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थोक महंगाई 16वें महीने भी घटी, फरवरी में शून्य से 0.91% नीचे

नयी दिल्ली : थोक मूल्य मुद्रास्फीति लगातार 16वें महीने शून्य से नीचे रही और खाद्य उत्पादों विशेष तौर पर सब्जियों और दालों के सस्ते होने से यह फरवरी माह में शून्य से 0.91 प्रतिशत नीचे रही. थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में शून्य से 0.90 प्रतिशत नीचे थी. पिछले साल फरवरी में यह शून्य […]

नयी दिल्ली : थोक मूल्य मुद्रास्फीति लगातार 16वें महीने शून्य से नीचे रही और खाद्य उत्पादों विशेष तौर पर सब्जियों और दालों के सस्ते होने से यह फरवरी माह में शून्य से 0.91 प्रतिशत नीचे रही. थोक मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति जनवरी में शून्य से 0.90 प्रतिशत नीचे थी. पिछले साल फरवरी में यह शून्य से 2.17 प्रतिशत नीचे थी. नवंबर 2014 से थोक मुद्रास्फीति शून्य से नीचे चल रही है. आज जारी आधिकारिक आंकडों के मुताबिक थोक खाद्य मुद्रास्फीति फरवरी में तेजी से घट कर 3.35 प्रतिशत रही जो जनवरी में 6.02 प्रतिशत थी.

दाल दलह की मुद्रास्फीति घट कर 38.84 प्रतिशत पर आ गयी जबकि प्याज के भाव सालाना आधार पर 13.22 प्रतिशत नीचे रहे. सब्जियों के थोक भाव भी पिछले साल से 3.34 प्रतिशत फलों के भाव 1.95 प्रतिशत नीचे रहे. आलू की मुद्रास्फीति भी शून्य से 6.28 प्रतिशत नीचे रही जबकि अंडा, मांस और मछली के भाव सालाना आधार पर फरवरी में 3.47 प्रतिशत ऊंचे थे. ईंधन और बिजली खंड की मुद्रास्फीति शून्य से 6.40 प्रतिशत नीचे रही और विनिर्मित उत्पादों के वर्ग में महंगाई दर फरवरी माह में शून्य से 0.58 प्रतिशत नीचे रही.

थोकमूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति का दिसंबर का संशोधित आंकडा शून्य से 1.06 प्रतिशत नीचे रहा जो अस्थाई अनुमानों में शून्य से 0.73 प्रतिशत नीचे बताया गया था. रिजर्व बैंक नीतिगत दर तय करने में अब मुख्य तौर पर खुदरा मुद्रास्फीति को ध्यान में रखता है. केंद्रीय बैंक औद्योगिक उत्पादन आंकडे को भी ध्यान में रखता है जो लगातार तीसरी महीने जनवरी में भी गिरा.

विनिर्माण क्षेत्र के खराब प्रदर्शन के मद्देनजर जनवरी में इसमें औद्योगिक उत्पादन एक साल पहले की तुलना में 1.5 प्रतिशत संकुचित हुआ.उद्योगजगत रिजर्व बैंक की नीतिगत दर में कटौती की मांग कर रहा है ताकि मांग और औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहन मिल सके.सरकार बजट 2016-17 में राजकोषीय स्थिति को मजबूत करने के संकल्प पर कायम है. ऐसे में केंद्रीय बैंक के लिए अगले वित्त वर्ष की पहली द्वैमासिक नीतिगत समीक्षा में ब्याज दर में कटौती की और गुंजाइश बनती है.

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