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रिजर्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाया,बढ़ सकती है ईएमआई

मुंबई : रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बाजार को चकित करने वाले एक और फैसले में आज केंद्रीय बैंक की मुख्य नीतिगत ब्याज दर रेपो 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर आठ प्रतिशत कर दिया। इस कदम का उद्देश्य मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसना है. रेपो वह दर है जिसपर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को एकाध दिन […]

मुंबई : रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने बाजार को चकित करने वाले एक और फैसले में आज केंद्रीय बैंक की मुख्य नीतिगत ब्याज दर रेपो 0.25 प्रतिशत बढ़ाकर आठ प्रतिशत कर दिया। इस कदम का उद्देश्य मुद्रास्फीति पर शिकंजा कसना है.

रेपो वह दर है जिसपर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को एकाध दिन के लिए पैसा उधार देता है. इसके बढ़ने से बैंकों की धन की लागत बढ़ जाएगी और वे वाणिज्यिक और उपभोक्ता रिणों पर ब्याज बढ़ा सकते हैं.

राजन ने केंद्रीय बैंक की तीसरी तिमाही की मौद्रिक नीति की समीक्षा प्रस्तुत करते हुये कहा, ‘‘…नीतिगत(रेपो )दर में 25 अंक (0.25 प्रतिशत )बढ़ोतरी करने की आवश्यकता है, ताकि अर्थव्यवस्था को कम मुद्रास्फीति वाली राह पर रखा जा सके, जिसकी कि सिफारिश की जाती रही है.’’

रिजर्व बैंक की तिमाही मौद्रिक नीति समीक्षा की मुख्य बातें:

आरबीआई की मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही की मुख्य बातें इस प्रकार हैं:

1. रेपो दर 0.25 प्रतिशत बढ़कर 8 प्रतिशत की गयी.

2. आरक्षित नकद अनुपात :सीआरआर: 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित.

3. अल्पकालिक उधार की सीमांत अस्थाई सुविधा :एमएसएफ: दर 9 प्रतिशत.

4. आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में 5 प्रतिशत से कम रहेगी.

5. 2014-15 में वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत के आस पास रह सकती है.

6. चालू खाते का घाटा चालू वित्त वर्ष में जीडीपी का 2.5 प्रतिशत रहेगा.

7. मार्च के अंत में मुद्रास्फीति 8 प्रतिशत को पार कर सकती है.

8. ब्याज दरों में वृद्धि से अर्थव्यस्था निम्न मुद्रास्फीति के मार्ग पर रखा जा सकता है.

9. चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में वृद्धि कम रहेगी.

10. अर्थव्यवस्था में नरमी चिंताजनक होती जा रही है 11. मुद्रास्फीति एक असमानताकारी कर है जो गरीबों को सबसे अधिक प्रभावित करती है.

12. राजकोषीय और मौद्रिक नीतियों में स्थिरता पर ध्यान बना रहेगा.

13. मौद्रिक नीति की समीक्षा अब से हर दो महीने पर होगी, अगली समीक्षा एक अप्रैल को होगी.

वृद्धि दर 2013-14 में पांच प्रतिशत से नीचे रह सकती है:आरबीआई

मुंबई : रिजर्व बैंक ने आज कहा कि विनिर्माण क्षेत्र में तेजी के अभाव में वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत से नीचे आ सकती है लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसके सुधरकर 5.5 प्रतिशत तक रहने की संभावना है. आरबीआई ने मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा के साथ वृहत्-आर्थिक एवं मौद्रिक विकास रपट जारी करते हुए कहा ‘‘लगातार दो महीने से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के मद्देनजर 2013-14 की दूसरी छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में तेजी की संभावना कम हुई है.’’ रपट में कहा गया कि आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत के औसत अनुमान से कुछ कम रहेगी.

वित्त वर्ष 2013-14 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत थी.

आरबीआई ने कहा कि वित्त वर्ष 2014-15 के लिए वृद्धि दर पांच से छह प्रतिशत के दायरे में रहेगी और इस तरह अगले वित्त वर्ष में वृद्धि दर औसतन 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

रेपो दर में बढ़ोतरी के रिवर्स रेपो दर :जिस दर पर आरबीआई बैंकों से नकदी समायोजन सुविधा के तहत फौरी तौर पर नकदी लेता है: भी उसी तरह बढा कर 7 प्रतिशत और अल्पकालिक उधार की सीमांत अस्थाई सुविधा :एमएसएफ: और बैंक दर बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दी गयी है.

बैंकों के पास नकदी की मात्र को आरामदायक स्तर पर बनाए रखने के लिए आरबीआई ने आरक्षित नकदी अनुपात को 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया। सीआरआर के तहत वाणिज्यिक बैंकों को अपनी जमाओं का निश्चित हिस्सा केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में रखना होता है. इस पर उन्हें ब्याज नहीं मिलता.

