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SIP से कर रहे हों मोटी कमाई तो टैक्स देने के लिए भी रहें तैयार, छूट पाने के ये हैं जरूरी नियम

SIP: एसआईपी से होने वाले लाभ पर टैक्स म्यूचुअल फंड के प्रकार और निवेश अवधि के आधार पर अलग-अलग होता है. एसआईपी के मामले में होल्डिंग की अवधि की गणना एसआईपी की प्रत्येक किस्त से की जाती है.

By KumarVishwat Sen | September 28, 2024 12:08 PM
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SIP: लॉन्ग टर्म में मोटी कमाई करने के लिए सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (SIP) सबसे पॉपुलर तरीका है. देश के ज्यादातर युवा एसआईपी के जरिए म्यूचुअल फंड में पैसा लगाकर भविष्य के लिए मोटी रकम जुटाने में लगे हुए हैं. एसआईपी से मोटी कमाई करना बुरी बात नहीं है. हर किसी को करना चाहिए. एसआईपी के व्यवस्थित निवेश से कई तरह के फायदे होते हैं, लेकिन इसमें पैसा लगाने से पहले यह जान लेना बेहद महत्वपूर्ण है कि एसआईपी से होने वाली मोटी कमाई टैक्स फ्री है या आमदनी पर टैक्स देना होगा? एसआईपी के उन जरूरी नियमों को जान लेना जरूरी है कि आयकर के किस नियम के तहत टैक्स देना पड़ेगा और किस नियम के तहत आमदनी पर छूट मिलेगी. इससे आपको प्लान बनाने में आसानी होगी. आइए, इसके बारे में जानते हैं.

क्या एसआईपी टैक्स फ्री है?

दरअसल, एसआईपी पर टैक्स म्यूचुअल फंड स्कीम के प्रकार और होल्डिंग अवधि जैसे कारकों पर निर्भर करता है. एसआईपी से होने वाला पूंजीगत लाभ या कैपिटल गेन टैक्स के अधीन हो सकता है. इसमें भी शॉर्ट टर्म और लॉन्ग टर्म लाभ के बीच अंतर को समझना जरूरी है.

एसआईपी क्या है?

व्यवस्थित निवेश योजना को संक्षेप में एसआईपी (SIP) कहते हैं. एसआईपी म्यूचुअल फंड कंपनियों द्वारा पेश किया जाने वाला एक लोकप्रिय निवेश विकल्प है. वे निवेशकों को नियमित रूप से म्यूचुअल फंड स्कीम में एक निश्चित राशि निवेश करने में सक्षम बनाते हैं. इससे रुपया-लागत औसत का लाभ मिलता है और बाजार में उतार-चढ़ाव के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है.

एसआईपी कैसे काम करता है?

एसआईपी निवेशकों को नियमित अंतराल पर एक निश्चित संख्या में म्यूचुअल फंड यूनिट खरीदने की अनुमति देता है. पूंजीगत लाभ की गणना और टैक्स कैसे लगाया जाता है, इसे समझने के लिए इसकी प्रक्रिया को समझना महत्वपूर्ण है.

एसआईपी से लाभ कितना टैक्स लगता है?

एसआईपी से होने वाले लाभ पर टैक्स म्यूचुअल फंड के प्रकार और निवेश अवधि के आधार पर अलग-अलग होता है. एसआईपी के मामले में होल्डिंग की अवधि की गणना एसआईपी की प्रत्येक किस्त से की जाती है. मान लें कि अगर एसआईपी के माध्यम से इक्विटी फंड में निवेश एसआईपी रजिस्ट्रेशन की तारीख से 13 महीने बाद भुनाया जाता है, तो एक साल से अधिक समय तक रखी गई प्रारंभिक एसआईपी यूनिट्स को दीर्घकालिक माना जाता है. इसमें 1 लाख रुपये तक के दीर्घकालिक लाभ टैक्स फ्री है. बाकी यूनिट्स को अल्पकालिक माना जाता है, क्योंकि यूनिट्स को भुनाने की तारीख पर एक साल से कम समय के लिए रखा गया था. एक साल के भीतर भुनाए गए एसआईपी से अल्पकालिक लाभ पर 15% फ्लैट रेट से टैक्स लगाया जाता है. इसके अलावा, अतिरिक्त उपकर और अधिभार भी लगाया जाता है.

इंडेक्सेशन क्या है?

