कोलकाता : केंद्र सरकार की ओर से 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद करने के अचानक हुए फैसले की करारी मार भारत में मौजूद विदेशी पर्यटकों पर पड़ी है. अब ये पर्यटक फंसे हुए महसूस कर रहे हैं, क्योंकि विदेशी धन को रुपये में बदलवाने के लिए इन्हें काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.
रातोंरात 500 और 1000 रुपये के पुराने नोट बंद कर दिए जाने से विदेशियों, खासकर इलाज कराने के लिए भारत आए लोगों को ट्रैवल एजेंटों या विदेशी मुद्रा विनियम केंद्रों पर निर्भर रहना पड़ रहा है. ट्रैवल एजेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के पूर्वी क्षेत्र के अध्यक्ष अनिल पंजाबी केे मुताबिक, उन्हें नौ नवंबर से ही विदेशी पर्यटकों एवं ट्रैवल एजेंटों के फोन लगातार आ रहे हैं और इनमें ज्यादातर ऐसे हैं जो नोटबंदी के बाद अपनी स्थिति के बारे में शिकायत कर रहे हैं.
पंजाबी ने पीटीआई-भाषा को बताया, ‘‘हो सकता है कि लंबे समय बाद इस फैसले का कोई फायदा हो, लेकिन अभी इसने विदेशी पर्यटकों के लिए मुश्किल खड़ी कर दी है, क्योंकि विदेशी विनिमय केंद्रों के पास इतनी नगद राशि नहीं है कि वे उनकी मुद्राएं बदल सकें.” उन्होंने कहा कि विदेशियों के पास आधार कार्ड, वोटर कार्ड या पैन कार्ड नहीं होने के कारण वे पैसे बदलवाने के लिए तो बैंक जा भी नहीं सकते.
पंजाबी ने कहा, ‘‘उन्हें या तो ट्रैवल एजेंटों पर निर्भर रहना पड़ रहा है या विदेशी मुद्रा विनिमय केंद्रों पर.” उन्होंने कहा, ‘‘कुछ दिन पहले मुझे एक पर्यटक का फोन आया, जिसने मुझे बताया कि उसके पास नगद नहीं है और अपने बच्चे की खातिर दूध खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं.” ट्रैवल एजेंसी चलाने वाले इकबाल मुल्ला ने कहा कि एक नए देश की सैर का आनंद लेने की बजाय एक अनजान जगह पर पैसे के बगैर होने से अनिश्चितता कायम हो गयी है.
मुल्ला ने पीटीआई-भाषा को बताया कि इस कदम से विदेशी पर्यटकों में एक गलत संदेश जाएगा और पर्यटन उद्योग पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने कहा कि ज्यादातर बैंक विदेशी पर्यटकों के पास मौजूद धन को नहीं बदल रहे, जबकि विदेशी विनिमय केंद्रों के बाहर भी लंबी-लंबी कतारें देखी जा रही हैं.
जर्मन पर्यटक रॉबर्ट रुडोविक ने कहा, ‘‘मैंने पिछले हफ्ते 200 अमेरिकी डॉलर बदलवाए थे और ज्यादातर नोट 1000 और 500 रुपये के मिले थे. अब हमारी स्थिति यह हो गयी है कि विदेश में हमारे पास पैसे नहीं हैं. हमारे पास 100 और 50 रुपये के कुछ मान्य नोट ही बचे हैं.” बंगाल के अस्पतालों में इलाज कराने के लिए आए बांग्लादेशियों के लिए भी यह बुरे सपने की तरह है, क्योंकि उन्हें मान्य नोट हासिल करने के लिए काफी चक्कर काटने पड़ रहे हैं.
कोलकाता में इलाज के लिए अपनी मां को लेकर आए अबुल सिद्दीकी ने बताया, ‘‘हम भारत इसलिए आए क्योंकि यहां इलाज का स्तर हमारे देश से कहीं बेहतर है, हालांकि थोड़ा महंगा भी है. ज्यादातर अस्पताल बड़े नोट स्वीकार नहीं कर रहे.” बांग्लादेशी मरीज इलाज के लिए कोलकाता को वरीयता देते हैं, क्योंकि यह भौगोलिक रुप से नजदीक है, भाषा भी समान है और संस्कृति भी मिलती-जुलती है.
बांग्लादेश से आए इमरान अहमद ने कहा, ‘‘अपने बेटे के इलाज के लिए हम पिछले हफ्ते आए और जिस नगद राशि को हमने भारतीय रुपये में बदलवाया तो वे बेकार हो गये. अब हम क्या करेंगे ? हमने ट्रैवल एजेंट से संपर्क किया है, और उम्मीद है कि हमें कुछ मदद मिले.”
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