व्यापार में सबसे महत्वपूर्ण क्या है ? जानें लक्स कैसे बना बड़ा ब्रांड

सच के साथ खड़े होने की आदत डालें. जो अपने रिलेशनशिप और सत्य का सम्मान करेगा, उसे आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. वह किसी भी मुकाम पर पहुंच सकता है और किसी भी ऊंचाई पर पहुंच कर टिक सकता है. उसके गिरने का खतरा कम होगा या गिरेगा ही नहीं.’

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 15, 2021 12:01 PM

‘व्यक्तिगत जीवन ही नहीं, बिजनेस में भी रिलेशनशिप (संबंध) का अपना अलग महत्व है. मानिये कि यह बहुत ही महत्वपूर्ण है. साथ ही यह भी बहुत अहम है कि आप चाहे किसी भी कारोबार में हों, सत्य का सम्मान अवश्य करें. सच के साथ खड़े होने की आदत डालें. जो अपने रिलेशनशिप और सत्य का सम्मान करेगा, उसे आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. वह किसी भी मुकाम पर पहुंच सकता है और किसी भी ऊंचाई पर पहुंच कर टिक सकता है. उसके गिरने का खतरा कम होगा या गिरेगा ही नहीं.’

ये कथन हैं बिजनेस में फर्श से अर्श तक की यात्रा का अनुभव रखने वाले अंडर गारमेंट्स-इनरवियर्स के विश्वव्यापी कारोबार से जुड़ी कंपनी लक्स इंडस्ट्रीज के चेयरमैन अशोक कुमार तोदी के. प्रभात खबर के लिए कौशल किशोर त्रिवेदी के साथ एक लंबी बातचीत में उन्होंने व्यापार जगत के विभिन्न आयामों से जुड़े अपने विचार साझा किये.

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Q होजरी की दुनिया में आपका प्रवेश कब और कैसे हुआ ?

यह कहानी लगभग 45-46 वर्ष पुरानी है. तब की है, जब मैं स्कूल में पढ़ता था. 1975 की बात है. मेरे पिता का कोलकाता में ही अपना ऐसा ही व्यवसाय था. स्कूल के दिनों से ही मैं इस कारोबार में रुचि लेने लगा था. तब ब्रांड जैसा कहीं कुछ नहीं था. बस अपने माल की क्वालिटी दिखा कर और उसे साबित कर बाजार में टिके रहने की चुनौती होती थी.

तब हमलोगों की तो गद्दी ही हुआ करती थी. मेरी शुरुआत गद्दी में झाड़ू लगाने और चादर बिछाने जैसे काम के साथ हुई थी. माल की कटिंग-टेलरिंग के शुरुआती अनुभव के साथ. बाबूजी कहते, ‘कोई भी काम पहले खुद से करो. जब स्वयं करोगे, तभी किसी दूसरे से करवा सकोगे.’ बहुत काम की बात थी वह.

Q तब होजरी का बाजार कैसा था, बिजनेस मॉडल कैसा था ?

जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि तब ब्रांड जैसा कुछ था ही नहीं. उत्पादों की गुणवत्ता और निजी संबंधों के बूते ही कारोबार चलता था. हम घूम-घूम कर अपने उत्पादों को निजी संपर्कों के जरिये बाजार में प्रमोट करते और बेचते थे. बंगाल के अतिरिक्त बिहार, झारखंड (पहले का दक्षिण बिहार), मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ (जो तब राज्य नहीं था) के सुदूर इलाकों तक जाना पड़ता था. मैं स्वयं जाया करता था.

एक-एक डिस्ट्रीब्यूटर-डीलर तक पहुंचता था. उन दिनों ऑटो, स्कूटर और बस के जरिये रोज औसतन करीब सौ-सौ किलोमीटर तक की यात्रा हो जाती थी. बाजार में दो-तीन-चार डिब्बे माल दिया करते. फिर कंज्यूमर तक भी पहुंचने की कोशिश करते, उनका फीडबैक लेते और उन्हें अपने माल की गुणवत्ता समझा-बता कर रिटेलर से लेने को प्रेरित करते. काम बहुत ही कठिन था. बिल्कुल संघर्ष भरा काम था. पर करना ही था, सो करते रहे, चलते रहे.

