मुंबई : सेबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि देश में अवैध सार्वजनिक जमा योजनाएं मनी लांड्रिंग का एक बडा जरिया भी है और उसने आश्चर्य जताया कि इसी तरह के बहुचर्चित सहारा मामले में तमाम लोग अपना धन वापस लेने का दावा करने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं. सेबी के पूर्णकालिक सदस्य एस रमण ने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘जहां तक सहारा का सवाल है, हमारे पास एक अच्छी खासी राशि है लेकिन कोई ज्यादा दावेदार नहीं है. यह एक सवाल है कि आखिर कोई दावेदार क्यों नहीं है जबकि हमने कई विज्ञापन दिये और धन लौटाने के लिये आवेदन मांगे.’ अवैध तरीके से धन जुटाने की गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिये राज्य स्तरीय समन्वय समिति (एसएलसीसी) योजना के तहत वेबसाइट शुरू किये जाने के मौके पर रमण ने कहा, ‘इस प्रकार की योजनाओं में बडे पैमाने की मनी लांड्रिंग का तत्व भी होता है.’
उन्होंने कहा कि इसके कारण वित्त मंत्रालय के प्रवर्तन निदेशालय को भी राज्य स्तरीय समन्वय समिति में रखा गया है. समिति 2014 से काम करना शुरू कर चुकी है. रमण ने कहा कि सहारा मामले में ट्रकों में भरकर दस्तावेज दिये गये जो एक-दूसरे से जुडे नहीं थे और उन दस्तावेजों को देखना एक दुष्कर कार्य था जिसे दुनिया में किसी भी नियामक ने नहीं किया. उन्होंने कहा, ‘हमारी इच्छा है कि जहां तक हो सके लोगों का पैसा वापस किया जाए.’
सहारा का सेबी के साथ लंबे समय से विवाद चल रहा है जो कुछ बांड निर्गमों के जरिये लोगों से धन जुटाने से जुडा है. सहारा समूह से हजारों करोड रपये ब्याज के साथ निवेशकों का पैसा सेबी के जरिये लौटाने को कहा गया है. समूह का दावा है कि वह 95 प्रतिशत निवेशकों को पहले ही धन लौटा चुका है. सेबी के पास ताजा आंकडों के अनुसार उसे अपने सहारा धन वापसी खाते में 11,272 करोड रुपये ब्याज के साथ मिले हैं जबकि रिफंड का दावा करने वाले निवेशकों को इसमें से केवल 55 करोड रुपये लौटाये गये हैं.
पर्ल ग्रुप की इकाई पीएसीएल से जुडे एक अन्य मामले का जिक्र करते हुए रमण ने कहा कि हाल में पूर्व मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता में हाल ही में एक समिति गठित की गयी है. समिति समूह की संपत्ति का ब्योरा प्राप्त करने की कोशिश कर रही है. सेबी ने कंपनी से निवेशकों से वसूले गये 50,000 करोड रुपये लौटाने को कहा है.
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