Budget 2025: आर्थिक असमानता बढ़ी, कंपनियों के मुनाफे में उछाल, कर्मचारियों की सैलरी में ठहराव
Budget 2025 आर्थिक असमानता को उजागर करता है, जहां कंपनियों के मुनाफे में वृद्धि हो रही है, लेकिन कर्मचारियों के वेतन स्थिर हैं. आय और महंगाई के बीच बढ़ता अंतर चिंता का विषय है.
Budget 2025: भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 ने देश की आर्थिक सेहत को लेकर कई महत्वपूर्ण आंकड़े उजागर किए हैं. यह सर्वेक्षण रोजगार, वेतन वृद्धि, कंपनियों के मुनाफे और कृषि क्षेत्र में श्रमिकों की बढ़ती भागीदारी जैसे विषयों पर ध्यान केंद्रित करता है. सर्वेक्षण में सामने आए आंकड़े बताते हैं कि कंपनियों के मुनाफे में भारी वृद्धि हुई है, लेकिन कर्मचारियों के वेतन में अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं हुई है.
आइए इन आंकड़ों की गहराई से पड़ताल करें और समझें कि भारतीय अर्थव्यवस्था किस दिशा में आगे बढ़ रही है.
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वेतन वृद्धि बनाम महंगाई दर
पिछले पांच वर्षों में संगठित क्षेत्र के वेतन में औसतन 5% CAGR (चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर) की वृद्धि दर्ज की गई है. दूसरी ओर, असंगठित क्षेत्र के दिहाड़ी मजदूरों की मजदूरी में 9% सालाना वृद्धि हुई है. इसी अवधि में महंगाई दर औसतन 5-6% के आसपास रही है. इसका सीधा अर्थ यह निकलता है कि संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों की वास्तविक वेतन वृद्धि नगण्य रही है. यदि वेतन वृद्धि महंगाई दर के बराबर या उससे कम रहती है, तो इसका अर्थ यह होता है कि कर्मचारियों की क्रय शक्ति (purchasing power) नहीं बढ़ी है.
वर्ष | संगठित क्षेत्र का मासिक वेतन (₹) | दिहाड़ी मजदूरी (₹) |
2019 | 25,000 | 100 |
2024 | 31,907 | 153 |
ऊपर दिए गए आंकड़े बताते हैं कि संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों का औसत मासिक वेतन ₹25,000 से बढ़कर ₹31,907 हुआ है, जो सिर्फ 5% सालाना वृद्धि दर्शाता है. इसके विपरीत, दिहाड़ी मजदूरी ₹100 से बढ़कर ₹153 हो गई, जिसका अर्थ है कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की आय वृद्धि दर संगठित क्षेत्र की तुलना में अधिक रही.
कंपनियों के मुनाफे और वेतन व्यय में असंतुलन
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, पिछले वित्तीय वर्ष में भारतीय कंपनियों के मुनाफे में 22.3% की वृद्धि हुई, जबकि रोजगार में केवल 1.5% की वृद्धि दर्ज की गई. यह आंकड़ा यह दिखाता है कि कंपनियों ने अधिक मुनाफा कमाया, लेकिन कर्मचारियों के वेतन पर खर्च करने से बचती रहीं.
वेतन व्यय में गिरावट
वर्ष | कंपनियों का प्रॉफिट ग्रोथ (%) | रोजगार वृद्धि (%) | वेतन खर्च में वृद्धि (%) |
2022 | 17% | 2.0% | 17% |
2023 | 22.3% | 1.5% | 13% |
ऊपर दी गई तालिका से स्पष्ट है कि 2022 में कंपनियों ने कर्मचारियों के वेतन पर 17% अधिक खर्च किया था, लेकिन 2023 में यह आंकड़ा घटकर 13% रह गया. इसका मतलब है कि कंपनियां अपने मुनाफे का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के साथ साझा करने के बजाय, कॉस्ट-कटिंग की रणनीति अपना रही हैं.
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क्या कहता है आर्थिक सर्वेक्षण?
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, कंपनियां लागत में कटौती (Cost Cutting) कर रही हैं, जिससे वेतन वृद्धि सीमित हो गई है. कंपनियों का मुख्य ध्यान अपने मुनाफे को अधिकतम करने पर है, जबकि कर्मचारियों की आय को बढ़ाने की प्राथमिकता कम हो गई है.
कृषि क्षेत्र में बढ़ती श्रमिक भागीदारी
आर्थिक विकास का सामान्य नियम यह कहता है कि जब कोई देश आर्थिक रूप से विकसित होता है, तो श्रम शक्ति (workforce) कृषि क्षेत्र से औद्योगिक (manufacturing) और सेवा (services) क्षेत्रों की ओर स्थानांतरित होती है. लेकिन भारत में इसके विपरीत हो रहा है.
आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार:
- 2017-18 में 100 में से 44 लोग कृषि में लगे थे.
- अब यह संख्या बढ़कर 46 हो गई है.
इसका मतलब यह है कि औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में रोजगार के अवसरों की वृद्धि धीमी है, जिसके कारण अधिक लोग फिर से कृषि क्षेत्र की ओर रुख कर रहे हैं.
मुख्य कारण:
- मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में रोजगार की कमी: इन क्षेत्रों में नौकरियों की वृद्धि की रफ्तार धीमी है, जिससे लोग कृषि पर निर्भर हो रहे हैं.
- कोविड-19 का प्रभाव: महामारी के बाद कई लोग शहरों से गांव लौट गए, और कृषि उनकी प्राथमिक आजीविका बन गई.
- महंगे कौशल विकास कार्यक्रम: कई लोगों के पास नई नौकरियों के लिए आवश्यक स्किल्स (skills) नहीं हैं, जिससे वे पारंपरिक कृषि कार्य में ही लगे हुए हैं.
आगे का रास्ता क्या है?
(A) श्रमिकों की आय बढ़ाने के लिए कदम:
- मिनिमम वेतन वृद्धि: सरकार को न्यूनतम वेतन (Minimum Wage) में पर्याप्त वृद्धि करनी होगी ताकि श्रमिकों की क्रय शक्ति बढ़े.
- ईपीएफ और पेंशन योजनाओं में सुधार: कर्मचारियों के दीर्घकालिक आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए नीतियां बनाई जानी चाहिए.
- संगठित और असंगठित क्षेत्र में संतुलन: असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को संगठित क्षेत्र की सुविधाएं देने पर ध्यान देना होगा.
(B) कंपनियों को अधिक रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहित करना:
- मध्यम और लघु उद्योगों को सब्सिडी: MSME सेक्टर को बढ़ावा देकर अधिक नौकरियां पैदा की जा सकती हैं.
- कर छूट और इंसेंटिव: कंपनियों को वेतन वृद्धि और रोजगार सृजन के लिए प्रोत्साहन दिए जाने चाहिए.
- स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम: नए कौशल कार्यक्रमों में निवेश किया जाए ताकि लोग गैर-कृषि क्षेत्रों में काम करने के लिए तैयार हो सकें.
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