नीति बनाना आसान, लागू कराना कठिन: राजन
लंदन : भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के हमले के इतर भारत में मौद्रिक नीति निर्माण की अपनी जिम्मेदारी को ‘मजेदार’ और आसान बताते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि जटिलता वहां से शुरू होती है जब नीति को राजनीतिक रुप से स्वीकार्य बनाने की बात आती है और इसके लिए ‘थोडी […]
लंदन : भाजपा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी के हमले के इतर भारत में मौद्रिक नीति निर्माण की अपनी जिम्मेदारी को ‘मजेदार’ और आसान बताते हुए रिजर्व बैंक गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि जटिलता वहां से शुरू होती है जब नीति को राजनीतिक रुप से स्वीकार्य बनाने की बात आती है और इसके लिए ‘थोडी चतुराई’ की जरुरत होती है.
उन्होंने नीति को राजनीतिक रुप से सुग्राह्य बनाने की चुनौति के विषय में आगे कहा, ‘‘आप ऐसे कुछ मौकों पर धक्का-पेली कर अपना रास्ता नहीं बना सकते, इसलिए आपको थोडी चतुराई से काम लेना पडता है. आपको समझना होता है कि किस जगह नीति को बुनियादी अर्थशास्त्र के सिद्धांत से थोडा बदल देने से उस पर बहुत कम फर्क पडता है पर इससे वह नीति राजनीतिक रुप से अधिक स्वीकार्य हो जाती है.” राजन दो दिन की मार्शल व्याख्यानमाला 2015-16 की अंतिम प्रस्तुति में कल शाम यहां केंब्रिज विश्वविद्यालय के छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत जैसे उभरते बाजार में नीति निर्माण मुख्य रुप से बुनियादी किस्म के आर्थशास्त्र पर आधारित है.
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के पूर्व मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा, ‘‘ज्यादातर नीति निर्माण बुनियादी अर्थशास्त्र है. वहां बहुत सी ऐसी चीजें हैं जिनके लिए औद्योगिक देशों की तरह अर्थशास्त्र की गहरी समझ की जरुरत नहीं होती। मेरा विचार से गहरी समझ जब आती है जब आप इसे राजनीति तौर पर व्यवहार्य बनाने की कोशिश कर रहे हैं.” यह पूछने पर कि क्या उन्हें भारत में आर्थिक नीति का निर्माण आसान लगता है, उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा, ‘‘नीति निर्माण आसान है. मुझे लगता है कि नीति का कार्यान्वयन ज्यादा मुश्किल है.”
राजन ने कहा, ‘‘विकासशील देश में नीति निर्माण का मजा यह है कि कई ऐसी जगहें हैं जहां अच्छी नीति से उल्लेखनीय असर हो सकता है. इस लिहाज से बहुत से आसान काम हैं जो उनको करने में अक्सर कोई बडी बाधा नहीं आती है.” उन्होंने कहा, ‘‘अपको थोडा चतुर होना पडेगा ताकि आप यह समझ सकें कि नीति का कौन सा फल तोडना आसान है और कौन सा नहीं। यदि किसी फल को तोडना आसान नहीं है तो उसके लिए क्या तरकीब हो सकती है.” शिकागो विश्वविद्यालय के बूथ स्कूल में वित्त विभाग में प्रोफेसर के पद से अवकाश पर चल रहे राजन का व्याख्यान ‘बैंक, केंद्रीय बैंक और संकट’ विषय पर था। इसका आयोजन केंब्रिज विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग ने किया था.
उन्होंने बैंकिंग प्रणाली और केंद्रीय बैंकों की भूमिका के बारे में बात कही. छात्रों और शैक्षणिक समुदाय को संबोधित करते हुए राजन ने अपनी बात ही यहां से शुरु की कि ‘मैं जो भी कह रहा हूं वह नीतिगत बयान नहीं है. यह सिर्फ विश्व-दृष्टि है. ‘
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