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जानें कैसे ”कर्ज के किंग” बन गए विजय माल्या!

नयी दिल्ली : बिजनेस टाइकून समझे जानेवाले माल्‍या ने अमेरिका के साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी की डिग्री हासिल की है. उद्योगपति पिता विट्ठल माल्या की मृत्‍यु के बाद वे यूनाइटेड ब्रेवरीज कंपनी के मालिक बन गये. ढाका में जन्मे विट्ठल माल्या यूनाइटेड ब्रेवरीज ग्रुप के चेयरमैन थे और कोलकाता से शुरुआत […]

नयी दिल्ली : बिजनेस टाइकून समझे जानेवाले माल्‍या ने अमेरिका के साउथ कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में पीएचडी की डिग्री हासिल की है. उद्योगपति पिता विट्ठल माल्या की मृत्‍यु के बाद वे यूनाइटेड ब्रेवरीज कंपनी के मालिक बन गये. ढाका में जन्मे विट्ठल माल्या यूनाइटेड ब्रेवरीज ग्रुप के चेयरमैन थे और कोलकाता से शुरुआत करने के बाद वे बेंगलुरु में बस चुके थे. विजय माल्या ने कारोबार का विस्तार करते हुए देश-विदेश में कई कंपनियां स्‍थापित कीं.

जानकारों का कहना है कि माल्या भारत में शराब कारोबार से जुड़े नजरिये को बदलना चाहते थे. इसलिए उन्होंने इसे कॉरपोरेट टच देना शुरू किया और इसके लिए अच्छे मैनेजमेंट संस्थानों से पढ़े-लिखे लोगों को रखा. धीरे-धीरे शायद उन्हें यह महसूस हुआ कि बतौर शराब कारोबारी छवि से बेहतर है उद्योगपति के रूप में ख्याति अर्जित करना. लिहाजा उन्होंने अन्य क्षेत्रों में अपने कारोबार को फैलाना शुरू किया.

सबसे बड़ी शराब कंपनी के मालिक थे

विजय माल्या एक समय दुनिया की सबसे बड़ी शराब बनानेवाली कंपनी यूनाइटेड स्प्रिट्स लिमिटेड के चेयरमैन थे. अमेरिका की बड़ी शराब कंपनी डियाजियो के साथ मिल कर यूनाइटेड स्प्रिट्स लिमिटेड अंतरराष्‍ट्रीय बियर बाजार में भारत का नेतृत्‍व करती थी. वर्ष 1826 में स्थापित यूनाइटेड स्प्रिट्स लिमिटेड भारत में उत्पादन और वितरण का काम करती है. एक समय इस कंपनी ने शराब की बिक्री का रिकॉर्ड कायम किया था. लेकिन, किंगफिशर एयरलाइंस में हुए घाटे को चुकाने के लिए उन्हें अपनी यह कंपनी गंवानी पड़ी.

ग्लैमर से गौरव तक

विजय माल्या की छवि ग्लैमर पसंद और हसीनाओं से घिरे रहनेवाले रईस के रूप में रही है. महंगी घड़ियों और कारों के शौकीन माल्या उद्योग से इतर अपनी रंगीन मिजाज जीवनशैली के लिए हमेशा चर्चा में रहते हैं. अपने दम पर कई बार उन्होंने देशवासियों को गौरव का एहसास भी कराया है. 2004 में माल्या ने लंदन में हुई नीलामी के दौरान टीपू सुल्तान की तलवार एक लाख 75 हजार पाउंड में खरीदी थी. 2007 में उन्होंने फार्मूला वन स्पाइकर टीम में खरीदी और बाद में इसका नाम बदल कर फोर्स इंडिया फार्मूला वन रखा गया था. वर्ष 2009 में उन्होंने न्यूयॉर्क में हुई एक नीलामी में महात्मा गांधी के कुछ सामानों के लिए तीन बिलियन डॉलर की बोली लगा दी थी.

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