नयी दिल्ली : आर्थिक सुधारों को और गति देने पर जोर देते हुये वर्ष 2016-17 की आर्थिक समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के दौरान आर्थिक वृद्धि दर के कमजोर पडकर 6.5 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है. हालांकि, अगले वित्त वर्ष के दौरान इसके सुधर कर 6.75 से 7.5 प्रतिशत के दायरे में पहुंच जाने की उम्मीद व्यक्त की गई है.
वर्ष के दौरान सरकार का उपभोग व्यय ही जीडीपी में हुई वृद्धि के लिए मुख्य रुप से सहायक रहा है. इसमें कहा गया है कि वर्ष 2017-18 के दौरान आर्थिक वृद्धि की गति सामान्य हो जाने की उम्मीद है. इस दौरान अपेक्षित मात्रा में नये नोट चलन में आ जायेंगे और नोटबंदी के बाद जरुरी कदम भी उठाये गये हैं. ‘‘यह अनुमान लगाया गया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से तेज रफ्तार पकडकर वर्ष 2017-18 में वृद्धि दर 6.75 प्रतिशत से लेकर 7.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच जायेगी.” समीक्षा में कहा गया है कि उपभोक्ता मूलय सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति (सीपीआई) की दर लगातार तीसरे वर्ष नियंत्रण में रही है.
वर्ष 2014-15 में सीपीआई आधारित औसत महंगाई दर 5.9 प्रतिशत से घटकर 2015-16 में 4.9 प्रतिशत रह गई और अप्रैल-दिसंबर 2016 के दौरान यह 4.8 प्रतिशत दर्ज की गई. इसी प्रकार थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई दर 2014-15 के 2 प्रतिशत से घटकर शून्य से 2.5 प्रतिशत नीचे चली गई और चालू वित्त वर्ष में अप्रैल-दिसंबर 2016 के दौरान औसतन 2.9 प्रतिशत आंकी गई. समीक्षा में इस बात को रेखांकित किया गया है कि महंगाई दर में बार बार खाद्य वसतुओं के संक्षिप्त समूह में आने वाले उतार चढाव का असर रहता है. इन वस्तुओं में दाल मूल्यों का सार्वधिक योगदान खाद्य समूह की मुद्रास्फीति में देखा गया है.
इसमें कहा गया है कि चालू वित्त वर्ष के दौरान खुदरा मूल्य सूचकांक आधारित मूल मुद्रास्फीति (खाद्य वस्तुओं के समूह को छोडकर) औसतन 5 प्रतिशत के स्तर पर टिकी हुई है.
पिछले पूरे वित्त वर्ष में 1.1 प्रतिशत रहा था. समीक्षा में भारतीय रुपये के प्रदर्शन को अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले बेहतर बताया गया है. समीक्षा में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 2016-17 में 4.1 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया है जबकि पिछले वित्त वर्ष में यह 1.2 प्रतिशत रही थी. इसमें कहा गया है कि कृषि क्षेत्र में पिछले दो वर्षों के मुकाबले इस साल मानसून बेहतर रहा है. चालू फसल वर्ष के दौरान 13 जनवरी 2017 तक रबी फसलों की बुवाई का रकबा 616.2 लाख हेक्टेयर आंका गया जो कि पिछले साल इसी अवधि में रहे बुवाई रकबा के मुकाबले 5.9 प्रतिशत अधिक है. इस दौरान गेहूं फसल का बुवाई रकबा पिछले साल के मुकाबले 7.1 प्रतिशत अधिक रहा है. इसी प्रकार रबी मौसम की एक अन्य प्रमुख फसल चने की बुवाई का रकबा 13 जनवरी 2017 को पिछले साल की इसी अवधि के बुवाई रकबे की तुलना में 10.6 प्रतिशत अधिक रहा है.
दूसरी तिमाही में कार्पोरेट क्षेत्र के शुद्ध लाभ में 16 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि हुई जबकि वर्ष की पहली तिमाही में उसके लाभ में 11.2 प्रतिशत की वृद्धि आंकी गई थी. सेवा क्षेत्र के बारे में समीक्षा में कहा गया है कि 2016-17 के दौरान इस क्षेत्र में 8.9 प्रतिशत वृद्धि की उम्मीद है. यह आंकडा 2015-16 में दर्ज की गई वृद्धि के लगभग बराबर ही है. सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को अमल में लाने से कर्मचारियों को काफी राशि प्राप्त हुई है, इसे देखते हुये सेवा क्षेत्र में तीव्र वृद्धि की उम्मीद है. समीक्षा में सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण में आ रही समस्याओं को लेकर भी उल्लेख किया गया है.
यहां तक कि ऐसे उपक्रमों का भी निजीकरण नहीं हो पाया जिनमें अर्थशास्त्रियों ने जोरदार पहल करते हुये कहा है कि इन उपक्रमों को निजी हाथों में सौंप देना चाहिए. इस संबंध में समीक्षा में कहा गया है कि नागरिक उड्डयन, बैंकिंग और उर्वरक क्षेत्र में निजीकरण को आगे बढाये जाने की आवश्यकता है. समीक्षा के मुताबिक राज्य की स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी जरुरी सेवाओं को उपलब्ध कराने की क्षमता काफी कमजोर है. इसमें भ्रष्टाचार, लालफीताशाही का बोलबाला भी है. राज्यों के स्तर पर सेवाओं को पहुंचाने के मामले में प्रतिस्पर्धा के बजाय लोकलुभावन बातों में प्रतिस्पर्धा अधिक दिखती है.
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