स्मार्टसिटी के गरीबों का मकान किराया देगी मोदी सरकार, योजना पर खर्च करेगी 2700 करोड़

नयी दिल्ली : स्मार्टसिटी में अपने मकान में रहने के लिए गरीबों का सपना अब जल्द ही पूरा होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार देश की सौ स्मार्टसिटी में रहने वाले गरीबों के मकान का किराया भरने की योजना लेकर आ रही है. बताया यह जा रहा है कि देश के सौ स्मार्टसिटी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 9, 2017 11:56 AM

नयी दिल्ली : स्मार्टसिटी में अपने मकान में रहने के लिए गरीबों का सपना अब जल्द ही पूरा होने वाला है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार देश की सौ स्मार्टसिटी में रहने वाले गरीबों के मकान का किराया भरने की योजना लेकर आ रही है. बताया यह जा रहा है कि देश के सौ स्मार्टसिटी के लिए जल्द ही 2700 करोड़ रुपये की नयी कल्याणकारी योजना की शुरुआत करने जा रही है. इस योजना के अनुसार, सरकार की ओर से शहरी गरीबों को मकान का किराया चुकाने के लिए पर्चियां दी जायेंगी. बताया यह भी जा रहा है कि सरकार गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए पर्ची से किराये का भुगतान की खातिर नयी किराया नीति भी ला सकती है.

मीडिया में आ रही खबरों के अनुसार, स्मार्ट सिटीज में गरीबों का किराया देने वाली नीति पर सरकार की ओर करीब तीन साल पहले से काम किया है, लेकिन इसके पहले भाग को वर्ष 2017-18 में लागू किया जा सकता है. स्मार्टसिटी में योजना को लागू करने पर हर साल 2,713 करोड़ रुपये की लागत आने की उम्मीद है. इस योजना से शहरों में मेहनत-मजदूरी करने वाले गरीबों को किराये के मकान में रहने के लिए सहूलियत मिलेगी. किराये की पर्ची को शहरी निकायों की मदद से गरीबों में बांटा जायेगा. किरायेदार इन पर्चियों को मकान मालिक को देगा, जो उसे किसी नागरिक सुविधा केंद्र से अपने खाते में डाल सकेगा. अगर किराया पर्ची के आधार पर मिलने वाली राशि से अधिक होता है, तो किरायेदार को उसका भुगतान अपनी जेब से करना होगा. किराये की पर्ची का मूल्य शहर और कमरे के साइज के हिसाब से स्थानीय निकाय तय करेगा.

सरकार इस योजना के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की भी संभावना तलाश रही है. वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, शहरों में करीब 27.5 फीसदी आबादी किराये के घरों में रहती है. हालांकि, नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) के आंकड़ों के मुताबिक, 2009 में शहरों में 35 फीसदी लोग किराये के घरों में रहते हैं. इसके अलावा, देश में ऐसे गरीबों का यह औसत करीब-करीब वर्ष 1991 के बाद से ही बना हुआ है.

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