इंडेक्सेशन से टैक्स देनदारी काफी कम हो जाती है. कई बार तो टैक्स पूरी तरह से खत्म हो जाता है. निवेश पर लगी रकम को महंगाई के अनुपात में बढ़ा लिया जाता है. निवेश की रकम ज्यादा दिखाने से मुनाफा कम आता है और फिर टैक्स की देनदारी भी कम हो जाती है.

डेट फंड में निवेश पर टैक्सेशन का कैलकुलेशन

एसआईपी के माध्यम से डेट फंड में किया निवेश टैक्स निहितार्थों से जुड़ा है. इसमें, यदि कोई निवेशक एसआईपी के माध्यम से डेट म्यूचुअल फंड में निवेश का ऑप्शन चुनता है, तो निवेश की होल्डिंग अवधि के आधार पर अलग-अलग प्रकार से टैक्स का भुगतान करना होता है. अगर एसआईपी के माध्यम से हासिल किए गए डेट म्यूचुअल फंड यूनिट्स को 3 साल से कम समय के लिए रखा जाता है, तो रिडेम्प्शन पर प्राप्त किसी भी लाभ को अल्पकालिक पूंजीगत लाभ माना जाता है. इन लाभों को निवेशक की कुल आय में जोड़ा जाता है और उनके लागू आयकर स्लैब दरों के अनुसार टैक्स लगाया जाता है. हालांकि, यदि एसआईपी के माध्यम से प्राप्त यूनिट्स को 3 साल से अधिक समय तक रखा जाता है, तो लाभ को दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है. डेट फंड के लिए इंडेक्सेशन लाभ के साथ 20% की एक समान दर पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर टैक्स लगाया जाता है. इंडेक्सेशन निवेशकों को महंगाई के लिए अपने निवेश की खरीद मूल्य को एडजस्ट करने की अनुमति देता है, जिससे टैक्सेबल लाभ कम हो जाता है और इस तरह कर देयता कम हो जाती है.

लाभांश पर टैक्स

एसआईपी के माध्यम से हासिल किए गए लाभांश की रकम टैक्स फ्री होती है. इसका कारण यह है कि म्यूचुअल फंड हाउस पहले ही डीडीटी (डिविडेंड डिस्ट्रीब्यूशन टैक्स) भर देते हैं. इसलिए निवेशक को लाभांश पर अलग से टैक्स देने की जरूरत नहीं पड़ती.

अल्पकालिक पूंजीगत लाभ टैक्स

अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर टैक्स की गणना भी दो अलग-अलग श्रेणी में की जाती है. इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम पर 15% टैक्स लगता है और दूसरी श्रेणी के फंड्स से मुनाफे पर टैक्स का भुगतान करना पड़ता है. इन फंड्स से होने वाला लाभ निवेशक की नियमित कमाई मानी जाती है. ऐसे में इन पर टैक्स निवेशक की टैक्स स्लैब के हिसाब से लगाया जाता है.

दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ टैक्स

इक्विटी ऑरिएंटेड स्कीम पर 1 लाख रुपये तक का दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ टैक्स फ्री होता है. 1 लाख के बाद की रकम पर 10% टैक्स का भुगतान करना पड़ता है. इस पर टैक्स में छूट तब मिलती है, जब सिक्योरिटीज ट्रांजैक्शन टैक्स पहले से भरा गया हो. इक्विटी ऑरिएंटेड फंड्स के लिए 31 जनवरी, 2018 से नेट एसेट वैल्यू का मूल्यांकन किया जाता है. इक्विटी स्कीम के दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर इंडेक्सेशन बेनेफिट नहीं मिलता. दूसरी श्रेणी के फंड्स पर 20% टैक्स देना पड़ता है.

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पूंजीगत लाभ पर 80सी के तहत छूट

एसआईपी के माध्यम से म्यूचुअल फंड में निवेश से मिलने वाले पूंजीगत लाभ पर आयकर की धारा 80सी, 80सीसीडी, 80टीटीबी और 87ए के तहत निवेशकों को टैक्स से छूट का फायदा मिलता है. पूंजीगत लाभ के मुकाबले इन आयकर की इन धाराओं में टैक्स छूट नहीं ली जा सकती. सिर्फ दूसरी श्रेणी के फंड्स के अल्पकालिक पूंजीगत लाभ के आधार पर टैक्स से छूट ले सकते हैं. आयकर की धारा 87ए के तहत निवेशकों को करीब 12,500 रुपये की छूट मिलेगी. प्रवासी भारतीयों को दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ और अल्पकालिक पूंजीगत लाभ पर पूरा टैक्स देना पड़ता है.

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