बैंकों को नये साल में भी झेलना पड़ सकता है फंसे कर्ज का दर्द
नयी दिल्ली : पुराने फंसे कर्ज का संकट झेल रहे बैंकों को नये साल में भी यह दर्द झेलना पड सकता है. नकदी संकट के चलते नये साल में और औद्योगिक इकाइयों, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मझोली इकाइयों (एमएसएमई) के समय पर कर्ज नहीं चुकाने से यह समस्या बढ सकती है. नवंबर में 500, 1,000 […]
नयी दिल्ली : पुराने फंसे कर्ज का संकट झेल रहे बैंकों को नये साल में भी यह दर्द झेलना पड सकता है. नकदी संकट के चलते नये साल में और औद्योगिक इकाइयों, विशेषकर सूक्ष्म, लघु और मझोली इकाइयों (एमएसएमई) के समय पर कर्ज नहीं चुकाने से यह समस्या बढ सकती है. नवंबर में 500, 1,000 रुपये के नोटों को चलन से वापस लेने और नयी मुद्रा जारी करने का बैंकों के मुनाफे पर भी बुरा असर पड सकता है. वर्ष के व्यस्त काम धंधे वाले समय में बैंक पुराने नोट जमा करने और नई मुद्रा जारी करने में लगे रहे. कर्ज वसूली और नया कर्ज देने का काम करीब करीब ठप पड़ा रहा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आठ नवंबर को की गई नोटबंदी की घोषणा के बाद से करीब करीब दो महीने पूरा बैंकिंग क्षेत्र पुराने नोट समेटने और नये नोट जारी करने में ही लगा रहा.
दूसरे सभी काम ठप रहे. देश के सार्वजनिक क्षेत्र के 27 बैंकों में से 14 बैंकों ने पिछले साल कुल 34,142 करोड़ रुपये घाटा उठाया जबकि चालू वित्त वर्ष के दौरान हालात में ज्यादा सुधार नहीं दिखाई देता है. यहां तक कि निजी क्षेत्र के बैंकों में भी फंसे कर्ज की समस्या बढ़ने लगी है. उनका भी मुनाफा कम हुआ है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कर्ज में फंसी राशि यानी एनपीए में सितंबर 2016 को समाप्त तीन माह के दौरान 80,000 करोड़ रुपये की वृद्धि हुई. इन बैंकों का सकल एनपीए सितंबर अंत में 6,30,323 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. जून अंत में यह 5,50,346 करोड रुपये पर था. नोटबंदी के बाद एनपीए बढने की चिंता को देखते हुये रिजर्व बैंक ने एक करोड़ रुपये तक के आवास, कार, कृषि और दूसरे कजोंर् की किस्त वापसी में 60 दिन का अतिरिक्त समय दिया है. हालांकि, बैंकरों को लगता है कि चौथी तिमाही तक इसमें वृद्धि का रख रहेगा.
बैंक वर्ष के आखिरी दो माह में कर्ज देने का काम ज्यादा कुछ नहीं कर पाये. 25 नवंबर को समाप्त पखवाड़े में बैंक ऋण में 61,000 करोड़ रुपये यानी 0.8 प्रतिशत घट गया। इस दिन बैंकों का कुल बकाया कर्ज 72.92 लाख करोड रपये था। इस लिहाज से एक साल पहले के मुकाबले कर्ज वृद्धि 6.6 प्रतिशत रही जो कि पिछले साल इसी अवधि में 9.3 प्रतिशत पर था। ये आंकडे रिजर्व बैंक के हैं. बैंकों के फंसे कर्ज में जानबूझकर कर्ज नहीं लौटाने वालों की संख्या मार्च 2016 की समाप्ति पर 8,167 रही, इसमें 16 प्रतिशत वृद्धि हुई. इन लोगों पर बैंकों का कुल 76,685 करोड़ रुपये बकाया कर्ज है. बैंकों में पूंजी डालने के मामले में सरकार ने पहले ही 22,915 करोड़ रुपये की राशि उपलब्ध कराने की घोषणा कर दी है. यह राशि चालू वित्त वर्ष के लिये तय 25,000 करोड़ रुपये में से दी जायेगी.
इसमें से 75 प्रतिशत राशि पहले ही सार्वजनिक क्षेत्र के 13 बैंकों को दी जा चुकी है. नया कर्ज नहीं दे पाने और पुराने कर्ज में फंसे कर्ज की राशि बढने से बैंकों में पूंजी की आवश्यकता बढ़ गई है. बैंकरों ने बजट पूर्व बैठक में सरकार के समक्ष पूंजी आवश्यकता के बारे में अपनी बात रख दी है. वैश्विक जोखिम मानकों को पूरा करने के लिये बैंकों को अधिक पूंजी की आवश्यकता होगी. बैंकों को बैंक शाखाओं और एटीएम से नकद निकासी सीमा के 30 दिसंबर के बाद भी जारी रहने की आशंका है. उन्हें लगता है कि जितनी नकद राशि की मांग है उस हिसाब से रिजर्व बैंक नये नोट नहीं छाप पा रहा है. रिजर्व बैंक ने 15.4 लाख करोड रुपये के बंद किये गये नोटों के मुकाबले 19 दिसंबर तक 5.92 लाख करोड रपये की नई मुद्रा बैंकिंग तंत्र में पहुंचाई है.
नये बैंकों और अलग अलग तरह के बैंकों की यदि बात की जाये तो वर्ष के दौरान एयरटेल भुगतान बैंक, इक्विटास और उज्जीवन लघु वित्त बैंकों ने क्षेत्र में प्रवेश किया. रिजर्व बैंक ने सभी तक बैंकिंग सुविधाओं का लाभ पहुंचाने के अपने एजेंडे के तहत 21 कंपनियों को भुगतान बैंक और लघु वित्त बैंक के तौर पर काम करने की सैद्धांतिक मंजूरी दी है. आने वाले साल में नई कंपनियों के इस क्षेत्र में उतरने की उम्मीद है. इससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को औपचारिक बैंकिंग के दायरे में लाया जा सकेगा. वर्ष के दौरान बैंकिंग क्षेत्र को धोखाधडी का भी शिकार होना पड़ा.
वर्ष के दौरान बैंकों के 32.4 लाख डेबिट कार्डो में सेंध लगी और सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र के लाखों ग्राहक इस धोखाधडी के शिकार हुए. एटीएम सेवा देने वाली एक कंपनी के एटीएम स्विच तक सेंधमारों की पहुंच बन गई और उससे जुडे 19 बैंकों के कार्ड ग्राहकों को नुकसान हुआ. वर्ष के आखिरी दो महीनों में नोटबंदी की आड में कुछ बैंकों के अधिकारी पुराने नोटों को नये नोटों में बदलने और कालेधन को सफेद करने के काम में संलिप्तता के चलते प्रवर्तन एजेंसियों के हत्थे चढे. इनमें एक्सिस बैंक, बैंक ऑफ बडौदा, कोटक महिन्द्रा बैंक और एचडीएफसी बैंक के अधिकारी और कर्मचारी शामिल रहे.
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