सरकारी घाटा डाउन, फायदे में जनता! जानें फिस्कल डेफिसिट कम करने से आपकी जेब पर क्या असर पड़ेगा?

Budget 2025: मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेश कर दिया. सरकार ने अपने राजकोषीय घाटे (Fiscal Deficit) को घटाने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या यह आपके लिए फायदेमंद है? 

By Anant Narayan Shukla | February 1, 2025 5:03 PM

Budget 2025: मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का बहुप्रतीक्षित पहला बजट अपने नियत समय पर ही आया. तमाम आशाओं और आकांक्षाओं को समेटे भारतीय जनता का अगले एक साल का आर्थिक भविष्य तय हो गया है. निर्मला सीतारमण ने कुल 8वीं बार बजट पेश किया. भारतीय सरकार ने इस बार चार बिंदुओं को प्रमुखता दी है. सरकार ने इस बार अपने विकास के लिए ‘ज्ञान’ को फोकस में रखा है. इस GYAN में मोदी सरकार की प्राथमिकता तय हुई है. गरीब, युवा, अन्नदाता और नारी यही है ज्ञान की परिभाषा. गरीब को भोजन, युवा को रोजगार, किसान को उचित आय और नारी को स्वरोजगार से जोड़ने के लिए बजट में उचित व्यवस्था की गई है. लेकिन सरकार ने अपने राजकोषीय घाटे को घटाने का लक्ष्य तय किया है. ऐसे में आइए जानते हैं कि क्या यह आपके लिए फायदेमंद है? 

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2025-26 के लिए राजकोषीय घाटे का लक्ष्य सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 4.4% निर्धारित किया है, जो 2024-25 के 4.8% से कम है. कोरोना महामारी के कारण व्यय और खाद्य सब्सिडी से संबंधित खातों की सफाई के कारण 2020-21 में 9.16% के उच्च स्तर पर पहुंचने के बाद, जीडीपी के प्रतिशत के रूप में राजकोषीय घाटे में लगातार गिरावट आई है. हालांकि, मुख्य रूप से व्यय में कटौती करके कम राजकोषीय घाटा हासिल किया गया है. 

पहले हम सरकार के कुछ आंकड़ों पर गौर कर लें तो इसे समझने में आसानी होगी. 

भारत सरकार ने 2025-26 के केंद्रीय बजट में कुल सरकारी व्यय ₹50.65 लाख करोड़ निर्धारित किया है. यह पिछले वित्तीय वर्ष 2024-25 के संशोधित अनुमान ₹47.16 लाख करोड़ की तुलना में वृद्धि को दर्शाता है. 

सरकार की अनुमानित आय

  • सकल कर राजस्व: ₹42.70 लाख करोड़
  • राज्यों को करों में हिस्सेदारी देने के बाद केंद्र की शुद्ध कर प्राप्तियां: ₹28.37 लाख करोड़
  • गैर-कर राजस्व: ₹5.83 लाख करोड़
  • उधारी समेत पूंजीगत प्राप्तियां: ₹16.45 लाख करोड़

पूंजीगत व्यय

FY26 के लिए पूंजीगत व्यय का बजट ₹11.21 ट्रिलियन रखा गया है.

  • पिछले बजट (FY25) में शुरुआती आवंटन 11.1 लाख करोड़ रुपये था, लेकिन लोकसभा चुनावों के कारण खर्च में देरी हुई, जिससे संशोधित अनुमान ₹10.18 ट्रिलियन पर आ गया.
  • प्रभावी पूंजीगत व्यय (जिसमें पूंजीगत परिसंपत्तियों के लिए अनुदान भी शामिल होता है) 15.48 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है.
  • ब्याज भुगतान के लिए ₹12.76 लाख करोड़ रुपये आवंटित किया गया है, जो बजट का सबसे बड़ा खर्च घटक है.

2018-19 में पूंजीगत व्यय को सकल घरेलू उत्पाद के 1.6% से बढ़ाकर केंद्रीय बजट 2024-25 में सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% करने के बाद, सरकार ने अगले वित्तीय वर्ष के लिए कम महत्वाकांक्षी लक्ष्य चुना है. बजट घाटा कम होना भारत सरकार के राजकोषीय दृष्टि से विवेकपूर्ण बने रहने के इरादे का संकेत है, बावजूद इसके कि उम्मीद थी कि उसे कमजोर पड़ती घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए पूंजीगत व्यय में वृद्धि करनी चाहिए थी.

