कोरोना महामारी ने दुनियाभर के सभी लोगों को सेहत का महत्व और भी बेहतर ढंग से समझा दिया है. कोरोना संक्रमण के दौरान कई लोगों का खर्च लाखों में हुआ है. बीमारियां तकलीफ के साथ- साथ बड़ा खर्च लेकर आती हैं ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंश बड़ी भूमिका निभाता है. ऐसे में हेल्थ इंश्योरेंश से जुड़े विभिन्न पहुलों को जानना ज्यादा जरूरी हो गया है. इस संबंध में पूरी जानकारी दे रहे हैं प्रवीण मुरारका (देशक, पूनम सिक्योरिटीज ) बीमारियों के इलाज पर बढ़ते खर्च को देखते हुए यह बहुत जरूरी हो गया है कि पूरे परिवार की सुरक्षा के लिए एक हेल्थ इंश्योरेश पॉलिसी लेना चाहिए. इसके साथ ही कई सवाल मन में उठते हैं.
किस कंपनी की कौन सी पॉलिसी लेनी चाहिए, कितने कवरेज वाली लेनी चाहिए, प्रीमियम कितना देना पड़ेगा, हम अभी स्वस्थ हैं, तो क्यों हेल्थ पॉलिसी ले? यूं ही प्रीमियम का भुगतान क्यों करें? लेकिन इस बात पर गौर नहीं करते कि बीमारी किसी को बोलकर नहीं आती. जैसे ही आप अस्वस्थ हो जाते हैं, थाइरॉयड, बीपी, सुगर या कोई और बीमारी हो जाती है, आपको अधिक प्रीमियम देना पड़ता है और हॉस्पिटाइजेशन का कवरेज भी तुरंत नहीं मिलता. स्वस्थ लोगों को ही कंपनी हेल्थ इंश्योरेंश देना चाहती है. प्रीमियम भी कम देना पड़ता है. बता दें कि करीब 18 से 20 तरह की बीमारियों के लिए कंपनियां दो से चार साल का वेटिंग पीरियड रखती है.
लेकिन इतना निश्चित होता है कि इस वेटिंग पीरियड के बाद इन बीमारियों का भी कवरेज मिल जाता है. लेकिन क्रिटिकल बीमारियों का तो कवरेज मिलता ही नहीं. जैसे हार्ट से जुड़ी बीमारी, किडनी से जुड़ी समस्या, ब्रेन हैम्रेज या बाइपास सर्जरी आदि. इसलिए जब आप स्वस्थ हैं, तो उसी समय से हेल्थ पॉलिसी अपने और पूरे परिवार के लिए लें.
जब आप पॉलिसी लेते हैं तो कंपनी द्वारा पॉलिसी इश्यू करने के साथ ही एक्सीडेंटल इंश्योरेंश कवरेज शुरू हो जाता है. सामान्य हॉस्पिटलाइजेशन का कवरेज 30 दिन के बाद शुरू होता है. लेकिन 18-20 ऐसी बीमारियां हैं जिसका कवरेज दो से चार साल के बाद शुरू होता है जैसे, घुटने का ऑपरेशन, हिप रिप्लेसमेंट, गॉल ब्लाडर या किडनी में स्टोन, टॉन्सिलाइटिस, हर्निया, पाइल्स, महिलाओं में यूटरस की समस्या आदि. ऐसी बीमारियों के लिए कंपनियों के अलग-अलग वेटिंग पीरियड है. आनेवाले समय में क्रिटिकल इनलेस बहुत बढ़ जायेगी. इसलिए जब स्वस्थ हैं तभी हेल्थ इंश्योरेंश पॉलिसी ले लेना चाहिए.
पॉलिसी लेते समय अपने प्री-एक्जिस्टिंग डिजीज के बारे में जरूर बतायें. बाद में कंपनी की जांच में अगर यह बात सामने आती है कि आप पहले से बीमार थे और आपने पॉलिसी में उसकी जानकारी नहीं दी है, तो आपका क्लेम रद्द हो सकता है.पॉलिसी में दिये जा रहे नो क्लेम बोनस, डे केयर ट्रीटमेंट, ऑटोरिस्टोरेशन, एयर एम्बूलेंस आदि चीजों के बारे में भी पूरी जानकारी लेनी चाहिए.
अधिक प्रीमियम से धबरायें नहीं. सोचिए कि अगर आपको अभी ही अस्पताल का चक्कर लग जाये, तो कितना भुगतान करना होगा. इसलिए पहला प्रीमियम देने के बाद अगले साल के लिए एक मासिक जमा योजना शुरू कर लें. अगले साल प्रीमियम भुगतान करने में दिक्कत नहीं होगी.
