, जो 2014-15 में घटकर 1.1 प्रतिशत हो गयी. ग्रामीण मजदूरी वृद्धि दर अगस्त 2013 में 18 प्रतिशत, अगस्त 2014 में 17.5 प्रतिशत व अगस्त 2015 में घटकर 3.8 प्रतिशत हो गयी.

एसएचओ ने अपने अध्ययन में किसान आत्महत्या को जो बड़े कारण चिह्नित किये हैं, वे क्रमिक रूप से इस प्रकार हैं : दिवालियापन, कृषि संबंधी कारण, गरीबी, पारवारिक समस्या, बीमारी, अन्य कारण. यानी पेशागत समस्या ही कृषक आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है. आंकड़े यह भी बताते हैं कि माॅनसून की कम बारिश के कारण किसानों को क्षति हुई है और प्रमुख फसलों के बोआई के रकबे में कमी आयी है. देश के कई राज्य सूखे से प्रभावित हैं.

ऐसे में खेती के लिए कुछ नहीं बहुत कुछ करने की जरूरत तो थी ही. सरकार ने अपनी बड़ी घोषणाओं के अतिरिक्त उर्वरक सब्सिडी भी कुछ जिलों में डीबीटी के तहत खाते में डालने का एलान किया है. एक बड़ा सवाल यह उठता है कि किसानों के लिए जो भारी भरकम बजट आवंटन होता है, क्या वह वास्तविक रूप से उन तक पहुंचता है, यह सवाल बहुत प्रासंगिक व गंभीर है. सरकार ने इसकी काट निकालने के लिए संवैधानिक उपायसोचा है. सरकार आधार को वैधानिक दर्जा देने के लिए सदन में विधेयक लाना चाहती है. अगर, ऐसा हो पाता है तो आधार नंबर अनिवार्य हो जायेगा और किसानों को हर योजना का लाभ डीबीटी की जरिये उनके एकाउंट में दिया जायेगा, जिससे बिचौलियों के लिए गोलमाल की संभावना कम हो जायेगी.

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