बाजार को उम्मीद की जा रही थी कि राजन अर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत ब्याज कम न करें तो उसे पूर्ववत बनाए रखेंगे। उस लिहाज से आज का निर्णय अप्रत्याशित है. राजन इससे पहले भी ब्याज दर को लेकर इसी तरह के फैसले से बाजार को चौंका चुके हैं.

तिमाही समीक्षा से पहले राजन ने मुद्रास्फीति को ‘घातक रोग’ करार दिया था.

रिजर्व बैंक ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत से नीचे रहेगी और 2014-15 में यह बढ़कर औसतन 5.5 प्रतिशत हो जाएगी.

राजन ने कहा कि उजिर्त पटेल समिति के सुझाव के मुताबिक अब मौद्रिक नीति की समीक्षा हर दो महीने पर होगी जो मुख्य वृहत्-आर्थिक और वित्तीय आंकड़ों की उपलब्धता के अनुकूल है.

खुदरा मुद्रास्फीति के संबंध में वर्तमान रझानों और मौजूदा नीतिगत रख पर आधारित आरबीआई के अनुमानों से संकेत मिलता है कि अगले 12 महीने में मुद्रास्फीति के आठ प्रतिशत के अनुमान से अधिक रहने का जोखिम है.

वृद्धि दर 2013-14 में पांच प्रतिशत से नीचे रह सकती है:आरबीआई

मुंबई : रिजर्व बैंक ने आज कहा कि विनिर्माण क्षेत्र में तेजी के अभाव में वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत से नीचे आ सकती है लेकिन अगले वित्त वर्ष में इसके सुधरकर 5.5 प्रतिशत तक रहने की संभावना है.

आरबीआई ने मौद्रिक नीति की तीसरी तिमाही समीक्षा के साथ वृहत्-आर्थिक एवं मौद्रिक विकास रपट जारी करते हुए कहा ‘‘लगातार दो महीने से औद्योगिक उत्पादन में गिरावट के मद्देनजर 2013-14 की दूसरी छमाही में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में तेजी की संभावना कम हुई है.’’

रपट में कहा गया कि आर्थिक वृद्धि पांच प्रतिशत के औसत अनुमान से कुछ कम रहेगी.वित्त वर्ष 2013-14 की पहली छमाही में सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत थी.

आरबीआई ने कहा कि वित्त वर्ष 2014-15 के लिए वृद्धि दर पांच से छह प्रतिशत के दायरे में रहेगी और इस तरह अगले वित्त वर्ष में वृद्धि दर औसतन 5.5 प्रतिशत रहने का अनुमान है.

रेपो दर में बढ़ोतरी के रिवर्स रेपो दर :जिस दर पर आरबीआई बैंकों से नकदी समायोजन सुविधा के तहत फौरी तौर पर नकदी लेता है: भी उसी तरह बढा कर 7 प्रतिशत और अल्पकालिक उधार की सीमांत अस्थाई सुविधा :एमएसएफ: और बैंक दर बढ़ाकर 9 प्रतिशत कर दी गयी है.

बैंकों के पास नकदी की मात्र को आरामदायक स्तर पर बनाए रखने के लिए आरबीआई ने आरक्षित नकदी अनुपात को 4 प्रतिशत पर अपरिवर्तित रखा गया. सीआरआर के तहत वाणिज्यिक बैंकों को अपनी जमाओं का निश्चित हिस्सा केंद्रीय बैंक के नियंत्रण में रखना होता है. इस पर उन्हें ब्याज नहीं मिलता.

बाजार को उम्मीद की जा रही थी कि राजन अर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए नीतिगत ब्याज कम न करें तो उसे पूर्ववत बनाए रखेंगे। उस लिहाज से आज का निर्णय अप्रत्याशित है. राजन इससे पहले भी ब्याज दर को लेकर इसी तरह के फैसले से बाजार को चौंका चुके हैं.

तिमाही समीक्षा से पहले राजन ने मुद्रास्फीति को ‘घातक रोग’ करार दिया था.

रिजर्व बैंक ने कहा है कि आर्थिक वृद्धि चालू वित्त वर्ष में पांच प्रतिशत से नीचे रहेगी और 2014-15 में यह बढ़कर औसतन 5.5 प्रतिशत हो जाएगी.

राजन ने कहा कि उजिर्त पटेल समिति के सुझाव के मुताबिक अब मौद्रिक नीति की समीक्षा हर दो महीने पर होगी जो मुख्य वृहत्-आर्थिक और वित्तीय आंकड़ों की उपलब्धता के अनुकूल है.

खुदरा मुद्रास्फीति के संबंध में वर्तमान रझानों और मौजूदा नीतिगत रख पर आधारित आरबीआई के अनुमानों से संकेत मिलता है कि अगले 12 महीने में मुद्रास्फीति के आठ प्रतिशत के अनुमान से अधिक रहने का जोखिम है.

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