नयी दिल्ली : नोटबंदी के बाद उपजे नकदी संकट का असर अब देश की अर्थव्यवस्था पर भी दिखना शुरू हो गया है. रेटिंग और आर्थिक एजेंसियों की रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया जाने लगा है कि आने वाली दो तिमाहियों में नकदी की कमी के कारण भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि में गिरावट आ सकती है. वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी की ओर से गुरुवार को जारी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि नकदी की कमी के कारण देश की जीडीपी वृद्धि दर में चालू वित्त वर्ष की तीसरी और चौथी तिमाही में दो फीसदी की गिरावट दर्ज की जा सकती है. इसका कारण चलन वाली प्रभावी मुद्रा में उल्लेखनीय ष्प से कमी आना है. हालांकि, रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि नोटबंदी के दौरान भारत में पर्याप्त नोट की छपाई भी हुई है. ऐसे में वृद्धि सात फीसदी के दायरे में लौटकर आ जायेगी.
वैश्विक वित्तीय सेवा कंपनी के अनुसार, सरकार का बड़ी रकम की मुद्रा को चलन से हटाने तथा नये नोटों को चलन में लाने का वृहत अर्थव्यवस्था पर मिला-जुला प्रभाव पड़ सकता है. एचएसबीसी ने एक शोध रिपोर्ट में कहा है कि जीडीपी की नकदी लोचशीलता का उपयोग करते हुए हमारा अनुमान है कि वृद्धि 2016-17 की तीसरी और चौथी तिमाही में करीब दो फीसदी कम हो सकती है. इसमें यह माना गया है कि चलन में नयी मुद्रा की संख्या में दिसंबर की शुरुआत तक 60 फीसदी की कमी आयी है.
एचएसबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, कम-से-कम दो तिमाही में वृद्धि में कमी का मतलब है कि उत्पादन अंतर को पूरा होने में लंबा समय लगेगा और पहले से कमजोर निवेश चक्र को पटरी में आने में और समय लग सकता है. एचएसबीसी ने कहा कि दीर्घकालीन लाभ इसके आगे के सुधारों पर निर्भर करेगा. कालाधन में उल्लेखनीय रूप से कमी लाने के लिए सरकार को कालाधान छिपाने के अन्य स्थानों (रीयल एस्टेट, सोना, विदेशी मुद्रा) पर कार्रवाई करनी होगी.
डिजिटल भुगतान के संदर्भ में रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार को खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में बाधाओं को दूर करना चाहिए. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के बारे में कहा गया है कि अप्रैल में यह लागू नहीं होगा, लेकिन इस साल इसके लागू होने की संभावना है.
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