नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में केंद्रीय बजट 2023 पेश करेंगी. चुनावी साल से पहले के पूर्ण बजट से देश के लोगों को काफी सारी उम्मीदें हैं. किसी को टैक्स छूट के लाभ का दायरा बढ़ने की उम्मीद है, तो किसी को महंगाई कम होने की. कई लोग यह भी सोच रहे होंगे कि बजट पेश होने के बाद देश के आयकर कानूनों में बदलाव किया जा सकता है. मीडिया और विभिन्न मंचों पर चर्चा-परिचर्चाओं का दौर जारी है. इन चर्चा-परिचर्चाओं के बीच सबसे अधिक जिस विषय पर चर्चा होती है, वह टैक्स यानी कर है.
चर्चाओं में सबसे अधिक जिन दो शब्दों का उल्लेख किया जाता है, वे ‘प्रत्यक्ष कर’ यानी डायरेक्ट टैक्स और ‘अप्रत्यक्ष कर’ यानी इनडायरेक्ट टैक्स हैं. महत्वपूर्ण यह है कि इन दोनों शब्दों का इस्तेमाल खूब होता है, लेकिन क्या सही मायने में भारत की आम जनता इन दोनों शब्दों के अर्थ और अंतरों के बारे में जानती है? क्या वह यह जानती है कि इन दोनों में से कौन सा शब्द भारत में व्यक्तियों को और कौन सा व्यवसायों या व्यवसायियों को प्रभावित करती है? इन दोनों सवाल का जवाब नहीं में ही होगा, तो आइए जानकारी के लिए समझते हैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर के बीच का अंतर…
अर्थशास्त्र के दृष्टिकोण से समझें, तो जो कर प्रत्यक्ष तरीके से सरकार को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी व्यक्ति या संस्था द्वारा भुगतान किए जाते हैं, प्रत्यक्ष कर कहलाते हैं. इन करों में आयकर, संपत्ति कर और कॉर्पोरेट कर शामिल हैं. प्रत्यक्ष कर व्यक्ति या संस्था की आय और संपत्ति पर आधारित होते हैं और भुगतान की गई कर की राशि आय या अर्जित धन के सीधे आनुपातिक होती है. जैसे, उच्च आय वाला व्यक्ति कम आय वाले व्यक्ति की तुलना में अधिक आयकर का भुगतान करेगा.
जिस कर का भुगतान अप्रत्यक्ष तरीके से उपभोक्ता या अंतिम अंतिम उपयोगकर्ता द्वारा किया जाता है, उसे अप्रत्यक्ष कर कहते हैं. ऐसे करों में मूल्य वर्धित कर (वैट), वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और उत्पाद शुल्क शामिल होते हैं. आम तौर पर अप्रत्यक्ष कर वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में जोड़े जाते हैं और उपभोक्ता खरीदारी करते समय इस प्रकार के अप्रत्यक्ष करों का भुगतान करते हैं. जैसे, कोई उत्पाद खरीदते समय कोई उपभोक्ता उसके आधार मूल्य के ऊपर जीएसटी का भुगतान करता है.
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प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों के बीच प्रमुख अंतरों में से एक यह है कि प्रत्यक्ष करों को प्रगतिशील माना जाता है. इसका कारण यह है कि वे उन लोगों से आय का बड़ा प्रतिशत लेते हैं, जो अधिक भुगतान कर सकते हैं. वहीं, अप्रत्यक्ष करों को प्रतिगामी माना जाता है, क्योंकि वे उन लोगों से आय का बड़ा प्रतिशत लेते हैं, जो कम भुगतान कर सकते हैं.