हेल्थ पॉलिसी लेते समय यह जरूर देख लें कि उस कंपनी के नेटवर्क हॉस्पिटल की संख्या कितनी है और यह कितने शहरों में अपनी हॉस्पिटलाइजेशन की सुविधा दे रहा है.
ऑनलाइन हेल्थ पॉलिसी और ऑफलाइन की पॉलिसी में अब कोई अंतर नहीं रह गया है. लेकिन बात जब क्लेम करने की आती है तो ऑफलाइन से ली गयी पॉलिसी में आपको मदद मिलने की गुंजाइश रहती है, जबकि ऑनलाइन के मामले में परेशानी आ सकती है.
अगर पॉलिसी चुनने में दिक्कत हो रही हो, तो किसी ऐसे सलाहकार की मदद लें, जो कम से कम दो से अधिक कंपनियों का हेल्थ इंश्योरेंश बेच रहा हो. वह सही पॉलिसी चुनने में मदद कर सकता है.
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आज के समय में कई लोगों को नियोक्ता की तरफ से पूरे परिवार के लिए हेल्थ पॉलिसी दी जाती है. यह पॉलिसी नौकरी की अवधि तक ही होती है. रिटायर होने पर यह समाप्त हो जाता है. और उस समय अधिक उम्र में कोई न कोई बीमारी आ ही जाती है. ऐसे में अधिक उम्र में बीमारी के साथ हेल्थ पॉलिसी लेना बहुत मुश्किल हो जायेगा. दूसरी बात कि अगर इलाज के दौरान कॉरपोरेट पॉलिसी का कवरेज खत्म हो जाये, तो आपके द्वारा ली गयी व्यक्तिगत पॉलिसी का कवरेज काम आ जायेगी. इसके अलावा लंबे समय तक पॉलिसी चलाने से कंपनियां कई तरह
अधिकतम कवरेज लें
महंगी होती चिकित्सा सेवाओं और गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के बढ़ते मामलों को देखते हुए हमेशा यह कोशिश करनी चाहिए कि जितना ज्यादा हो सके उतने अधिक कवरेज के साथ हेल्थ पॉलिसी लेनी चाहिए. पहले लोग 2-3 लाख का कवरेज को ही अधिक मानते थे. लेकिन अब यह राशि भी कम पड़ने लगी है.
प्रधानमंत्री मोदी ने भी सभी तबकों के लिए न्यूनतम पांच लाख रुपये की हेल्थ पॉलिसी शुरू की है. इसका मतलब है कि आज के दौर में न्यूनतम पांच लाख की पॉलिसी जरूर होनी चाहिए. वहीं, आनेवाले दिनों में बढ़ते मेडिकल खर्चों को देखते हुए कम से कम 10 लाख रुपये की पॉलिसी जरूर लेनी चाहिए. दूसरी बात, कुछ लोगों को लगता है कि अभी तीन लाख का पॉलिसी ले लेते हैं और फिर 2-3 साल बाद कवरेज बढ़ा लेंगे. लेकिन अगर इस दौरान आपको शुगर या बीपी हो जाता है, जो बहुत ही कॉमन है, तो कंपनियां कवरेज बढ़ाने का मौका नहीं देती.
अब बहुत सारी कंपनियां ओवरसीज कवरेज भी देने लगी है. तो आप योजनाबद्ध तरीके से इलाज के लिए देश से बाहर जा सकते हैं जिसका कवरेज आपको आपकी पॉलिसी से मिल जायेगी. वैसे तो हर कंपनी में यह फीचर नहीं है.
हेल्थ और लाइफ इंश्योरेंस में ग्रेस पीरियड होता है. पॉलिसी समाप्त होने के बाद एक निश्चित अवधि में उसका रिन्यूअल करने का अवसर कंपनी देती है. इस अवधि को ग्रेस पीरियड कहते हैं. लाइफ इंश्योरेंश में तो ग्रेस पीरियड में हुई दुर्घटना का कवरेज मिल जाता है, लेकिन हेल्थ इंश्योरेंश में इस दौरान बीमार पड़ने पर कवरेज नहीं मिलता. इसलिए पॉलिसी समाप्त होने से एक-दो महीने पहले ही उसका रिन्यूअल करा लेना चाहिए.
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पॉलिसी शुरू होने के कुछ वर्षों तक किसी तरह का कोई क्लेम नहीं करते हैं तो कंपनी आपको नो क्लेम बोनस देती है और आपका कवरेज बढ़ा देती है. लगभग सभी कंपनियां पांच प्रतिशत से लेकर 100 प्रतिशत तक नो क्लेम बोनस दे रही है. कुछ कंपनियां क्लेम लेने के बाद भी बोनस कम नहीं कर रहीं.
कई कंपनियां आयुष चिकित्सा यानी होमियोपैथ, आयुर्वेद, यूनानी चिकित्सा आदि के का भी कवरेज मिल रहा है.
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