नयी दिल्ली : मंत्रिमंडल ने बुधवार को मत्स्यपालन क्षेत्र के टिकाऊ और भरोसेमंद विकास के माध्यम से नीली क्रांति लाने के लिए एक योजना को मंजूरी दी. इसमें अगले पांच वर्ष में कुल अनुमानित निवेश 20,050 करोड़ रुपये होगा. एक सरकारी बयान में कहा गया है कि ‘प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (पीएमएमएसवाई) के तहत कुल निवेश में केंद्रीय हिस्सेदारी 9,407 करोड़ रुपये, राज्य की हिस्सेदारी 4,880 करोड़ रुपये और लाभार्थियों की हिस्सेदारी 5,763 करोड़ रुपये होगी. इस साल बजट में घोषित इस केंद्रीय योजना को वित्त वर्ष 2020-21 से 2024-25 तक पांच साल के लिए लागू किया जाएगा.
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पीएमएमएसवाई का उद्देश्य इस क्षेत्र में 15 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा करना है. वर्ष 2024 तक इस क्षेत्र से जुड़े किसानों और श्रमिकों की आय दोगुनी करने के अलावा मत्स्य पालन क्षेत्र की जरूरी कमियों को दूर करना तथा टिकाऊ और जवाबदेह ढंग से मछलीपालन के कामकाज को अपनाते हुए वर्ष 2024-25 तक मछली उत्पादन को 2.2 करोड़ टन तक बढ़ाना है.
इस योजना के तहत मूल्य शृंखला के आधुनिकीकरण और सुदृढ़ीकरण सहित महत्वपूर्ण आधारभूत संरचना तैयार करने और प्रमाणित गुणवत्ता वाले मछली बीज और चारा की उपलब्धता में सुधार लाने, मछलियों में उसके स्रोत की जानकारी और प्रभावी जलीय स्वास्थ्य प्रबंधन सहित विभिन्न अन्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाएगा. यह मत्स्य क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देगा और मछली और मत्स्य उत्पादों की प्रतिस्पर्धा क्षमता को बढ़ाएगा.
सरकार के अनुसार, पीएमएमएसवाई को दो अलग-अलग घटक केंद्रीय योजना (सीएस) और केंद्र प्रायोजित योजना (सीएसएस) के साथ एक समग्र योजना के रूप में लागू किया जाएगा. केंद्रीय योजना के तहत संपूर्ण परियोजना और इकाई लागत का बोझ, केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाएगा.
यदि राष्ट्रीय मत्स्य पालन विकास बोर्ड (एनएफडीबी) जैसी सरकारी संस्थाओं द्वारा प्रत्यक्ष लाभार्थी उन्मुख गतिविधियां चलायी जाती हैं, तो केंद्रीय सहायता, सामान्य वर्ग के लोगों के लिए परियोजना लागत का 40 फीसदी और पिछड़ी जाति के लोगों और महिलाओं के लिए 60 फीसदी होगी.
हालांकि, केंद्र प्रायोजित योजना के तहत, गैर-लाभार्थी उन्मुख परियोजना की लागत, केंद्र और राज्य के बीच साझा किया जाएगा. केंद्र शासित प्रदेशों में शुरू की जाने वाली परियोजनाओं के लिए केंद्र 100 फीसदी धन मुहैया कराएगा, लेकिन पहाड़ी राज्यों में यह 90:10 के अनुपात में होगा, जबकि अन्य राज्यों में 60:40 के अनुपात में होगा.
लाभार्थी उन्मुख परियोजनाओं के लिए धन सामान्य श्रेणी के लिए परियोजना लागत का 40 फीसदी और पिछड़ी जाति के लोगों और महिलाओं के लिए 60 फीसदी तक सीमित होगा. इसके लिए पहाड़ी राज्यों के लिए धन को 90:10 के अनुपात में साझा किया जाएगा, जबकि अन्य राज्यों के लिए 60:40 के अनुपात में और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए शत प्रतिशत साझा किया जाएगा.
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