जलवायु समझौते पर भारत को करना चाहिए अमेरिका और चीन का अनुसरण : चीनी मीडिया
हांगझोउ : भारत जहां पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन इसी साल करवाने के लिए अमेरिका और चीन की ओर से बनाए जा रहे दबाव का विरोध कर रहा है, वहीं चीनी आधिकारिक मीडिया ने कहा है कि अब समय आ गया है कि भारत यह दिखा दे कि वह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित […]
हांगझोउ : भारत जहां पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन इसी साल करवाने के लिए अमेरिका और चीन की ओर से बनाए जा रहे दबाव का विरोध कर रहा है, वहीं चीनी आधिकारिक मीडिया ने कहा है कि अब समय आ गया है कि भारत यह दिखा दे कि वह जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिए वाकई गंभीर है. भारत पर दबाव बनाने वाले अमेरिका और चीन विश्व भर में होने वाले लगभग 40 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं. सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपे एक लेख में आज कहा गया, अमेरिका और चीन द्वारा पेरिस जलवायु समझौते का अनुमोदन किए जाने से ‘दूसरी उभरती एवं औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं’ के लिए एक मिसाल कायम हुई है.
उन्होंने कहा, ‘अब समय आ गया है कि क्रमश: तीसरे और चौथे सबसे बड़े उत्सर्जक यानी यूरोपीय संघ और भारत भी यह दिखा दें कि वे जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को सीमित करने के लिए गंभीर हैं.’ जी20 सम्मेलन में जब चीन और अमेरिका ने जलवायु परिवर्तन समझौते के अनुमोदन के लिए 2016 को एक समय सीमा के रूप में स्थापित करने की कोशिश की तो भारत ने उनकी ओर से डाले जाने वाले दबाव का विरोध किया. ये दोनों देश खुद इस समझौते का अनुमोदन करके संयुक्त राष्ट्र को सूचित कर चुके हैं.
कानूनी बाधाओं के कारण समझौते का अनुमोदन नहीं : पनगढिया
जी20 सम्मेलन में भारत के प्रतिनिधि और नीति आयोग के प्रमुख अरविंद पनगढिया ने कहा कि भारत और कई अन्य देशों का मानना है कि विभिन्न कानूनी बाधाओं के चलते वे इस समझौते का अनुमोदन नहीं कर सकते. पनगडिया ने कहा, ‘मेरे दिमाग में कोई समयसीमा नहीं है लेकिन हम प्रगति के बारे में जानकारी देंगे.’ आज के लेख में कहा गया कि अमेरिका और चीन की ओर से समझौते पर हस्ताक्षर किया जाना ‘लागू होने वाली संधि की दिशा में एक बेहद अहम कदम है क्योंकि इसके लिए कम से कम 55 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन करने वाले कम से कम 55 देशों का साथ आना जरुरी है. चीन और अमेरिका के साथ 26 देश अनुमोदन कर चुके हैं. ये सभी देश कुल मिलाकर 39.06 प्रतिशत वैश्विक उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं.’
उत्सर्जन कर करने के महत्व को समझता है भारत
लेख में कहा गया, ‘यह कहना उचित है कि भारत ने उत्सर्जन कम करने के महत्व को समझ लिया है और कई प्रयास किए हैं. दिसंबर 2015 में पेरिस जलवायु सम्मेलन से पहले, नयी दिल्ली ने अपने उत्सर्जन कम करने की एक दीर्घकालिक योजना जमा कराई थी. इसमें भारत ने संकल्प लिया था कि वह वर्ष 2030 तक जीवाश्म ईंधन के उत्सर्जन को वर्ष 2005 के स्तर की तुलना में 35 प्रतिशत कम करेगा. लेख में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के साथ जून में एक संयुक्त बयान में कहा था कि भारत ने पेरिस समझौते को लागे करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. लेख में कहा गया, ‘संयुक्त राष्ट्र के महासचिव बान की-मून जहां इस बात को लेकर ‘आशान्वित और सकारात्मक’ हैं कि इस समझौते को साल के अंत तक लागू किया जा सकता है, वहीं भारतीय अधिकारी ऐसा नहीं मानते. अंतत: नयी दिल्ली को एक अंर्तद्वंद्व से निकलना है.’
धरती को बचाने के लिए अपनी जिम्मेवारी उठाए भारत
लेख में कहा गया, ‘चीन भी विकास के उसी चरण से होकर गुजरा है और तब भी उसने ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने की दिशा में अहम प्रतिबद्धता दिखाई है. भारत एक वैश्विक शक्ति बनने और अंतरराष्ट्रीय मामलों में बडी भूमिका निभाने के लिए प्रयासरत है. इसलिए उसे धरती को बचाने के लिए मुश्किलों की चिंता किए बिना अपनी जिम्मेदारियों को उठाना चाहिए और कार्रवाई करनी चाहिए.’ इसमें कहा गया, ‘इस प्रक्रिया में चीन एक विश्वसनीय सहयोगी हो सकता है. भारत ने अपने प्रस्ताव में पिछले साल संकल्प लिया था कि वह सौर बिजली, पन बिजली और पवन ऊर्जा जैसी स्वच्छ ऊर्जा के उत्पादन को तेजी से बढाएगा. इसके लिए अन्य देशों से उपयुक्त प्रौद्योगिकियों का स्थानांतरण होना है और चीन बहुत सी उपयोगी प्रौद्योगिकियां एवं अनुभव उपलब्ध करवा सकता है.’
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