बजट 2017-18 : कंपनियों को मैट से आंशिक छूट दे सकती है सरकार
नयी दिल्ली : न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (मैट) के अधीन आने वाली कंपनियों के लिए एक खुशखबरी है कि सरकार वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में उन्हें राहत दे सकती है. उम्मीद यह की जा रही है कि सरकार इस साल के बजट से मैट को आंशिक तौर पर बाहर कर सकती है. पिछले महीने बजट […]
नयी दिल्ली : न्यूनतम वैकल्पिक टैक्स (मैट) के अधीन आने वाली कंपनियों के लिए एक खुशखबरी है कि सरकार वित्त वर्ष 2017-18 के बजट में उन्हें राहत दे सकती है. उम्मीद यह की जा रही है कि सरकार इस साल के बजट से मैट को आंशिक तौर पर बाहर कर सकती है. पिछले महीने बजट को लेकर हुई वित्त मंत्रालय की बैठक में शामिल होने वाले अधिकारियों का कहना है कि वित्त मंत्रालय की इस बैठक में मौजूदा कर ढांचे में मैट को निरर्थक माना गया है.
इन अधिकारियों का कहना है कि सरकार ने पहले ही निगमित कर की दरों को कम करने का वादा किया है. यहां तक कि सरकार की ओर से कंपनियों को कंपनी टैक्स में छूट और कर अवकाश को समाप्त करने की दिशा में काम करना शुरू भी कर दिया है. यदि विदेशी संस्थानों को कुछ टैक्सों में छूट दी जा सकती है, तो घरेलू कंपनियों को भी कुछ इसी तरह का लाभ दिया जाना चाहिए.
सूत्रों का यह भी कहना है कि कॉरपोरेट कर और मैट के बीच घटता अंतर भी इस कर को खत्म करने की दिशा में सरकार के कदम की मुख्य वजह हो सकती है. मौजूदा समय में मैट की दर 18.5 फीसदी है, जबकि कॉरपोरेट कर को 35 फीसदी से घटाकर पहले ही 29 फीसदी पर लाया जा चुका है. संभावना यह भी है कि सरकार भविष्य में भी कॉरपोरेट टैक्स में कमी करेगी, क्योंकि उसने देश भर की कंपनियों से वर्ष 2019 तक कॉरपोरेट कर को 25 फीसदी तक लाने का वादा किया है.
मीडिया में खबर यह भी आ रही है कि सरकार की ओर से मैट की दर को घटाकर 7.5 फीसदी करने के प्रस्तावों पर भी विचार किया जा रहा है. पहले मैट के नियम घरेलू और विदेशी कंपनियों पर समान रूप से लागू किये गये थे, मगर मौजूदा समय में केवल घरेलू कंपनियों से ही मैट की वसूली की जाती है.
2014 में मैट के दायरे से बाहर किये गये थे विदेशी निवेशक
मैट का यह मामला सबसे पहले 2014 में प्रकाश में आया था. उस समय कर अधिकारियों ने अनेक विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) को नोटिस जारी कर भारतीय परिचालनों से पूंजीगत प्राप्ति के बदले मैट की मांग की थी. इसके बाद सरकार ने एफपीआई और भारत में कोई स्थायी प्रतिष्ठान नहीं खोलने वाली विदेशी कंपनियों को मैट के दायरे से बाहर किया था. मैट को सरकार द्वारा इसलिए लागू किया गया था, ताकि अच्छी खासी आय कमाने वाली कंपनियां कर दायरे से पूरी तरह बचकर न निकल सके. सबसे पहले इसे 1987 में लागू किया गया था और बाद में इसे खत्म कर दिया गया. हालांकि इसके प्रावधानों को 1997 में फिर से लागू किया गया. उस समय मैट की दर कुल मुनाफे की 12.5 फीसदी तय की गयी थी.
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