Q उस दौर की आपकी मेहनत और संघर्ष भरी यात्राएं कैसे बिजनेस में ट्रांसलेट होती गयीं ?

सिर्फ तभी नहीं, अब भी बिजनेस में ट्रांसलेट हो रही हैं. आज भी. 1975 से 95 के बीच करीब 10 राज्यों के 200 जिलों तक पहुंचा हूं. और हर जिले में करीब डेढ़ सौ गांवों तक भी. अधिकतर गांवों के नाम आज भी याद हैं. आज देश में लक्स के करीब 1100 डिस्ट्रिब्यूटर्स हैं. ये सभी हमारे 50 वर्ष से भी अधिक पुराने सहयोगी हैं. इनकी तीन-तीन पीढ़ियों के साथ काम (व्यवसाय) कर चुका हूं. दादा से लेकर पोते तक.

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यह है हमारे रिलेशनशिप का एक उदाहरण. देखिए, बिजनेस में संबंध बहुत इंपॉर्टेंट होते हैं. एक बात और. वह है सत्य. परिस्थितियां चाहे जैसी भी हों, सच को कभी छोड़िये मत. स्थायी संबंध और सत्य के बूते आप किसी भी ऊंचाई को छू सकते हैं और उस ऊंचाई पर पहुंच कर आप टिके रह सकते हैं. शुरुआती 20 वर्षों के संघर्ष और मेहनत के बूते बने संबंध और कारोबार में सत्य के साथ रहने का साहस आज भी हमारे काम आ रहे हैं.

Q एक ब्रांड के तौर पर लक्स ने कैसे आकार लिया ?

यह 1990 की बात है. इंफॉर्मेशन और कम्युनिकेशन के माध्यम के रूप में शहर से लेकर गांवों तक टीवी की लोकप्रियता और आम लोगों तक उसकी पहुंच में भारी तेजी का दौर था वह. उधर, टीवी पर ही महाभारत ने धूम मचा रखी थी. महाभारत को टीवी के पर्दे पर लानेवाले फिल्मकार बीआर चोपड़ा के बेटे रवि चोपड़ा से मेरा परिचय हो गया था. उन्होंने ही सुझाव दिया कि मैं अपने उत्पादों के लिए एक बढ़िया एडवर्टाइजमेंट फिल्म बनाऊं. पर, तब हमारे पास पैसे नहीं थे. संसाधनों का अभाव था.

उन्हें अपनी दिक्कतें बतायीं. फिर काफी सोच-समझ कर उन्होंने ही महाभारत के कुछ पात्रों के नाम सुझाये और उन्हें ही लेकर सस्ते में एड फिल्म बनाने की बात तय हुई. एक दिन रवि चोपड़ा के घर पर ही उनके पिता बीआर (चोपड़ा) जी ने मुझसे मेरे उत्पादों के बारे में पूछा-जाना. जब उन्हें पता चला कि हमारा कारोबार अंडर गारमेंट्स अर्थात अंदर पहनने वाले वस्त्रों से जुड़ा है, तो अचानक ही उनके मुंह से निकल गया – अच्छा, ये अंदर की बात है.

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बस, उनके मुंह से निकला यही वाक्य हमारे विज्ञापन का टैगलाइन बन गया. ‘ये अंदर की बात है.’ इसी दौर में लक्स ने बतौर ब्रांड एक नया शेप लिया. तब का बना वह विज्ञापन 1990 से 1998 तक चला. जबरदस्त हिट रहा. फिर उसके बाद तो सन्नी देओल, शाहरुख खान व अमिताभ बच्चन आदि भी साथ आते गये और अपने कारोबारी क्षेत्र में लक्स एक मजबूत ब्रांड के तौर पर उभरता गया.

Q होजरी उद्योग में निवेश की स्थिति कैसी है ?

