Aadhaar Card: भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) की ओर से जारी किया जाने वाला आधार कार्ड आज की तारीख में अहम दस्तावेजों में से एक है. इसके बिना न तो आप किसी स्कूल-कॉलेज में कोई विद्यार्थी दाखिला ले सकता और न ही परीक्षा के लिए उसका रजिस्ट्रेशन हो सकता है. सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने, बैंक में खाता खुलवाने और यहां तक कि मोबाइल सिम खरीदने के लिए भी आधार कार्ड की मांग की जाती है. इसमें दर्ज जन्मतिथि को ही असली डेट ऑफ बर्थ मान लिया जाता है. लेकिन, अब यह डेट ऑफ बर्थ का प्रूफ नहीं रहा. सुप्रीम कोर्ट ने आधार कार्ड में दर्ज जन्मतिथि को डेट ऑफ बर्थ प्रूफ के तौर पर मानने से इनकार कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने एक दूसरे दस्तावेज पर अपनी मुहर लगाई है, जो हर किसी के पास उपलब्ध होता है.
यूआईडीएआई खुद आधार को नहीं मानता जन्म प्रमाणपत्र
समाचार एजेंसी पीटीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार 24 अक्टूबर 2025 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया, जिसमें मुआवजा देने के लिए रोड एक्सीडेंट में जान गंवाने वाले व्यक्ति की उम्र निर्धारित करने के लिए आधार कार्ड को स्वीकार कर लिया गया था. जस्टिस संजय करोल और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि हमने पाया कि भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई) ने अपने परिपत्र संख्या 8/2023 के जरिए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से 20 दिसंबर, 2018 को जारी एक ऑफिस मेमोरेंडम के जवाब में कहा है कि एक आधार कार्ड पहचान स्थापित करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह जन्मतिथि का प्रमाण नहीं है.
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सुप्रीम कोर्ट ने एसएलसी को माना जन्म का असली प्रमाणपत्र
बेंच ने आगे कहा कि रोड एक्सीडेंट में जान गंवाने वाले व्यक्ति की उम्र किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 94 के तहत विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र (एसएलसी) में उल्लिखित जन्मतिथि से निर्धारित की जानी चाहिए. सर्वोच्च अदालत ने दावेदार-अपीलकर्ताओं के तर्क को स्वीकार कर लिया और मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (एमएसीटी) के फैसले को बरकरार रखा. एमएसीटी ने मृतक की उम्र की गणना उसके विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र के आधार पर की थी. सर्वोच्च अदालत 2015 में एक सड़क दुर्घटना में मारे गए एक व्यक्ति के परिजनों की ओर दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी.
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रोहतक के एमएसीटी ने भी एसएलसी को ही बताया था जायज
एमएसीटी रोहतक ने 19.35 लाख रुपये के मुआवजे का आदेश दिया था जिसे हाईकोर्ट ने यह देखने के बाद घटाकर 9.22 लाख रुपये कर दिया कि एमएसीटी ने मुआवजे का निर्धारण करते समय उम्र गुणक को गलत तरीके से लागू किया था. हाईकोर्ट ने मृतक के आधार कार्ड पर भरोसा करते हुए उसकी उम्र 47 वर्ष आंकी थी. परिवार ने दलील दी कि हाईकोर्ट ने आधार कार्ड के आधार पर मृतक की उम्र निर्धारित करने में गलती की है, क्योंकि यदि उसके विद्यालय परित्याग प्रमाणपत्र के अनुसार उसकी उम्र की गणना की जाती है, तो मृत्यु के समय उसकी उम्र 45 वर्ष थी.
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