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हालांकि सरकार द्वारा अपने वित्त को नियंत्रण में रखने के प्रयास की सराहना की जाएगी, लेकिन अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण सरकारी खर्च में अधिक सहायता की आवश्यकता हो सकती है. बजट घाटा कम होना सरकार के राजकोषीय दृष्टि से विवेकपूर्ण बने रहने के इरादे का संकेत है, बावजूद इसके कि उम्मीद थी कि उसे कमजोर पड़ती घरेलू अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए पूंजीगत व्यय में वृद्धि करनी चाहिए थी.

शुक्रवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार, यह अर्थव्यवस्था के लिए एक चुनौती हो सकती है, जिसके वित्त वर्ष 26 में 6.3-6.8% बढ़ने की उम्मीद है. चालू वित्त वर्ष में जीडीपी वृद्धि 6.4% रहने की उम्मीद है. हालांकि बजट 2025 ने 10.1% की थोड़ी आशावादी नॉमिनल जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया है, जो 2024-25 के लिए अनुमानित वृद्धि से 40 आधार अंक अधिक होगी, संभवतः यही कारण है कि सरकार ने आयकर कटौती में कुछ राहत की घोषणा की है.

अपने बजट भाषण में सीतारमण ने “मध्यम वर्ग” को भारी कर राहत दी और घोषणा की कि नई व्यवस्था के तहत ₹ 12 लाख तक की आय पर कोई आयकर नहीं देना होगा.  इसके अलावा, सभी करदाताओं को लाभ पहुंचाने के लिए कर स्लैब और दरों में व्यापक बदलाव किए गए. 

भारत का बजट घाटा 2020-21 में 9% से अधिक के शिखर से लगातार कम हो रहा है. सरकार ने कहा कि ऋण-से-जीडीपी पर ध्यान केन्द्रित करना वर्तमान वैश्विक सोच के अनुरूप है. इसमें कहा गया है, ”यह कठोर वार्षिक राजकोषीय लक्ष्यों से अधिक पारदर्शी और परिचालनात्मक रूप से लचीले राजकोषीय मानकों की ओर बदलाव को प्रोत्साहित करता है.”

हालांकि, सरकार ने घाटे को पूरा करने के लिए बाजार से सकल उधारी बढ़ाकर 14.82 लाख करोड़ रुपए कर दी, जबकि चालू वर्ष में यह 14.01 लाख करोड़ रुपए थी. निजी करों में पुनर्गठन के बावजूद घाटे का यह छोटा लक्ष्य रखा गया है, जिससे राजस्व में 1 ट्रिलियन रुपए की हानि होगी. 

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अब समझिए इससे आप पर क्या असर पड़ सकता है?

कल्पना कीजिए कि आपकी मासिक आय 10,000 रुपये है, लेकिन आपके खर्च – जैसे किराया, राशन और अचानक आने वाले मेडिकल बिल– 6000 रुपये तक पहुंच जाते हैं. इस 1000 रुपये के अंतर को पूरा करने के लिए आपको उधार लेना पड़ेगा.

इसी तरह, सरकार भी करों और अन्य स्रोतों से राजस्व अर्जित करती है, लेकिन अक्सर बुनियादी ढांचे, सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाओं पर अपनी आमदनी से अधिक खर्च करती है. यह अतिरिक्त खर्च राजकोषीय घाटा कहलाता है. इस घाटे को पूरा करने के लिए सरकार को उधार लेना पड़ता है या तो बैंकों से कर्ज लेकर, जनता को बॉन्ड जारी करके या फिर अंतरराष्ट्रीय बाजारों से धन जुटाकर.

समस्या यह है कि जब सरकार अधिक उधार लेती है, तो इससे अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ता है. ब्याज दरें बढ़ सकती हैं, महंगाई में इजाफा हो सकता है, और अंततः इसका सीधा असर आपकी जेब पर पड़ता है, जिससे रोजमर्रा की चीजें महंगी हो सकती हैं.

राजकोषीय घाटा: आपके खर्च पर सीधा प्रभाव

1. उच्च ब्याज दरें = महंगे ऋण और EMI

जब सरकार बड़े पैमाने पर उधार लेती है, तो उसे बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से पैसा लेने के लिए व्यवसायों और आम लोगों के साथ प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है. इस बढ़ी हुई मांग के कारण ब्याज दरें बढ़ जाती हैं. नतीजा-

  • होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन की EMI महंगी हो जाती हैं.
  • आपका सपनों का घर खरीदना और भी महंगा हो सकता है.

