सरकार इपीएफओ अंशधारकों को पेंशन योजना में अधिक योगदान की दे सकती है अनुमति
नयीदिल्ली : सरकार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन :इपीएफओ: आधारित पेंशन योजना के तहत अपने अंशधारकों को नियोक्ताओं के अनिवार्य योगदान के अलावा पेंशन योजना में स्वैच्छिक योगदान देने की अनुमति दे सकती है ताकि कर्मचारियों सेवा निवृत्ति के बाद अपेक्षाकृत और अधिक पेंशन का लाभ प्राप्त हो सके. फिलहाल मूल वेतन और महंगाई भत्ते को […]
नयीदिल्ली : सरकार कर्मचारी भविष्य निधि संगठन :इपीएफओ: आधारित पेंशन योजना के तहत अपने अंशधारकों को नियोक्ताओं के अनिवार्य योगदान के अलावा पेंशन योजना में स्वैच्छिक योगदान देने की अनुमति दे सकती है ताकि कर्मचारियों सेवा निवृत्ति के बाद अपेक्षाकृत और अधिक पेंशन का लाभ प्राप्त हो सके. फिलहाल मूल वेतन और महंगाई भत्ते को मिलाकर अधिकतम 15,000 रुपये मासिक वेतन पर पेंशन कोष के अंशदान की कटौती की जाती है, भले ही कर्मचारी का वेतन इससे उपर क्यों न हो. केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त डा. वीपी जॉय ने ‘भाषा’ के साथ विशेष बातचीत में कहा, ‘‘हम इपीएस 95 के तहत कर्मचारियों को योगदान देने की अनुमति देने के प्रस्ताव पर विचार कर रहे हैं. ताकि उसे सेवानिवृत्ति के बाद अधिक लाभ मिल सके.’ उल्लेखनीय है कि इपीएफओ के दायरे में आने वाले कर्मचारियों मूल वेतन और डीए के योग का 12 प्रतिशत कर्मचारी भविष्य निधि (इपीएफ) में जबकि नियोक्ता के 12 प्रतिशत योगदान में 8.33 प्रतिशत कर्मचारी पेंशन योजना (इपीएस) में जाता है. शेष इपीएफ में जुड़ जाता है. इसके अलावा मूल वेतन का 1.16 प्रतिशत सरकार सब्सिडी केरूप में देती है. इससे पेंशन खाते में 15,000 रुपये मूल वेतन सीमा के साथ अधिकतम 1,424 रुपये मासिक जाता है.
इपीएफओ न्यासी केंद्रीय न्यासी बोर्ड एक बार इस प्रस्ताव को मंजूरी दे देता है तो कर्मचारी को पेंशन कोष (इपीएस 95) में नियोक्ता के अलावा योगदान देने का विकल्प होगा. अंशधारकों के वेतन में वृद्धि को देखते हुए पेंशन कोष में स्वैच्छिक योगदान के प्रस्ताव पर विचार किया जा रहा है.
एक अधिकारी ने कहा, ‘‘चूंकि इपीएस 95 योजना के तहत मुद्रास्फीति से जुड़ी नहीं है, अत: सेवानिवृत्ति के बाद पेंशन स्थिर बनी रहती है. अत: कर्मचारियों को पेंशन योजना में योगदान का विकल्प मिलना चाहिए.’
यह पूछे जाने पर कि स्वैच्छिक योगदान के संदर्भ में अंतिम निर्णय कब तक किया जाएगा, उन्होंने कहा, ‘‘ अभी विचार चल रहा है, इसके समय के बारे में अभी कुछ कहना ठीक नहीं होगा.’ इपीएस (कर्मचारी पेंशन स्कीम) पर मिलने वाले ब्याज और उसके गणना के तरीके जटिल होने के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय भविष्य निधि आयुक्त जॉय ने कहा, ‘‘इसकी गणना हम उस तरीके से नहीं कर सकते जैसा कि इपीएफ में होता है. इपीएस के तहत गणना व्यक्ति की नौकरी की अवधि तथा अंतिम पांच साल में वेतन (मूल वेतन तथा डीए) के औसत के आधार पर किया जाता है.’ उन्होंने स्पष्ट किया, ‘‘पेंशन फंड, भविष्य निधि की तरह व्यक्तिगत कोष नहीं है. यह फिलहाल एकमात्र ‘परिभाषित पेंशन’ योजना है. हम यह नहीं देखते कि किसी व्यक्ति का कितना योगदान है.’ वैसे एक मोटा-मोटी अनुमान के अनुसार 15,000 रुपये के मूल वेतन के साथ करीब 35 साल की नौकरी के बाद पेंशन करीब 7,500 रुपये प्रति महीने बनेगा.
उन्होंने कहा, ‘‘अगर व्यक्ति ने नौ साल भी काम किया है, उसे हमें न्यूनतम 1,000 रुपये मासिक पेंशन देना ही है.’ सरकार ने इपीएस के तहत न्यूनतम पेंशन 1,000 रुपये मासिक कर दिया है लेकिन श्रमिक संगठन इसे अब भी काफी कम बताते रहे हैं और इसे 3,000 रुपये मासिक करने की मांग कर रहे हैं. इपीएफओ के दायरे में आने वाले कर्मचारी 58 साल की उम्र पूरी करने के साथ इपीएस के दायरे से बाहर हो जाते हैं. उसके बाद नियोक्ता का 8.33 प्रतिशत योगदान भी संबंधित कर्मचारी के भविष्य निधि में जाता है. देश में अभी करीब चार करोड़ सक्रिय इपीएफओ अंशधारक हैं.
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