नयी दिल्ली : भारतीय रिजर्व बैंक ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकाें के ऋण न चुकानेवालों (डिफॉल्टराें) की सूची को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत सार्वजनिक करने से इनकार किया है. हालांकि, उच्चतम न्यायालय ने 2015 में इस सूचना को सार्वजनिक करने का आदेश दिया था. यह मामला सूचना के अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत सुभाष अग्रवाल द्वारा ऋण न चुकानेवालों की सूची मांगने से संबंधित है. उन्होंने एक करोड़ रुपये या अधिक के कर्जों की नियमित अदायगी न करनेवालों की जानकारी मांगी है. सरकार के अनुसार, 31 दिसंबर, 2016 तक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकाें की गैर निष्पादित आस्तियां (एनपीए) 6.06 लाख करोड़ रुपये थीं.
रिजर्व बैंक ने सरकार के आर्थिक हित, वाणिज्यिक गोपनीयता और सूचना को अमानत के रूप में रखने के अपने कर्तव्यों का उल्लेख करते हुए इस सूची को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है. साथ ही केंद्रीय बैंक ने आरबीआई कानून, 1934 की धारा 45-ई के प्रावधानों का हवाला दिया है. यह प्रावधान ऋण के बारे में सूचना देने से रोकता है. उच्चतम न्यायालय ने 16 दिसंबर, 2015 को एक अन्य आरटीआई आवेदक के मामले में स्पष्ट रूप से इन दलीलों को खारिज करते हुए डिफॉल्टराें की सूची का खुलासा करने के केंद्रीय सूचना आयुक्त (सीआईसी) के आदेश को उचित ठहराया था. इसके बावजूद केंद्रीय बैंक ने इन्हीं दलीलाें का हवाला देते हुए अग्रवाल को सूचना देने से इनकार कर दिया. इसके बाद अग्रवाल इस मामले को सीआईसी में ले गये.
सुनवाई के दौरान रिजर्व बैंक ने कहा कि उच्चतम न्यायालय एक मामले की सुनवाई कर रहा है, जिसमें सीलबंद लिफाफे में रिपोर्ट मांगी गयी है और ऐसे में कोई फैसला नहीं लिया जाना चाहिए. दो सदस्यीय सीआईसी पीठ ने रिजर्व बैंक को राहत देते लंबित मामले पर आदेश आने तक कोई फैसला नहीं देने पर सहमति जतायी. इस मामले में 500 करोड़ रुपये के चूककर्ताओं का खुलासा करने के बारे में शीर्ष अदालत को फैसला करना है.
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