NPA की साफ-सफाई का काम काफी पहले शुरू होना चाहिए था : राजन

मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने आज स्वीकार किया कि बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की साफसफाई काम केंद्रीय बैंक को काफी पहले शुरू करना चाहिए था. बैंकों की बैलेंस-शीट की सफाई पर सख्ती से उद्योगजगत की कुछ शक्तियां खफा हो गयी हैं.राजन ने यहां रिजर्व बैंक मुख्यालय में दसवें सांख्यिकी दिवस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2016 8:56 PM

मुंबई: रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने आज स्वीकार किया कि बैंकों की गैर निष्पादित आस्तियों (एनपीए) की साफसफाई काम केंद्रीय बैंक को काफी पहले शुरू करना चाहिए था. बैंकों की बैलेंस-शीट की सफाई पर सख्ती से उद्योगजगत की कुछ शक्तियां खफा हो गयी हैं.राजन ने यहां रिजर्व बैंक मुख्यालय में दसवें सांख्यिकी दिवस सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘मुद्रास्फीति की तरह, केंद्रीय बैंक की यह भी जिम्मेदारी है कि उसे बैंकों को इसतरह की साफ-सफाई के लिए और पहले से दबाव डालना चाहिए था.” उन्होंने यह भी बताया कि शुरुआत में बैंक इसके लिए तैयार नहीं थे. डूबे कर्ज की साफसफाई का कमा दिसंबर, 2015 में शुरू हुआ था. रिजर्व बैंक ने 150 ऐसे बडे खातों की पहचान की थी जिन्हें अपनी ऋण प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में समस्या आ रही थी.

उन्होंने कहा कि अच्छी बात यह है कि शुरुआती हिचकिचाहट के बाद बैंक इस काम के लिए तैयार हुए और कुछ तो जो उनसे अपेक्षा थी, उससे भी आगे निकल गए। राजन ने कहा कहा कि ऋण की समस्या को नजरअंदाज करना आसान था क्यों कि उम्मीद रहती है कि यह किसी तरह से निकल जाएगा. लेकिन कर्ज में हानि की बीमारी में ‘बढने की प्रवृत्ति होती है, यह इतनी बढ जाती है कि उसकी अनदेखी करना मुश्किल हो जाता है, देरी होने पर उसे संभालना आसान नहीं रह जाता है पूरी बैंकिंग प्रणाली के सामने संकट खड़ा हो जाता हैवर्ष 2015 के अंतिम महीनों में रिजर्व बैंक 150 खातों की सूची लाया था, जिसे बाद में घटाकर 120 कर दिया गया.
उसने सभी बैंकों से उन सभी गैर निष्पादित आस्तियों या डूबे कर्ज में फंसी अपनी पूंजी बताने को कहा गया था. केंद्रीय बैंक ने बैंकों को नुकसान का पता लगाने को दो तिमाहियों का समय दिया था. कुछ अनुमानों के अनुसार इस डूबे कर्ज में नुकसान को ‘भरने’ में बैंकों को 70,000 करोड़ रुपये की चोट लगी है. इस सासफाई के आदेश के बाद सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की अगुवाई में बैंकों ने मार्च, 2016 तक अपनी 14 प्रतिशत यानी 8 लाख करोड रपये की परिसंपत्तियों को दबाव वाला घोषित किया. वहीं अकेले एनपीए 7.6 प्रतिशत के पार चला गया.

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