2. उच्च मुद्रास्फीति = महंगी रोजमर्रा की चीजें

अगर सरकार राजकोषीय घाटे को पूरा करने के लिए अधिक मुद्रा छापती है, तो बाजार में पैसे की मात्रा बढ़ जाती है. राजकोषीय घाटा सिर्फ सरकार की वित्तीय स्थिति को ही नहीं, बल्कि आपकी जेब और खर्च करने की क्षमता को भी प्रभावित करता है. नतीजा-

  • खाद्य पदार्थ, ईंधन और सेवाओं की कीमतें बढ़ जाती हैं.
  • आपका मासिक किराने का बजट पहले से ज्यादा महंगा हो जाता है.

3. उच्च कर = कम बचत और अधिक खर्च

सरकार घाटे को कम करने के लिए नए कर लगा सकती है या मौजूदा करों में वृद्धि कर सकती है. इसका असर आपकी जेब पर नकारात्मक हो सकता है-

  • वेतन से अधिक आयकर कटौती हो सकती है.
  • खरीदी गई वस्तुओं पर GST बढ़ सकता है.
  • ईंधन या खाद्य सब्सिडी में कटौती से रोजमर्रा की जरूरतों पर अधिक खर्च करना पड़ सकता है.

क्या राजकोषीय घाटा हमेशा बुरा होता है?

जरूरी नहीं. अगर सरकार समझदारी से खर्च करे, तो राजकोषीय घाटा अर्थव्यवस्था के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है. जिस तरह घर खरीदने या उच्च शिक्षा के लिए लिया गया कर्ज भविष्य में आपको लाभ देता है, उसी तरह सरकार का उधार लेना भी सही दिशा में निवेश हो सकता है. यदि यह पैसा बुनियादी ढांचे, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा में लगाया जाए, तो इससे नौकरी के अवसर बढ़ते हैं, अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और नागरिकों का जीवन स्तर सुधरता है.

लेकिन अगर खर्च गलत दिशा में हो?

अगर सरकार बिना योजना के उधार लेकर इसे गैर-उत्पादक खर्चों या अल्पकालिक लाभ देने वाली अक्षम सब्सिडी में लगा दे, तो यह क्रेडिट कार्ड से अनावश्यक खरीदारी करने जैसा हो सकता है. समय के साथ, जब सरकार को पुराने कर्ज के ब्याज चुकाने के लिए और ज्यादा उधार लेना पड़े, तो कर्ज का बोझ बढ़ जाता है, निवेशकों का भरोसा कम होता है और अर्थव्यवस्था कमजोर होने लगती है. नतीजा यह होता है कि भविष्य की पीढ़ियों को भारी कर्ज और धीमी आर्थिक वृद्धि का सामना करना पड़ता है.

राजकोषीय घाटा: इकॉनमी का हेल्थ चेकअप

राजकोषीय घाटे को देश की आर्थिक सेहत मापने वाले हेल्थ चेकअप के रूप में देखा जा सकता है. सरकारें अक्सर GDP के प्रतिशत के रूप में घाटे का एक लक्ष्य निर्धारित करती हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उधारी आर्थिक विकास को समर्थन दे, न कि उसे कमजोर करे. इसे प्वाइंट्स मे ऐसे समझा जा सकता है-

  • कम घाटा दिखाता है कि सरकार अपने खर्च और उधारी को संतुलित रख रही है.
  • अत्यधिक घाटा संकेत देता है कि सरकार जरूरत से ज्यादा कर्ज ले रही है, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, ब्याज दरें ऊपर जा सकती हैं और आपकी जेब पर असर पड़ सकता है.

आपके लिए इसका क्या मतलब है?

  • बढ़ता घाटा = महंगे कर्ज, ऊंची EMI, महंगी रोजमर्रा की चीजें.
  • नियंत्रित घाटा = स्थिर अर्थव्यवस्था, किफायती ब्याज दरें, संतुलित महंगाई.

राजकोषीय घाटे को समझना सिर्फ अर्थशास्त्रियों के लिए नहीं, बल्कि आम जनता के लिए भी ज़रूरी है. इसलिए, जब अगली बार बजट में राजकोषीय घाटे की बात हो, तो समझें कि यह सिर्फ सरकार की वित्तीय स्थिति का मामला नहीं, बल्कि आपकी जेब और भविष्य से भी जुड़ा हुआ है.

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