नयी दिल्ली : भारतीय अर्थव्यवस्था ने 2016 में एक बडी उपलब्धि हासिल करते हुए कुछ समय के लिए ब्रिटेन को पीछे छोड़ा दिया जिसका भारत पर कभी राज था। लेकिन यह गौरव ज्यादातर कायम नहीं रह पाया. नोटबंदी तथा वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) को लागू करने में देरी जैसे कारणों से भारतीय अर्थव्यवस्था में फिर पिछडकर छठे स्थान पर पहुंच गई. वर्ष 2016 के शुरु में सब कुछ शानदार नजर आ रहा था। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढती अर्थव्यवस्था था. लेकिन यह रफ्तार कायम नहीं रह पायी.
साल का अंत आते-आते सरकार ने 500 और 1,000 का नोट बंद करने की घोषणा की. इससे जहां लोगों का खर्च घटा, औद्योगिक गतिविधियां बुरी तरह प्रभावित हुईं. इससे व्यापक रुप से वृद्धि संभावनाओं को नीचे किया गया. साल की पहली छमाही में भारत को दुनिया में उम्मीद की किरण बताया जा रहा था। लेकिन उसके बाद ब्रेक्जिट, अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा संरक्षणवादी कदम उठाने के संकेतों, सीरिया की स्थिति तथा कच्चे तेल की कीमतों में जोरदार बढ़ोतरी से यह लाभ सिमट गया.
यदि 2017 की बात की जाए, तो आर्थिक एजेंडा स्पष्ट है. वित्त मंत्री अरुण जेटली को बजट में आर्थिक गतिविधियों को जोरदार तरीके से प्रोत्साहन देना होगा. वित्त मंत्री को न केवल सामाजिक आर्थिक ढांचे पर खर्च बढाना होगा, बल्कि उन्हें नकदी वापस लेने से पैदा हुई स्थिति से निपटने को भी कदम उठाने होंगे. माना जा रहा है कि इस समय ‘फील गुड’ की जरुरत महसूस की जा रही है. किसी समय यह माना जा रहा था कि भारत 2020 में ब्रिटेन के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) को पीछे छोड़ पाएगा. लेकिन इस साल दिसंबर के मध्य में यह मौका आ गया। ब्रेक्जिट के झटके के बाद पाउंड में आई 20 प्रतिशत की जोरदार गिरावट से भारत को यह मौका मिला.
इससे 2016 में ब्रिटेन का सकल घरेलू उत्पाद घटकर 1,870 अरब पाउंड या 2,290 अरब डालर पर आ गया, जबकि भारत का जीडीपी 2,300 अरब डालर या 153 लाख करोड़ रुपये. लेकिन जल्द यह स्थिति बदल गई और विनिमय दरों में तालमेल बैठाने के बाद ब्रिटिश अर्थव्यवस्था 2,300 अरब डॉलर पर पहुंच गई, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था 2,250 अरब डालर रह गई. हालांकि, अभी भी यह उम्मीद है कि नए साल में भारत इस अंतर को पाट लेगा. यदि भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सात प्रतिशत भी रहती है तो वह इसे हासिल कर सकता है, क्योंकि 2020 तक ब्रिटिश अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर दो प्रतिशत के करीब ही रहने का अनुमान है. बीते साल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बडा झटका नोटबंदी था. इससे विशेषरुप से ग्रामीण इलाकों पर खपत में जोरदार कमी आने का अंदेशा है. इनमें भी सेवा क्षेत्र को सबसे अधिक नुकसान का अनुमान है. यहीं नहीं नोटबंदी वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के रास्ते में भी बाधक बनी.
आजादी के बाद के सबसे बडे सुधार को सरकार एक अप्रैल से लागू करने का इरादा रखती है. संसद से संबंधित सहायक विधेयकों पर सहमति नहीं बन पाई है. ऐसे में एक अप्रैल से इसे लागू करने की संभावना काफी कम हो गई है. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा वित्त मंत्री अरुण जेटली को यह श्रेय दिया जाना चाहिए कि वे सुधारों को आगे बढ़ाने पर ध्यान दे रहे हैं. पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा छोडी गई अव्यवस्था को दुरस्त करने के बाद मोदी सरकार ने कडे बुनियादी सुधारों को आगे बढाने की प्रक्रिया शुरु की है. इसके बावजूद निजी क्षेत्र का निवेश अभी भी नहीं आ रहा है. वहीं पूरे साल के दौरान कंपनियों को रिण सुस्त बना रहा. कुछ अनुमानों के अनुसार जीडीपी की वृद्धि दर तीसरी तिमाही में घटकर 6.5 प्रतिशत रह गई है, जो जुलाई-सितंबर में 7.3 प्रतिशत थी. हालांकि, सरकार को भरोसा है कि यह छोटे समय की दिक्कत है. दीर्घावधि में भारत उंची वृद्धि की राह पर लौटेगा.
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