अच्छा है. कहा जा सकता है कि बहुत अच्छा. आप लक्स का ही उदाहरण लीजिए ना. 2002 में जिन लोगों ने लक्स इंडस्ट्रीज में दो रुपये (प्रति शेयर) का निवेश किया था, वे दुनियाभर में चल रही तमाम उठा-पटक के बावजूद आज हमारी कंपनी में 4000 रुपये के हिस्सेदार हैं. इससे क्या महसूस हो रहा है ? इससे क्या पता चलता है ? यही न कि अपने व्यावसायिक क्षेत्र में हम लगातार अच्छा करते रहे हैं ! हमारे तमाम बिजनेस इनिशिएटिव्स का रिजल्ट पॉजिटिव रहा है.

Q होजरी क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा मूलक चुनौतियों से कैसे निबटे हैं ?

देखिए, व्यवसाय में भी दो महत्वपूर्ण सिद्धांत हैं. एक तो यह कि आप दूसरों को देखिये और फिर अपने बारे में सोचिये. दूसरा यह कि आप खुद से अपनी राह बनायें, अपना लक्ष्य स्वयं तय करें. और हम तो लगातार दूसरे सिद्धांत के साथ ही खड़े रहे हैं. खुद से तय की गयी दिशा में चलते रहे हैं, अपनी राह स्वयं बनाते रहे हैं.

Q इतना सब होने के बाद लक्स आज किस मुकाम पर है और भविष्य की संभावनाएं कैसी हैं ?

एक ब्रांड के तौर पर लक्स बहुत ही मजबूती के साथ खड़ा है. आज की तारीख में देश के बाहर दुनिया के लगभग 45 भिन्न-भिन्न देशों में लक्स के उत्पादों की मांग है. जहां तक संभावनाओं का सवाल है, तो मैं कह सकता हूं कि यह बहुत ही उज्ज्वल है. होजरी उत्पादों के कारोबार में भारत की स्थिति चीन से भी बेहतर है. रॉ मटेरियल्स और लेबर कॉस्ट भारत को इस मामले में चीन पर भी बढ़त दिला देते हैं.

Q ऐसे लोग, जिन्होंने लक्स को यहां तक पहुंचाने में आपकी उल्लेखनीय मदद की हो ?

मैं अपने बिजनेस में जिन लोगों तक अतीत में कभी पहुंचा, उन्हें आज भी साथ रखता हूं. वर्षों पुराने अपने व्यावसायिक संबंधों को भी जीते रहने की कोशिश करता हूं. हां, इस मामले में परिवार ने भी जबरदस्त तरीके से साथ दिया है. इनकी मदद के बिना भी यह संभव नहीं था. परिवार के हर सदस्य का साथ मिला है, तभी हम लोग लक्स को इस ऊंचाई तक ले जा सके हैं.

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Q नये उद्यमियों को आपका सुझाव-संदेश क्या है ?

आप अपने संबंधों और सत्य का सम्मान करें, उनका साथ दें. रिलेशंस अच्छे होंगे, तो अगर आप कभी नीचे भी आने लगे, तो लोग संभाल लेंगे. ऐसा नहीं होने पर आप जब ऊपर जायेंगे तब तो सभी साथ होंगे, पर नीचे आने का सिलसिला शुरू होते ही वे साथ छोड़ देंगे. अपने उद्यम को अपनी तपस्या मानें. उस तरह, जैसे एक सन्यासी तप के जरिये परमात्मा को प्राप्त करना चाहता है. आपका व्यापार भी एक तपस्या ही है.

एक बात और. सपने अवश्य देखिये. क्योंकि, जो सपने नहीं देखते, उनके लिए आगे कुछ भी नहीं है. ऐसे लोग आगे नहीं जा सकते. और अंत में यह भी कि आप किसी भी ऊंचाई पर पहुंचें, अपने आरंभ को न भूलें. अन्यथा आप शिखर पर पहुंच कर भी वहां टिक नहीं सकेंगे.

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